नबूकदनेजर ने कहा, “हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो! क्या यह बात सच है कि तुम लोग न तो मेरे देवताओं की सेवा करते और न मेरे संस्थापित स्वर्ण-मूर्ति की आराधना करते हो? क्या तुम लोग अब तुरही, वंशी, सितार, सारंगी, वीणा और सब प्रकार के वाद्यों की आवाज सुनते ही, मेरी बनायी मूर्ति को दण्डवत् कर उसकी आराधना करने तैयार हो? यदि तुम उसकी आराधना नहीं करोगे, तो उसी समय प्रज्वलित भट्ठी में डाल दिये जाओगे। तब कौन देवता तुम लोगों को मेरे हाथों से बचा सकेगा?” शद्रक, मेशक और अबेदनगों ने राजा नबुकदनेजर को यह उत्तर दिया, “हे राजा! इसके सम्बन्ध में हमें आप से कुछ नहीं कहना है। यदि कोई ईश्वर है, जो ऐसा कर सकता है, तो वह हमारा ही ईश्वर है, जिसकी हम सेवा करते हैं। वह हमें प्रज्वलित भट्ठी से बचाने में समर्थ है और हमें आपके हाथों से छुड़ायेगा। यदि वह ऐसा नहीं करेगा, तो हे राजा! यह जान लें कि हम न तो आपके देवताओं की सेवा करेंगे और न आपके द्वारा संस्थापित स्वर्ण-मूर्ति की आराधना ही।” यह सुन कर नबूकदनेजर शद्रक, मेशक और अबेदनगो पर बहुत क्रद्ध हो गया और उसके चेहरे का रंग बदल गया। उसने भट्ठी का ताप सामान्य से सातगुना अधिक तेज करने की आज्ञा दी और अपनी सेना के कुछ बलिष्ठ जवानों को आदेश दिया कि वे शद्रक, मेशक और अबेदनगों को बाँध कर प्रज्वलित भट्ठी में डाल दें। राजा नबूकदनेजर बड़े अचंभे में पड़ गया। वह घबरा कर उठ खड़ा हुआ और अपने दरबारियों से बोला, “क्या हमने तीन व्यक्तियों को बाँध कर आग में नहीं डलवाया?” उन्होंने उत्तर दिया, “हे राजा! आप ठीक कहते हैं।” इस पर उसने कहा, “मैं तो चार व्यक्तियों को मुक्त हो कर सकुशल आग में टहलते देख रहा हूँ। चौथा स्वर्गदूत जैसा दिखता है।” नबुकदनेजर बोल उठा, “धन्य है शद्रक, मेशक और अबेदनगों का ईश्वर। उसने अपने दूत को भेजा है जिससे वह उसके उन सेवकों को बचाये, जिन्होंने ईश्वर पर भरोसा रख कर राजाज्ञा का उल्लंघन किया और अपने शरीर अर्पित कर दिये; क्योंकि वे अपने ईश्वर को छोड़ कर किसी अन्य देवता की सेवा अथवा आराधना करना नहीं चाहते थे।”
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।
1. हे प्रभु, हमारे पूर्वजों के ईश्वर! तू धन्य है! तेरा महिमामय पवित्र नाम धन्य है!
2. तू अपने महिमामय मंदिर में धन्य है!
3. तू अपने राजसिंहासन पर धन्य है!
4. तू गहराइयों की थाह लेता है। तू धन्य है।
5. तू स्वर्ग की ऊँचाइयों पर धन्य है।
धन्य हैं वे, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन सुन कर सुरक्षित रखते हैं और अपने धीरज के कारण फल लाते हैं।
जिन यहूदियों ने उन में विश्वास किया, उन से येसु ने कहा, “यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे। तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र बना देगा।” उन्होंने उत्तर दिया, “हम इब्राहीम की सन्तान हैं, हम कभी किसी के दास नहीं रहे। आप यह क्या कहते हैं - तुम स्वतंत्र हो जाओगे?” येसु ने उन से कहा, “मैं तुम से कहे देता हूँ - जो पाप करता है, वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता, पुत्र सदा रहता है। इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र बना देगा, तो तुम सचमुच स्वतंत्र होगे। “मैं जानता हूँ कि तुम लोग इब्राहीम की सन्तान हो। फिर भी तुम मुझे मार डालने की ताक में रहते हो, क्योंकि मेरी शिक्षा तुम्हारे हदय में घर नहीं कर सकी। मैंने अपने पिता के यहाँ जो देखा है, वही कहता हूँ और तुम लोगों ने अपने पिता के यहाँ जो सीखा है, वहीं करते हो।” उन्होंने उत्तर दिया, “इब्राहीम हमारे पिता हैं।” इस पर येसु ने उन से कहा, “यदि तुम इब्राहीम की सन्तान हो, तो इब्राहीम जैसा आचरण करो। अब तो तुम मुझे इसलिए मार डालने की ताक में रहते हो कि मैंने जो सत्य ईश्वर से सुना है, वह तुम लोगों को बता दिया है। यह इब्राहीम जैसा आचरण नहीं है। तुम लोग तो अपने ही पिता जैसा आचरण करते हो।” उन्होंने येसु से कहा, “हम व्यभिचार से पैदा नहीं हुए हैं। हमारा एक ही पिता है और वह ईश्वर है।” येसु ने यहूदियों से कहा, “यदि ईश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझे प्यार करते; क्योंकि मैं ईश्वर से उत्पन्न हुआ हूँ और उसके यहाँ से आया हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ, उसी ने मुझे भेजा है।”
प्रभु का सुसमाचार।