चालीसे का पाँचवाँ सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ

नबी दानिएल का ग्रन्थ 13:1-9,15-17,19-30,33-62

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ा दिया जा सकता है। ]
मैंने कुछ भी नहीं किया, फिर भी मुझे मरना होगा।”

[योआकिम नामक व्यक्ति बाबुल का निवासी था। उसका बिवाह हिलकीया की पुत्री सुसन्ना से हुआ था। वह अत्यन्त सुन्दर और प्रभु-भक्त थी, क्योंकि उसके माता-पिता धार्मिक थे और उन्होंने अपनी पुत्री को मूसा की संहिता के अनुसार पढ़ाया-लिखाया था। योआकिम बहुत धनी था और उसके घर से लगी हुई उसके एक सुन्दर वाटिका थी। यहूदी उसके यहाँ आया-जाया करते थे, क्योंकि वह उन में सब से अधिक प्रतिष्ठित था। उस वर्ष लोगों ने जनता में से दो नेताओं को न्यायकर्त्ताओं के रूप में नियुक्त किया था। उनके विषय में प्रभु ने कहा था, “बाबुल में अधर्म उन नेताओं से प्रारंभ हुआ, जो न्यायकर्त्ता थे और जनता का शासन करने का ढोंग रचते थे।” वे योआकिम के यहाँ आया करते थे और जिनका कोई मुकदमा रहता वे सब उनके पास आते थे। जब दोपहर के समय लोग चले जाते, तो सुसन्ना अपने पति की वाटिका में टहलने आया करती थी। दोनों नेता उसे प्रतिदिन वाटिका में घुमते और टहलते देखते थे और उन में सुसन्ना के लिए प्रबल काम-वासना उत्पन्न हुई। उनका मन इतना विकृत हो गया हे कि उन्होंने स्वर्ग की ओर नहीं देखा और नैतिकता के नियम भुला दिये। वे उपयुक्त अवसर की ताक में ही थे कि सुसन्ना दो नौकरानियों के साथ अपनी आदत के अनुसार वाटिका में घुस गयी। उस दिन बहुत गरमी थी, इसलिए वह स्नान करना चाहती थी। उन दोनों नेताओं को छोड़ कर, जो छिप कर उसे ताक रहे थे, वहाँ कोई नहीं था। उसने अपनी नौकरानियों से कहा, "जा कर तेल और मरहम ले आओ और वाटिका का फाटक बन्द कर दो जिससे मैं स्नान कर सकूँ।” नौकरानियाँ बाहर गयी ही थी कि दोनों नेता उठ कर सुसन्ना के पास दौड़ते हुए आये और उस से बोले, “देखो, वाटिका का फाटक बन्द है, कोई भी हमें नहीं देखता। हम तुम पर आसक्त हैं। हमारे साथ रमण करना स्वीकार करो, नहीं तो हम तुम्हारे विरुद्ध यह साक्ष्य देंगे कि कोई युवक तुम्हारे साथ था और इसलिए तुमने अपनी नौकरानियों को बाहर भेज दिया।” सुसन्ना ने आह भर कर कहा, “मुझे कोई रास्ता नहीं दिखता। यदि मैं ऐसा करूँगी, तो प्राणदण्ड के योग्य हो जाऊँगी। यदि मैं ऐसा नहीं करूँगी, तो आपके हाथों से नहीं बच पाउँगी। फिर भी प्रभु के सामने पाप करने की अपेक्षा निर्दोष ही आपके हाथों पड़ जाना मेरे लिए अच्छा है। इस पर सुसन्ना ऊँचे स्वर से चिल्लाने लगी, किन्तु दोनों नेता उसके विरुद्ध चिल्लाने लगे और उन में से एक ने दौड़ कर वाटिका का फाटक खोल दिया। जब घर के लोगों ने वाटिका में चिल्लाने की आवाज सुनी, तो यह देखने के लिए कि सुसन्ना को क्या हुआ, वे दौड़ते हुए आये और पार्श्व फाटकसे वाटिका में प्रवेश कर गये। जब नेताओं ने अपना बयान दिया, तो नौकरों को बड़ा धक्का लग गया; क्योंकि सुसन्ना पर इस प्रकार का अभियोग कभी नहीं लगाया गया था। दूसरे दिन, जब जनता उसके पति योआकिम के यहाँ एकत्र हो गयी थी, तो वे दुष्ट नेता सुसन्ना को प्राणदण्ड दिलाने का षड्यंत्र रच कर आ पहुँचे। उन्होंने जनता के सामने कहा। “हिलकीया की पुत्री, योआकिम की पत्नी, सुसन्ना को बुला भेजो।” लोगों ने उसे बुला भेजा। वह अपने माता-पिता, अपने बच्चों और अपने सब कुटुम्बियों के साथ आयी। उसके संबंधी और जितने भी लोग उसे देखते थे, वे सब के सब रोते थे। उन दो नेताओं ने सभा में खड़े हो कर उसके सिर पर अपने हाथ रख दिये। वह रोती हुई स्वर्ग की ओर देखती रही; क्योंकि उसका हृदय ईश्वर पर भरोसा रखता था। नेताओं ने यह कहा, “जब हम अकेले वाटिका में टहल रहे थे, तो यह दो नौकरानियों के साथ वाटिका में आयी। इसने वाटिका का फाटक बन्द करा दिया और नौकरानियों को बाहर भेजा। तब एक युवक, जो छिपा हुआ था, पास आ कर इसके साथ लेट गया। हम वाटिका के एक कोने से यह पाप देख कर दौड़ते हुए उनके पास आये और हमने दोनों को रमण करते देखा। हम उस युवक को नहीं पकड़ पाये; क्योंकि वह हम से बलवान्‌ था और वाटिका का फाटक खोल कर भाग गया। हमने इसे पकड़ लिया और पूछा कि वह युवक कौन है, किन्तु इसने उसका नाम बताना अस्वीकार किया। हम इन बातों के साक्षी हैं।” सभी ने उन पर विश्वास किया, क्योंकि वे नेता और न्यायकर्त्ता थे।]

लोगों ने सुसन्ना को प्राणदण्ड की आज्ञा दी। इस पर सुसन्ना ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, “हे शाश्वत ईश्वर! तू सब रहस्य और भविष्य में होने वाली घटनाएँ जानता है। तू जानता है कि इन्होंने मेरे विरुद्ध झूठी गवाही दी है। इन्होंने जिन बुरी बातों का अभियोग मुझ पर लगाया है, मैंने उन में से एक भी नहीं किया - फिर भी मुझे मरना होगा।” ईश्वर ने उसकी सुन ली। जब लोग उसे प्राणदण्ड के लिए ले जा रहे थे, तो ईश्वर ने दानिएल नामक युवक में एक दिव्य प्रेरणा उत्पन्न की। वह पुकार कर कहने लगा, “मैं इसके रक्त का दोषी नहीं हूँ।” इस पर सब लोग उसकी ओर देखने लगे और बोले, “तुम्हारे कहने का अभिप्राय क्या है?” उसने उन में खड़ा हो कर कहा, “हे इस्राएलियो! आप लोगों की बुद्धि कहाँ है, जो आप जाँच और पूरी जानकारी के बिना इस्राएल की पुत्री को प्राणदण्ड देते हैं। आप न्यायालय लौट जायें, क्योंकि इन्होंने इसके विरुद्ध झूठी गवाही दी है।” इस पर लोग तुरन्त लौट गये” और नेताओं ने दानिएल से कहा, “आइए, हमारे बीच बैठिए और हमें अपनी बात बताइए; क्योंकि ईश्वर ने आप को नेताओं जैसा अधिकार प्रदान किया है।” दानिएल ने उन से कहा, “इन दोनों को एक दूसरे से अलग कर दीजिए और मैं इन से पूछ-ताछ करूँगा।” जब दोनों को अलग कर दिया गया, तो दानिएल ने एक को बुला कर उस से कहा, “अधर्म करते-करते तेरे बाल पक गये हैं। अब तुझे अपने पुराने पापों का दण्ड मिलने वाला है। तू निर्दोषों को दण्ड दे कर और दोषियों को निर्दोष ठहरा कर अन्यायपूर्वक विचार किया करता था, जब कि प्रभु ने कहा है - तुम निर्दोष और धर्मी को प्राणदण्ड नहीं दोगे। अब, यदि तूने इसे देखा, तो हमें बता कि तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को एक साथ देखा।” उसने उत्तर दिया, “बाबुल के नीचे।'” दानिएल ने कहा, “इतना बड़ा भूठ बोल कर तूने अपना सिर गँवा दिया है! ईश्वर के दूत को ईश्वर से यह आदेश मिल चुका है कि वह तुझे दो टुकड़े कर दे।” दानिएल ने उसे ले जाने की आज्ञा दे कर दूसरे को बुला भेजा और उस से कहा : “तू यूदा का नहीं, कनान की सन्तान है। सौन्दर्य ने तुझे पथभ्रष्ट किया और वासना ने तेरा हदय दूषित कर दिया है। तुम लोग इस्राएल की पुत्रियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते थे और वे डर के मारे तुम्हारा अनुरोध स्वीकार करती थीं। किन्तु यह यूदा की पुत्री है, जो तुम्हारे अधर्म के सामने नहीं झुकी है। तो, मुझे बता - तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को साथ देखा?” उसने उत्तर दिया, “बलूत के नीचे।” इस पर दानिएल ने कहा, “तूने भी इतना बड़ा झूठ बोल कर अपना जीवन गँवा दिया है! ईश्वर का दूत, हाथ में तलवार लिये प्रतीक्षा कर रहा है। वह तुझे दो टुकड़े कर देगा और तुम दोनों का सर्वनाश करेगा।” तब समस्त सभा ऊँचे स्वर से जयकार करते हुए ईश्वर की स्तुति करने लगी, जो अपने पर भरोसा रखने वालों की रक्षा करता है। दानिएल ने उनके अपने शब्दों द्वारा दोनों नेताओं की गवाही असत्य प्रमाणित की थी, इसलिए लोग उन पर टूट पड़े और उन्होंने मूसा की संहिता के अनुसार उन दुष्टों को वह दण्ड दिया, जिसे वे अपने पड़ोसी को दिलाना चाहते थे, और लोगों ने दोनों का वध कर डाला।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 22

अनुवाक्य : चाहे अँधेरी घाटी हो कर जाना ही क्यों न पड़े, द मुझे किसी अनिष्ट की आशंका नहीं, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है।

प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं। वह मुझे हरे मैदानों में चराता है। वह मुझे विश्राम के लिए जल के निकट ले जा कर मुझ में नवजीवन का संचार करता है।

2. वह अपने नाम का सच्चा है, वह मुझे धर्म-मार्ग पर ले चलता है। चाहे अँधेरी घाटी हो कर जाना ही क्यों न पड़े, मुझे किसी अनिष्ट की आशंका नहीं; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है। तेरी लाठी, तेरे डण्डे पर मुझे भरोसा है।

3. तू मेरे शत्रुओं के देखते-देखते मेरे लिए खाने की मेज सजाता है। तू मेरे सिर पर तेल का विलेपन करता है। तू मेरा प्याला लबालब भर देता है।

4. इस प्रकार तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। प्रभु का मंदिर ही मेरा घर है; मैं उस में अनन्तकाल तक निवास करूँगा।

जयघोष : एज़ेकिएल 33:11

प्रभु कहता है, “मैं पापी की मृत्यु से नहीं, बल्कि इस से प्रसन्न हूँ कि वह पश्चात्ताप करे और अनन्त जीवन प्राप्त करे।”

सुसमाचार

योहन के अनुसार पतित्र सुसमाचार 8:1-11

“तुम में जो निष्याप हो, वही सब से पहले इसे पत्थर मारे।”

येसु जैतून पहाड़ चले गये और वह बड़े सबेरे फिर मंदिर आये। सारी जनता उनके पास इकट्ठी हो गयी थी और वह बैठ कर लोगों को शिक्षा दे रहे थे। उस समय शास्त्री और फरीसी व्यभिचार में पकड़ी गयी एक स्त्री को ले आये और उसे बीच में खड़ा कर, उन्होंने येसु से कहा, “गुरुवर! यह स्त्री व्यभिचार करते हुए पकड़ी गयी है। संहिता में मूसा ने हमें ऐसी स्त्रियों को पत्थरों से मार डालने का आदेश दिया है। आप इसके विषय में क्या कहते हैं?” उन्होंने येसु की परीक्षा लेते हुए यह कहा, जिससे उन्हें उन पर दोष लगाने का कोई आधार मिल जाये। येसु झुक कर उँगली से भूमि पर लिखते रहे। जब वे उन से उत्तर देने के लिए आग्रह करते रहे, तो येसु ने सिर उठा कर उन से कहा, “तुम में से जो निष्पाप हो, वही सब से पहले इसे पत्थर मारे।” और वह फिर झुक कर भूमि पर लिखने लगे। यह सुन कर बड़ों से ले कर छोटों तक, सब के सब, एक-एक करके खिसक गये। येसु अकेले रह गये और वह स्त्री बीच में खड़ी रही। तब येसु ने सिर उठा कर उस से कहा, “नारी! वे लोग कहाँ है? क्या एक ने भी तुम्हें दण्ड नहीं दिया?” उसने उत्तर दिया, “महोदय! एक ने भी नहीं। इस पर येसु ने उस से कहा, “मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूँगा। जाओ और अब से फिर पाप नहीं करना।”

प्रभु का सुसमाचार।

वैकल्पिक सुसमाचार - वर्ष C में जब ऊपर का सुसमाचार इतवार को पढ़ कर सुनाया गया है।

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 8:12-20

येसु ने फिर लोगों से कहा; “संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा, उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।” फरीसियों ने उन से कहा, “आप अपने विषय में साक्ष्य देते हैं। आपका साक्ष्य मान्य नहीं है।” येसु ने उत्तर दिया, “मैं अपने विषय में साक्ष्य देता हूँ। फिर भी मेरा साक्ष्य मान्य है, क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। परन्तु तुम लोग नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। तुम मनुष्य की दृष्टि से न्याय करते हो। मैं किसी का न्याय नहीं करता और यदि न्याय भी करूँ, तो मेरा निर्णय सही होगा, क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ। जिसने मुझे भेजा है, वह मेरे साथ है। तुम लोगों की संहिता में लिखा है कि दो व्यक्तियों का साक्ष्य मान्य है। मैं अपने विषय में साक्ष्य देता हूँ और पिता भी, जिसने मुझे भेजा है, मेरे विषय में साक्ष्य देता है।” इस पर उन्होंने येसु से कहा, “कहाँ है आपका वह पिता?” उन्होंने उत्तर दिया, “तुम लोग न तो मुझे जानते हो और न मेरे पिता को। यदि तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जान जाते।” येसु ने मंदिर में शिक्षा देते हुए यह सब खजाने के पास कहा। किसी ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया, क्योंकि अब तक उनका समय नहीं आया था।

प्रभु का सुसमाचार।