विधर्मी कुतर्क करते हुए आपस में यह कहते थे - हम धर्मात्मा के लिए फन्दा लगायें, क्योंकि वह हमें परेशान करता और हमारे आचरण का विरोध करता है। वह हमें संहिता भंग करने के कारण फटकारता है और हम पर हमारी परम्पराओं को त्याग देने का अभियोग लगाता है। वह समझता है कि वह ईश्वर को जानता है और अपने को प्रभु का पुत्र कहता है। वह हमारे विचारों के लिए जीवित चुनौती है। उसे देखने मात्र से हमें अरुचि होती है। उसका आचरण दूसरों जैसा नहीं और उसके मार्ग भिन्न हैं। वह हमें खोया और अपवित्र समझ कर हमारे संपर्क से दूर रहता है। वह धर्मियों की अंतगति को सौभाग्यशाली बताता और शेखी मारता है कि ईश्वर उसका पिता है। हम यह देखें कि उसका दावा कहाँ तक सच है; हम यह पता लगायें कि अन्त में उसका क्या होगा। यदि वह धर्मात्मा ईश्वर का पुत्र है, तो ईश्वर उसकी सहायता करेगा और उसे उसके विरोधियों के हाथ से छुड़ायेगा। हम अपमान और अत्याचार से उसकी परीक्षा लें, जिससे हम उसकी विनम्रता जान जायें और उसका धैर्य परख सकें। हम उसे घिनावनी मृत्यु का दण्ड दिलायें क्योंकि उसका दावा है कि वह सुरक्षित ही रहेगा। वे ऐसा सोचते थे, किन्तु यह उनकी भूल थी। उनकी दुष्टता ने उन्हें अंधा बना दिया था। वे ईश्वर के रहस्य नहीं जानते थे। वे न तो धार्मिकता के प्रतिफल में विश्वास करते थे और न धर्मात्माओं के पुरस्कार में।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है।
1. प्रभु कुकर्मियों से मुँह फेर लेता और पृथ्वी पर से उनकी स्मृति मिटा देता हैं। धर्मी प्रभु की दुहाई देते हैं। वह उनकी सुनता और हर प्रकार की विपत्ति में उनकी रक्षा करता है।
2. प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, वह उन्हें सँभालता है। धर्मी विपत्तियों से घिरा रहता है, किन्तु उन सबों से प्रभु उसे छुड़ाता हैं।
3. प्रभु उसकी हड्डियों की रक्षा करता है; उसकी एक भी हड्डी नहीं रौंदी जायेंगी। प्रभु अपने सेवकों की आत्मा को छुड़ाता है। जो प्रभु की शरण में जाता है, वह कभी नष्ट नहीं होगा।
मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है, वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।
उस समय येसु गलीलिया में भी घूमते थे। वह यहूदिया में घूमना नहीं चाहते थे, क्योंकि यहूदी उन्हें मार डालने की ताक में रहते थे। यहूदियों का शिविर-पर्व निकट था। जब येसु के भाई पर्व के लिए जा चुके थे, तो वह भी प्रकट रूप में नहीं, बल्कि जैसे गुप्त रूप में पर्व के लिए चल पड़े। कुछ येरुसालेम-निवासी यह कहने लगे, “क्या यह वही नहीं है, जिसे हमारे नेता मार डालने की ताक में रहते हैं? देखो तो, यह प्रकट रूप से बोल रहा है और वे इस से कुछ नहीं कहते। क्या उन्होंने सचमुच मान लिया कि यह मसीह है? फिर भी हम जानते हैं कि यह कहाँ का है; परन्तु जब मसीह प्रकट हो जायेंगे, तो किसी को यह पता भी नहीं चलेगा कि वह कहाँ के हैं।” येसु ने मंदिर में शिक्षा देते- हुए पुकार कर कहा, “तुम लोग मुझे भी जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी ही इच्छा से नहीं आया हूँ। जिसने मुझे भेजा है, वह सच्चा है। तुम लोग उसे नहीं जानते। मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उसके यहाँ से आया हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” इस पर वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला; क्योंकि अब तक उनका समय नहीं आया था।
प्रभु का सुसमाचार।