चालीसे का चौथा सप्ताह - बृहस्पतिवार

पहला पाठ

निर्गमन-ग्रन्थ 32:7-14“हे प्रभु! अपनी प्रजा के पाप क्षमा कर।”

प्रभु ने मूसा से कहा, “पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा, जिसे तुम मिस्र से निकाल लाये हो, भटक गयी है। उन लोगों ने शीघ्र ही मेरा बताया हुआ मार्ग छोड़ दिया। उन्होंने अपने लिए ढली हुई ऋतु का बछड़ा बना कर उसे दण्डवत्‌ किया और उसे बलि चढ़ा कर कहा, “हे इस्राएल! यही तुम्हारा ईश्वर है। यही तुम्हें मिस्र से निकाल लाया है।” प्रभु ने मूसा से कहा, “मैं देख रहा हूँ कि ये लोग कितने हठधर्मी हैं। मुझे इनका नाश करने दो। मेरा क्रोध भड़क उठेगा और इनका सर्वनाश करेगा। तब मैं तुम्हारे द्वारा एक महान्‌ राष्ट्र उत्पन्न करूँगा।” मूसा ने अपने प्रभु-ईश्वर का क्रोध शांत करने के उद्देश्य से कहा, “हे प्रभु! यह तेरी प्रजा है, जिसे तू सामर्थ्य तथा भुजबल से मिस्र से निकाल लाया है। इस पर तू केसे क्रोध कर सकता है? अपने सेवकों को, इब्राहीम, इसहाक और याकूब को याद कर; तूने शपथ खा कर उन्हें यह प्रतिज्ञा की है - मैं तुम्हारी सन्तति को स्वर्ग के तारों की तरह असंख्य बनाऊँगा और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे वंशजों को यह समस्त देश प्रदान करूँगा और वे सदा के लिए इसके उत्तराधिकारी हो जायेंगे।” तब प्रभु ने अपनी प्रजा को दण्ड देने की जो धमकी दी थी, उसका विचार छोड़ दिया।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 105:19-23

अनुवाक्य : हे प्रभु! तू अपनी प्रजा को प्यार करता है, मुझे भी याद कर।

उन्होंने होरेब में एक बछड़ा बनाया, उन्होंने एक प्रतिमा की आराधना की। उन्होंने अपने महिमामय ईश्वर के बदले घास खाने वाले बैल की प्रतिमा की शरण ली।

2. उन्होंने अपने उस मुक्तिदाता ईश्वर को भुला दिया, जिसने मिस्र देश में अपूर्व कार्य किये, हाम देश में महान्‌ चमत्कार दिखाये और उनके शत्रुओं को लाल समुद्र में मारा था।

3. वह उनका सर्वनाश करने की सोच रहा था, किन्तु उसका कृपापात्र मूसा बीच में आया। मूसा ने उनके लिए प्रार्थना की और ईश्वर ने उन पर से अपना क्रोध हटा लिया।

जयघोष : योहन 3:16

ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करे, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे।

सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:31-47

“तुम पर अभियोग लगाने वाले मूसा हैं, जिस पर तुम भरोसा रखते हो।”

येसु ने यहूदियों से कहा, “यदि मैं अपने विषय में साक्ष्य दूँ, तो मेरा साक्ष्य मान्य नहीं है। कोई दूसरा मेरे विषय में साक्ष्य देता है और मैं जानता हूँ कि वह मेरे विषय में जो साक्ष्य देता है, वह मान्य है। तुम लोगों ने योहन से पुछवाया और उसने सत्य के संबंध में साक्ष्य दिया है। मुझे किसी मनुष्य के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं। यह तो मैं इसलिए कहता हूँ कि तुम लोग मुक्ति पा सको। योहन एक जलता और चमकता हुआ द्वीपक था। उसकी ज्योति में थोड़ी देर तक आनन्द मनाना तुम लोगों को अच्छा लगा। परन्तु मुझे जो साक्ष्य प्राप्त है, वह योहन के साक्ष्य से भी महान्‌ है। पिता ने जो कार्य मुझे पूरा करने को सौंपे हैं, जो कार्य मैं करता हूँ, वे ही मेरे विषय में यह साक्ष्य देते हैं कि पिता ने मुझे भेजा है। पिता ने भी, जिसने मुझे भेजा है, मेरे विषय में साक्ष्य दिया हैं। तुम लोगों ने न तो कभी उसकी वाणी सुनी है और न उसका रूप ही देखा है। उसकी शिक्षा तुम लोगों के हृदय में घर नहीं कर सकी, क्योंकि तुम उस में विश्वास नहीं करते जिसे उसने भेजा है।” “'तुम लोग यह समझ कर धर्मग्रस्थ का अनुशीलन करते हो कि उस में तुम्हें अनन्त जीवन का मार्ग मिलेगा। वही धर्मग्रन्थ मेरे विषय में साक्ष्य देता है, फिर भी तुम लोग जीवन प्राप्त करने के लिए मेरे पास आना नहीं चाहते।” “मैं मनुष्यों की ओर से सम्मान नहीं चाहता। मैं तुम लोगों के विषय में जानता हूँ कि तुम ईश्वर से प्रेम नहीं रखते। मैं अपने पिता के नाम पर आया हूँ, फिर भी तुम लोग मुझे स्वीकार नहीं करते। यदि कोई अपने ही नाम पर आये, तो तुम लोग उसको स्वीकार करोगे। तुम लोग एक दूसरे से सम्मान चाहते हो और वह सम्मान नहीं चाहते, जो एकमात्र ईश्वर की ओर से आता है। तो तुम लोग केसे विश्वास कर सकते हो? यह न समझो कि मैं पिता के सामने तुम लोगों पर अभियोग लगाऊँगा। तुम पर अभियोग लगाने वाले तो मूसा हैं, जिन पर तुम भरोसा रखते हो। यदि तुम लोग मूसा पर विश्वास करते, तो मुझ पर भी विश्वास करते; क्योंकि उन्होंने मेरे विषय में लिखा है। यदि तुम लोग उनके लेखों पर विश्वास नहीं करते, तो मेरी शिक्षा पर केसे विश्वास करोगे?”

प्रभु का सुसमाचार।