स्वर्गदूत मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मंदिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मंदिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मंदिर के दक्षिण पार्शव के नीचे से बह रहा था। स्वर्गदूत मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पार्श्व से टपक रहा है। उसने हाथ में माप की डोरी ले कर पूर्व की ओर जाते हुए एक हजार हाथ की दूरी नापी। तब उसने मुझे जलधारा को पार करने को कहा - पानी टखनों तक था। उसने फिर एक हजार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने को कहा - पानी घुटनों तक था। उसने फिर एक हजार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने को कहा - पानी कमर तक था। उसने फिर एक हजार हाथ की दूरी नापी - अब मैं उस जलधारा को पार नहीं कर सकता था, पानी इतना बढ़ गया था कि तैर कर ही उसे पार करना संभव था। उसने मुझ से कहा, “मनुष्य के पुत्र! क्या आपने देखा?” तब वह मुझे ले गया और बाद में उसने मुझे फिर जलधारा के किनारे पर पहुँचा दिया। वहाँ लौटने पर मुझे जलधारा के दोनों तटों पर बहुत-से पेड़ दिखाई पड़े। उसने मुझ से कहा, “यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है। यह नदी जहाँ कहीं गुजरती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलियाँ पायी जायेंगी, क्योंकि यह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है और जहाँ कहीं भी पहुँचती है, जीवन प्रदान करती है। नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़ उगेंगे - उनके पत्ते नहीं मुरफायेंगे और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे, क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।”
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : विश्वमंडल का प्रभु हमारे साथ है, याकूब का ईश्वर हमारा गढ़ है।
1. ईश्वर हमारा आश्रय और सामर्थ्य है। वह संकट में सदा हमारी सहायता करता है। इसलिए हम नहीं डरेंगे - चाहे पृथ्वी काँप उठे, चाहे पर्वत समुद्र के गर्त्त में खिसक जायें।
2. एक नदी ईश्वर के नगर का, सर्वोच्च ईश्वर के पवित्र निवासस्थान को आनन्दित कर देती है। ईश्वर उस नगर में रहता है, वह कभी नष्ट नहीं होगा, ईश्वर प्रात:काल उसकी सहायता करता है।
3. विश्वमंडल का प्रभु हमारे साथ है, याकूब का ईश्वर हमारा गढ़ है। आओ! प्रभु के अपूर्व कार्यों का मनन करो, वह पृथ्वी पर महान् चमत्कार दिखाता है।
हे ईश्वर! मेरा हदय फिर शुद्ध कर और मुक्ति का आनन्द मुझे फिर प्रदान कर।
येसु यहूदियों के किसी पर्व के अवसर पर येरुसालेम गये। येरुसालेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बेथेस्दा कहलाता है। उसके पाँच मंडप हैं। उन में से बहुत-से रोगी - अंधे, लैंगड़े और अर्धागरोगी - पड़े हुए थे। वहाँ एक मनुष्य था, जो अड्तीस वर्ष से बीमार था। येसु ने उसे पड़ा हुआ देखा और यह जान कर कि वह बहुत समय से इसी तरह पड़ा हुआ है, उस से कहा, “क्या तुम अच्छा हो जाना चाहते हो?” रोगी ने उत्तर दिया, “महोदय। मेरा कोई नहीं है, जो पानी के लहराते ही मुझे कुण्ड में उतार दे। मेरे पहुँचने से पहले ही उस में कोई और उतर पड़ता है।” येसु ने उस से कहा, '“उठ कर खड़े हो जाओ। अपनी चारपाई उठाओ और चलो।” उसी क्षण वह मनुष्य अच्छा हो गया और अपनी चारपाई उठाकर चलने-फिरने लगा। वह विश्राम का दिन था। इसलिए यहूदियों ने उससे, जो अच्छा हो गया था, कहा, “आज विश्राम का दिन है। चारपाई उठाना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।” उसने उत्तर दिया, “जिसने मुझे अच्छा किया, उसी ने मुझ से कहा - अपनी चारपाई उठाओ और चलो।” उन्होंने उस से पूछा, “कौन है वह, जिसने तुम से कहा - अपनी चारपाई उठाओ और चलो?” चंगा किया हुआ मनुष्य नहीं जानता था कि वह कौन है, क्योंकि उस जगह बहुत भीड़ थी और येसु चुपके से चले गये थे। बाद में मंदिर में मिलने पर येसु ने उस से कहा, “देखो, तुम चंगे हो गये हो। फिर पाप नहीं करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम पर और भी भारी संकट आ पड़े।” उस मनुष्य ने जा कर यहदूदियों को बताया कि जिन्होंने मुझे चंगा किया है, वह येसु हैं। यहूदी येसु को इसलिए सताते थे कि वह विश्राम के दिन ऐसे काम किया करते थे।
प्रभु का सुसमाचार।