चालीसे का चौथा सप्ताह - वैकल्पिक मिस्सा

[ये पाठ इसी सप्ताह के किसी भी दिन पढ़ कर सुनाये जा सकते हैं। विशेष कर वर्ष B और C में।]

पहला पाठ

नबी मीका का ग्रन्थ 7:7-9

“मैं खड़ा हो जाऊँगा। मैं अंधकार में बैठा हूँ, किन्तु प्रभु मेरी ज्योति है।”

मैं प्रभु की राह देखता रहूँगा, मैं अपने मुक्तिदाता पर भरोसा रखूँगा। मेरा ईश्वर मेरी प्रार्थना स्वीकार करेगा। मैं अपने शत्रुओं के उपहास का कारण न बनूँ। मैं गिर गया हूँ, किन्तु खड़ा हो जाऊँगा; मैं अंधकार में बैठा हूँ किन्तु प्रभु मेरी ज्योति है। मैंने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है, इसलिए मुझे तब तक उसका क्रोध सहना पड़ेगा, जब तक वह मेरे मामले पर विचार न करे और मुझे न्याय न दिलाये। वह मुझे ज्योति तक ले जायेगा और मैं उसकी न्याय-प्रियता के दर्शन करूँगा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 26:1,7-9,13-14

अनुवाक्य : प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है।

<1. प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?

2. हे प्रभु! तू मेरी पुकार पर धयान दे, मुझ पर दया कर और मेरी सुन। प्रभु की शरण में जाना - यही मेरे हदय की अभिलाषा रही।

3. मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ, अपना मुख मुझ से न छिपा। अप्रसन्न हो कर अपने सेवक को न त्याग, क्योंकि तू ही मेरा सहारा है।

4. मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा। प्रभु पर भरोसा रखो, दृढ़ रहो और प्रभु पर भरोसा रखो।

सुसमाचार

जयघोष : योहन 8:12

प्रभु कहते हैं, “संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।”

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:1-41

“वह गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा।”

रास्ते में येसु ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था। उसके शिष्यों ने उन से पूछा, “गुरुवर! किसने पाप किया था, इसने अथवा इसके माँ-बाप ने, जो यह मनुष्य जन्म से अंधा है?” येसु ने उत्तर दिया, “न तो इस मनुष्य ने पाप किया और न इसके माँ-बाप ने। यह इसलिए जन्म से अंधा है कि इसे चंगा करने से ईश्वर का सामर्थ्य प्रकट हो जाये। जिसने मुझे भेजा है, हमें उसका कार्य दिन बीतने से पहले ही पूरा कर देना है। रात आ रही है, जब कोई भी काम नहीं कर सकता। मैं जब तक संसार में हूँ, तब तक संसार की ज्योति हूँ।” उन्होंने यह कह कर भूमि पर थूका, थूक से मिट्टी सानी और वह मिट्टी अंधे की आँखों पर लगा कर उस से कहा, “जाओ, सिलोआम के कुण्ड में नहा लो।” सिलोआम का अर्थ है 'प्रेषित'। वह मनुष्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा। उसके पड़ोसी और वे लोग, जो उसे पहले भीख माँगते देखा करते थे, बोले “क्या यह वही नहीं है, जो बैठे हुए भीख माँगा करता था?” कुछ लोगों ने कहा, “हाँ, यह वही है।” कुछ ने कहा, “नहीं, यह उस जैसा कोई और होगा”। उसी ने कहा "मैं वही हूँ।” इस पर लोगों ने उस से पूछा, “तो, तुम केसे देखने लगे?”' उसने उत्तर दिया, “जो मनुष्य येसु कहलाते हैं, उन्होंने मिट्टी सानी और उसे मेरी आँखों पर लगा कर कहा - सिलोआम जाओ और नहा लो। मैं गया और नहाने के बाद देखने लगा।” उन्होंने उस से पूछा, “वह कहाँ है?” और उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता”। लोग उस मनुष्य को, जो पहले अंधा था, फरीसियों के पास ले गये। जिस दिन येसु ने मिट्टी सान कर उसकी आँखें अच्छी की थीं, वह विश्राम का दिन था। फरीसियों ने भी उस से पूछा कि वह केसे देखने लगा। उसने उन से कहा, “उन्होंने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी और मैं नहाने के बाद देखने लगा।” इस पर कुछ फरीसियों ने कहा, “वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया है; क्योंकि वह विश्राम-दिवस के नियम का पालन नहीं करता।” कुछ लोगों ने कहा, “पापी मनुष्य ऐसे चमत्कार कैसे दिखा सकता है?” इस तरह उन में मतभेद हो गया। उन्होंने फिर अंधे से पूछा, “जिस मनुष्य ने तुम्हारी आँखें अच्छी की हैं, उसके विषय में तुम कया कहते हो?” उसने उत्तर दिया, “वह नबी हैं।”' यहूदियों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अंधा था और अब देखने लगा है। इसलिए उन्होंने उसके माता-पिता को बुला भेजा और पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है, जिसके विषय में तुम यह कहते हो कि यह जन्म से अंधा था? तो फिर यह केसे देखने लगा है?” उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम जानते हैं कि यह हमारा बेटा है और यह जन्म से अंधा था; किन्तु हम यह नहीं जानते कि यह अब केसे देखने लगा है। हम यह भी नहीं जानते कि किसने इसकी आँखें अच्छी की हैं। यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। यह अपनी बात आप ही बोलेगा।” उसके माता-पिता ने यह इसलिए कहा कि वे यहूदियों से डरते थे। यहूदी यह निर्णय कर चुके थे कि यदि कोई येसु को मसीह मानेगा तो वह सभागृह से बहिष्कृत कर दिया जायेगा। इसलिए उसके माता-पिता ने कहा - यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। उन्होंने उस मनुष्य को, जो पहले अंधा था, फिर बुला भेजा और उसे शपथ दिला कर कहा, “हम जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।” उसने उत्तर दिया, “वह पापी है या नहीं, इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। मैं यही जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखने लगा हूँ।” इस पर उन्होंने उस से फिर पूछा, “उसने तुम्हारे साथ क्या किया? उसने तुम्हारी आँखें केसे अच्छी कीं?” उसने उत्तर दिया, “मैं आप लोगों को बता चुका हूँ लेकिन आपने उस पर ध्यान नहीं दिया। अब फिर क्यों सुनना चाहते हैं? क्या आप लोग भी उनके शिष्य बनना चाहते हैं?” वे उसे बुरा-भला कहने लगे और बोले, “तू ही उसका शिष्य बन जा। हम तो मूसा के शिष्य हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर ने मूसा से बात की है, किन्तु उस मनुष्य के विषय में हम नहीं जानते कि वह कहाँ का है।” उसने उन्हें उत्तर दिया, “यही तो आश्चर्य की बात है। उन्होंने मुझे आँखें दी हैं और आप लोग यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ के हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर पापियों की नहीं सुनता। वह उन लोगों की सुनता है, जो भक्त हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्मांध को आँखें दी हैं। यदि वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया होता, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता।”' उन्होंने उस से कहा, “तू तो बिलकुल पाप में ही जन्मा है, तू हमें सिखलाने चला है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया। येसु ने सुना कि फरीसियों ने उसे बाहर निकाल दिया है; इसलिए मिलने पर उन्होंने उस से कहा, “क्या तुम मानव पुत्र ग में विश्वास करते हो?” उसने उत्तर दिया, "महोदय! मुझे बता दीजिए कि वह कौन है, जिससे मैं उस में विश्वास कर सकूँ"! येसु ने उस से कहा, “तुमने उसे देखा है; वह तो तुम से बातें कर रहा है।” उसने उन्हें दण्डवत्‌ करते हुए कहा, “प्रभु! मैं विश्वास करता हूँ.।” येसु ने कहा, "मैं लोगों के पृथक्करण का निमित्त बन कर संसार में आया हूँ, जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं, वे अंधे बन जायें।” जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुन कर बोले, “क्या हम भी अंधे हैं?” येसु ने उस से कहा, “यदि तुम लोग अंधे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता।”

प्रभु का सुसमाचार।