चालीसे का चौथा सप्ताह, इतवार – वर्ष A

पहला पाठ

दाऊद येस्से का सब से छोटा बेटा था। फिर भी ईश्वर ने उसे यहूदियों का राजा बनने के लिए चुन लिया, क्योंकि ईश्वर मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य बाहरी रूप-रंग देखता है, किन्तु प्रभु हदय देखता है।

समूएल का पहला ग्रंथ 16:1,6-7,10-13

“दाऊद को इस्राएल के राजा का अभिषेक दिया जाता है।”

प्रभु ने समूएल से कहा, “तुम सींग में तेल भर कर लाओ। मैं तुम्हें बेथलेहेम-निवासी येस्से के यहाँ भेजता हूँ, क्योंकि मैंने उसके पुत्रों में से एक को राजा चुना है”। जब येस्से के पुत्र समूएल के सामने आये, तो समूएल एलिआब को देख कर यह सोचने लगा कि निश्चय ही यही ईश्वर का अभिषिक्त है। परन्तु ईश्वर ने समूरल से कहा, “उसके रूप-रंग और लम्बे कद का ध्यान न रखो। मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य तो बाहरी रूप-रंग देखता है, किन्तु प्रभु हृदय देखता है”। जब येस्से अपने सात पुत्रों को समूएल के सामने उपस्थित कर चुका, तो समूएल ने येस्से से कहा, “प्रभु ने उन में से किसी को नहीं चुना”। उसने येस्से से पूछा, “क्या तुम्हारे पुत्र इतने ही हैं?” येस्से ने उत्तर दिया, “सब से छोटा यहाँ नहीं है, वह भेड़ें चरा रहा है”। तब समूएल ने येस्से से कहा, “उसे बुला भेजो। जब तक वह न आये, हम भोजन पर नहीं बैठेंगे”। इसलिए येस्से ने उसे बुला भेजा। लड़के का रंग गुलाबी, उसकी आँखें सुन्दर और उसका शरीर सुडौल था। ईश्वर ने समूएल से कहा, “उठो, इसी को अभिषेक दो। यह वही है”। समूएल ने तेल का सींग हाथ में ले लिया और उसके भाइयों के सामने ही उसका अभिषेक किया। ईश्वर का आत्मा दाऊद पर छा गया और उसी दिन से उसके साथ विद्यमान रहा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 22:1-6

अनुवाक्य : . प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं।

1. प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं। वह मुझे हरे मैदानों में चराता है। वह मुझे विश्राम के लिए जल के निकट ले जाता और मुझ में नवजीवन का संचार करता है।

2. वह अपने नाम का सच्चा है, वह मुझे धर्म-मार्ग पर ले चलता है। चाहे अँधेरी घाटी हो कर जाना ही क्यों न पड़े, मुझे किसी अनिष्ट की शंका नहीं; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है। तेरी लाठी, तेरे डण्डे पर मुझे भरोसा है।

3. तू मेरे शत्रुओं के देखते-देखते मेरे लिए खाने की मेज सजाता है। तू मेरे सिर पर तेल का विलेपन करता है। तू मेरा प्याला लबालब भर देता है।

4. इस प्रकार तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। प्रभु का मंदिर ही मेरा घर है। मैं उस में अनन्तकाल तक निवास करूँगा।

दूसरा पाठ

प्रभु का शिष्य बन जाने से हम अंधकार में से निकल कर ज्योति की सन्तान बन जाते हैं, इसलिए हमें भलाई तथा सच्चाई का फल उत्पन्न करना चाहिए।

एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 5:8-14

“मृतकों में से जी उठो और मसीह तुम को आलोकित कर देंगे।”

आप लोग पहले ' अन्धकार' थे, अब प्रभु के शिष्य होने के नाते “ज्योति बन गये हैं। इसलिए ज्योति की सन्तान को तरह आचरण करें। जहाँ ज्योति है, वहाँ हर प्रकार की भलाई, धार्मिकता तथा सच्चाई उत्पन्न होती है। आप इसका पता लगाते रहें कि कौन-सी बातें प्रभु को प्रिय हैं। लोग अन्धकार में जो व्यर्थ के काम करते हैं, उन से आप दूर रहें और उनकी बुराई प्रकट करें। जो काम वे गुप्त रूप से करते हैं, उनकी चरचा करने में भी लज्जा आती है। ज्योति इन सब बातों की बुराई प्रकट करती है और इनका वास्तविक रूप स्पष्ट कर देती है। ज्योति जो कुछ आलोकित करती है, वह स्वयं ज्योति बन जाता है। इसलिए कहा गया है - नींद से जागो, मृतकों में से जी उठो और मसीह तुम को आलोकित कर देंगे।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 8:12

प्रभु कहते हैं - संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।

सुसमाचार

येसु ने कहा, “संसार की ज्योति मैं हूँ”। यहाँ वह एक जन्मांध मनुष्य को ज्योति प्रदान करते हैं, ताकि हम इस बात में दृढ़ विश्वास करें कि वह हमारी आत्मा को आध्यात्मिक ज्योति प्रदान कर सकते हैं।

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:1-41

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]
“वह मनुष्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा।”

रास्ते में येसु ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था।

[उनके शिष्यों ने उन से पूछा, “गुरुवर! किसने पाप किया था, इसने अथवा इसके माँ-बाप ने, जो यह मनुष्य जन्म से अंधा है?” येसु ने उत्तर दिया, “न तो इस मनुष्य ने पाप किया और न इसके माँ-बाप ने। वह इसलिए जन्म से अंधा है, कि इसे चंगा करने से ईश्वर का सामर्थ्य प्रकट हो जाये। जिसने मुझे भेजा है, हमें उसका कार्य दिन बीतने से पहले ही पूरा कर देना है। रात आ रही है, जब कोई भी काम नहीं कर सकता। मैं जब तक संसार में हूँ, तब तक संसार की ज्योति हूँ”।]

उन्होंने भूमि पर थूका, थूक से मिट्टी सानी और वह मिट्टी अंधे की आँखों पर लगा कर उस से कहा, “जाओ, सिलोआम के कुण्ड में नहा लो”। सिलोआम का अर्थ है 'प्रेषित'। वह मनुष्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा। उसके पड़ोसी और वे लोग, जो उसे पहले भीख माँगते देखा करते थे, बोले, “क्या यह वही नहीं है, जो बैठे हुए भीख माँगा करता था?” कुछ लोगों ने कहा, “हाँ, यह वही है”। कुछ ने कहा, “नहीं, यह उस जैसा और होगा”। उसी ने कहा, “मैं वही हूँ”।

[इस पर लोगों ने उस से पूछा, “तो, तुम केसे देखने लगे?” उसने उत्तर दिया, “जो मनुष्य येसु कहलाते हैं, उन्होंने मिट्टी सानी और उसे मेरी आँखों पर लगा कर कहा - सिलोआम जाओ और नहा लो। मैं गया और नहाने के बाद देखने लगा”। उन्होंने उस से पूछा, “वह कहाँ है?” और उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता “। लोग उस मनुष्य को, जो पहले अंधा था, फरीसियों के पास ले गये। जिस दिन येसु ने मिट्टी सान कर उसकी आँखें अच्छी की थीं, वह विश्राम का दिन था। फरीसियों ने भी उस से पूछा कि वह केसे देखने लगा। उसने उन से कहा, “उन्होंने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी और मैं नहाने के बाद देखने लगा”। इस पर कुछ फरीसियों ने कहा, “वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया है; क्योंकि वह विश्राम-दिवस के नियम का पालन नहीं करता”। कुछ लोगों ने कहा, “पापी मनुष्य ऐसे चमत्कार केसे दिखा सकता है?" इस तरह उन में मतभेद हो गया। उन्होंने फिर अंधे से पूछा, “जिस मनुष्य ने तुम्हारी आँखें अच्छी कर दी हैं, उसके विषय में तुम क्या कहते हो?” उसने उत्तर दिया,“वह नबी हैं”।

[यहूदियों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अंधा था और अब देखने लगा है। इसलिए उन्होंने उसके माता-पिता को बुला भेजा और पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है, जिसके विषय में तुम यह कहते हो कि यह जन्म से अंधा था? तो फिर यह केसे देखने लगा है?” उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम जानते हैं कि यह हमारा बेटा है और यह जन्म से अंधा था; किन्तु हम यह नहीं जानते कि यह अब केसे देखने लगा है। हम यह भी नहीं जानते कि किसने इसकी आँखें अच्छी की हैं। यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। यह अपनी बात आप ही बोलेगा”। उसके माता-पिता ने यह इसलिए कहा कि वे यहूदियों से डरते थे। यहूदी यह निर्णय कर चुके थे कि यदि कोई येसु को मसीह मानेगा, तो वह सभागृह से बहिष्कृत कर दिया जायेगा। इसलिए उसके माता-पिता ने कहा - यह सयाना हैं, इसी से पूछ लीजिए। उन्होंने उस मनुष्य को, जो पहले अंधा था, फिर बुला भेजा और उसे शपथ दिला कर कहा, “हम जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है'”। उसने उत्तर दिया, “वह पापी है या नहीं, इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। मैं यही जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखने लगा हूँ”। इस पर उन्होंने उस से फिर पूछा, “उसने तुम्हारे साथ क्या किया? उसने तुम्हारी आँखें केसे अच्छी की?” उसने उत्तर दिया, “मैं आप लोगों को बता चुका हूँ, लेकिन आपने उस पर ध्यान नहीं दिया। अब फिर क्यों सुनना चाहते हैं? क्या आप लोग भी उनके शिष्य बनना चाहते हैं?” वे उसे बुरा-भला कहने लगे और बोले, “तू ही उसका शिष्य बन जा। हम तो मूसा के शिष्य हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर ने मूसा से बात की है, किन्तु उस मनुष्य के विषय में हम नहीं जानते कि वह कहाँ का है”। उसने उन्हें उत्तर दिया, “यही तो आश्चर्य की बात है। उन्होंने मुझे आँखें दी हैं और आप लोग यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ के हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर पापियों की नहीं सुनता। वह उन लोगों की सुनता है, जो भक्त हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्मांध को आँखें दी हैं। यदि वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया होता, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता"। उन्होंने उस से कहा, “तू तो बिलकुल पाप में ही जन्मा है, तू हमें सिखलाने चला है!” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया। येसु ने सुना कि फरीसियों ने उसे बाहर निकाल दिया है; इसलिए मिलने पर उन्होंने उस से कहा, “क्या तुम मानव पुत्र में विश्वास करते हो?” उसने उत्तर दिया, “महोदय! मुझे बता दीजिए कि वह कौन है, जिससे मैं उस में विश्वास कर सकूँ"। येसु ने उस से कहा, “तुमने उसे देखा है; वह तो तुम से बातें कर रहा है”। उसने उन्हें दण्डवत्‌ करते हुए कहा, “प्रभु! मैं विश्वास करता हूँ”। येसु ने कहा, “मैं लोगों के पृथक्करण का निमित्त बन कर संसार में आया हूँ; जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं, वे अंधे बन जायें”। जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुन कर बोले, “क्या हम भी अंधे हैं?” येसु ने उन से कहा, “यदि तुम लोग अंधे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता; परन्तु तुम ही कहते हो कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है”।

प्रभु का सुसमाचार।