चालीसे का तीसरा इतवार - वर्ष C

( प्रस्तुत पाठों के बदले वर्ष A के पाठ पढ़ कर सुनाये जा सकते हैं )

पहला पाठ

जलती हुई झाड़ी की कथा में यह बताया जाता है कि ईश्वर ने अपने को मूसा पर प्रकट किया था और उन्हें विश्वास दिलाया था कि वह इस्राएलियों को मिस्र से निकाल कर, प्रतिज्ञात देश अर्थात्‌ फिलिस्तीन ले जायेगा।

निर्गमन-ग्रंथ 3:1-8,13-15

“जिसका नाम “सत्‌' है, उसी ने मुझे भेजा है।”

मूसा अपने ससुर, मदियान के याजक, यित्रो की भेड़ें चराया करता था। वह उन्हें बहुत दूर तक उजाड़ प्रदेश में ले जा कर ईश्वर के पर्वत होरेब के पास पहुँचा। वहाँ उसे झाड़ी के बीच में से निकलती हुई आग की लपट के रूप में प्रभु का दूत दिखाई दिया। उसने देखा कि झाड़ी में तो आग लगी है, किन्तु वह भस्म नहीं हो रही है। मूसा ने मन में कहा कि यह अनोखी बात निकट से देखने जाऊँगा। और इसका पता लगाऊँगा कि झाड़ी भस्म क्यों नहीं हो रही है। निरीक्षण करने के लिए उसे निकट आते देख कर ईश्वर ने झाड़ी के बीच में से पुकार कर उस से कहा, “मूसा ! मूसा !” उसने उत्तर दिया, “प्रस्तुत हूँ”। ईश्वर ने कहा, “पास मत आओ”। पैरों से जूते उतार दो, क्योंकि तुम जहाँ खड़े हो, वह पवित्र भूमि है”। ईश्वर ने फिर उस से कहा, “मैं तुम्हारे पिता का ईश्वर हूँ, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब का ईश्वर”। इस पर मूसा ने अपना मुँह ढक लिया; कहीं ऐसा न हो कि वह ईश्वर को देख ले। प्रभु ने कहा, “मैंने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दशा देखी और अत्याचारियों से मुक्ति के लिए उनकी पुकार सुनी है। मैं उनका दुःख अच्छी तरह जानता हूँ। मैं उन्हें मिस्रियों के हाथ से छुड़ा कर और इस देश से निकाल कर, एक समृद्ध तथा विशाल देश ले जाऊँगा, जहाँ दूध तथा मधु की नदियाँ बहती हैं''। मूसा ने ईश्वर से कहा, “जब मैं इस्रालियों के पास पहुँच कर उन से यह कहूँगा - तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, और वे मुझ से पूछेंगे कि उसका नाम क्याक है, तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगा ?” ईश्वर ने मूसा से कहा, “तुम इस्राएलियों को यह उत्तर दोगे - जिसका नाम “सत्‌' है, उसी ने मुझे भेजा है”। इसके बाद ईश्वर ने मूसा से कहा, “तुम इस्राएलियों से यह कहोगे - तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब के ईश्वर, प्रभु ने मुझे तुम लोगों के पास भेजा है। यह सदा के लिए मेरा नाम रहेगा। और यही नाम ले कर सब पीढ़ियाँ मुझ से प्रार्थना करेंगी”।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-4,6-8,11

अनुवाक्य : प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है।

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. वही मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमजोरियाँ दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से मुझे सँभालता है।

3. प्रभु न्यायपूर्वक शासन करता और सब पद्दलितों का पक्ष लेता है। उसने मूसा को अपने मार्ग बताये और इस्राएल को अपने महान्‌ कार्य।

4. प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। आकाश पृथ्वी के ऊपर जितना ऊँचा है, उतना महान्‌ है, अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि जो इस्राएली मिस्र से निकले थे, उन में से अधिकांश मरुभूमि में मर गये, क्योंकि वे ईश्वर की इच्छा पर चलना नहीं चाहते थे। हमें ईश्वर की कृपा मिल गयी है, किन्तु यदि हम उसकी इच्छा के विरुद्ध आचरण करेंगे तो हमारा कल्याण नहीं हो सकेगा।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 10:1-6,10-12

“मूसा के नेतृत्व में मरुभूमि में यहूदियों के जीवन का वृतान्त हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया है।”

भाइयो ! मैं आप लोगों को याद दिलाना चाहता हूँ कि हमारे सभी बाप-दादा बादल की छाया में चले, सब समुद्र पार कर गये, और इस प्रकार बादल और समुद्र का बपतिस्मा ग्रहण कर सब के सब मूसा के सहभागी बन गये। सबों ने एक ही आध्यात्मिक भोजन ग्रहण किया और एक ही आध्यात्मिक पेय का पान किया; क्योंकि वे एक आध्यात्मिक चट्टान का जल पीते थे, जो उनके सांथ-साथ चलती थी और वह चट्टान थी मसीह। फिर भी उन में से अधिकांश लोग ईश्वर के कृपापात्र नहीं बन सके। और मरुभमि में ढेर हो गये। ये घटनाएँ हम को यह शिक्षा देती हैं कि हमें उनके समान बुरी चीजों का लालच नहीं करना चाहिए। आप लोगों को कभी नहीं भुनभुनाना चाहिए; उन में से कुछ भुनभुनाये और विनाशक दूत ने उन्हें नष्ट कर दिया। यह सब दृष्टान्त के रूप में उन पर बीत गया और हमें चेतावनी देने के लिए लिखा गया है, जो युग के अन्त में विद्यमान हैं। इसलिए जो यह समझता है कि मैं दृढ़ हूँ, वह सावधान रहे - कहीं ऐसा न हो कि वह विचलित हो जाये।

प्रभु की व्राणी।

जयघोष : मत्ती 4:17

<प>प्रभु कहते हैं, “पश्चात्ताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है”।

सुसमाचार

आज के सुसमाचार से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने पापों के लिए पश्चात्ताप करना चाहिए। ईश्वर सब को पश्चात्ताप करने तथा अच्छा फल उत्पन्न करने का मौका देता है - यह अंजीर के पेड के दृष्टांत से स्पष्ट हो जाता है।

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 13:1-9

“यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब के सब उनकी तरह नष्ट हो जाओगे।”

उस समय कुछ लोग येसु को उन गलीलियों के विषय में बताने आये, जिनका रक्त पिलातुस ने उनके बलि-पशुओं के रक्त के साथ मिला दिया था। येसु ने उन से कहा, “क्या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्य सब गलीलियों से अधिक पापी थे, क्योंकि इन्हीं पर ऐसी आपत्ति पड़ी। मैं तुम से कहे देता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे तो सब के सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे। अथवा क्या तुम समझते हो कि सीलोआम की मीनार के गिरने से जो अठारह व्यक्ति दब कर मर गये, वे येरसालेम के सब निवासियों से अधिक अपराधी थे? मैं तुम से कहे देता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब के सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे”। तब येसु ने यह दृष्टान्त सुनाया, “किसी मनुष्य की दाख़बारी में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला। तब उसने दाखबारी के माली से कहा, 'देखो, मैं तीन वर्षों से इस अंजीर के पेड़ में फल खोजने आता हूँ, पर मुझे एक भी नहीं मिलता। इसे काट डालो। यह भूमि को क्यों छेंके हुए है ?' परन्तु माली ने उत्तर दिया, 'मालिक ! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा। यदि यह अगले वर्ष फल दे तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा।”

प्रभु का सुसमाचार।