चालीसे का तीसरा इतवार - वर्ष A

पहला पाठ

मिस्र देश से निकलने पर यहूदियों को प्रतिज्ञात देश अर्थात्‌ फिलिस्तीन की ओर बढ़ते हुए मरुभूमि हो कर जाना पड़ा। जब पानी नहीं मिला, तो ईश्वर ने मूसा से कहा कि वह चट्टान पर डण्डे से प्रहार करे। चट्टान पर प्रहार करने से उस में से पानी फूट निकला। कलीसिया ने उस चट्टान को मसीह का प्रतीक समझा, जिनके द्वारा बपतिस्मा में हमें संजीवन जल मिलता है।

निर्गमन-ग्रंथ 17:3-7

“हमें पीने के लिए पानी दीजिए।”

लोगों को वहाँ बड़ी प्यास लगी और वे यह कह कर मूसा के विरुद्ध भुनभुना रहे थे, “क्या आप हमें इसलिए मिस्र से निकाल लाये कि हम अपने बाल-बच्चों और बैल-गायों के साथ प्यास से मर जायें?” मूसा ने प्रभु की दुहाई दे कर कहा, “मैं इन लोगों का क्या करूँ? ये मुझे पत्थरों से मार डालने पर उतारू हैं”। प्रभु ने मूसा को यह उत्तर दिया, “इस्राएल के कुछ नेताओं के साथ-साथ लोगों के आगे-आगे चलो। अपने हाथ में वह डण्डा ले लो जिसे तुमने नील नदी पर मारा था और आगे बढ़ते जाओ। मैं वहाँ होरेब की एक चट्टान पर तुम्हारे सामने खड़ा रहूँगा। तुम उस चट्टान पर डण्डे से प्रहार करो। उस में से पानी फूट निकलेगा और लोगों को पीने को मिलेगा”। मूसा ने इस्राएल के नेताओं के सामने ऐसा ही किया। उसने उस स्थान का नाम ‘मस्सा' और 'मरीबा' रखा, क्योंकि इस्राएलियों ने उसके साथ विवाद किया था और यह कह कर ईश्वर को चुनौती दी थी, “ईश्वर हमारे साथ है या नहीं ?'

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 94:1-2,6-9

अनुवाक्य : आज अपना हृदय कठोर न बनाओ और ईश्वर की वाणी सुनो।

1. आओ! हम प्रभु के सामने आनन्द मनायें, अपने शक्तिशाली त्राणकर्ता का गुणगान करें। हम स्तुति करते हुए उसके पास जायें, भजन गाते हुए उसे धन्य कहें।

2. आओ ! हम दण्डवत्‌ कर प्रभु की आराधना करें। अपने सृष्टिकर्ता के सामने घुटने टेकें। वही तो हमारा ईश्वर है और हम हैं उसके चरागाह की प्रजा, उसकी अपनी भेडें।

3. ओह ! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, “अपना हृदय कठोर न बनाओ, जैसा कि पहले मरीबा और मस्सा की मरुभूमि में हुआ था। उस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी परीक्षा ली। मेरे कार्यों को देखते हुए भी, उन्होंने मुझ में विश्वास नहीं किया”।

दूसरा पाठ

मसीह के द्वारा हमें ईश्वर की कृपा प्राप्त हो गयी है। मसीह ने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित्त किया और हमारे लिए अनन्त जीवन का द्वार खोल दिया।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 5:1-2,5-8

“ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा को प्रदान किया है; उसी के द्वारा ईश्वर का प्रेम हमारे हदयों में उमड़ पड़ा है।”

ईश्वर ने हमारे विश्वास के कारण हमें धार्मिक माना है। हम अपने प्रभु येसु मसीह के द्वारा ईश्वर से मेल बनाये रखें। मसीह ने हमारे लिए उस अनुग्रह का द्वार खोला है, जो हमें प्राप्त हो गया है। हम इस बात पर गौरव करें कि हमें ईश्वर की महिमा के भागी बनने की आशा है। यह आशा व्यर्थ नहीं होगी, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा को प्रदान किया है। और उसी के द्वारा ईश्वर का प्रेम हमारे हदयों में उमड़ पड़ा है। हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये। धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता हैं कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये, किन्तु हम पापी ही थे जब मसीह हमारे लिए मर गये थे; इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 4:42,15

हे प्रभु ! आप संसार के मुक्तिदाता हैं। मुझे वह संजीवन जल दीजिए, जिससे फिर कभी प्यास न लगे।

सुसमाचार

मरुभूमि में इस्राएलियों को ईश्वर की ओर से साधारण पानी मिला था। येसु समारी स्त्री को बताते हैं कि वह संजीवन जल प्रदान करते हैं। वह स्त्री विश्वास करती है और अपने गाँव वालों को भी मसीह में विश्वास करने के लिए प्रेरित करती है।

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:5-42

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]
“एक जलस्त्रोत जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहता है।”

येसु समारिया के सिकार नामक नगर पहुँचे। वह उस भूमि के निकट था, जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था। वहाँ याकूब का झरना था। येसु यात्रा से थक गये थे, इसलिए वह झरने के पास बैठ गये। उस समय दोपहर हो चला था। एक समारी स्त्री पानी खींचने आयी। येसु ने उस से कहा, “मुझे पानी पिला दो,” क्योंकि उनके शिष्य नगर में भोजन खरीदने गये थे। यहूदी लोग समारियों से कोई संबंध नहीं रखते। इसलिए समारी स्त्री ने उन से कहा, 'आप यहूदी हो कर भी मुझ समारी से पीने के लिए पानी माँगते हैं ?' येसु ने उत्तर दिया, 'यदि तुम ईश्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है जो तुम से कहता है - मुझे पानी पिला दो, तो तुम उस से माँगती और वह तुम्हें संजीवन जल देता'। स्त्री ने उस से कहा, ' महोदय ! पानी खींचने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं है और कूआँ गहरा है; तो आप का वह संजीवन जल कहाँ से मिलेगा? क्या आप हमारे पिता याकूब से भी महान्‌ हैं? उन्होंने हमें यह कूआँ दिया है। वह स्वयं, उनके पुत्र और उनके पशु भी उस में से पानी पीते थे'। येसु ने कहा, 'जो कोई यह पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी; किन्तु जो मेरा दिया हुआ जल पीता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में वह स्त्रोत बन जायेगा जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहता है'। इस पर स्त्री ने कहा, 'महोदय ! मुझे वह जल दीजिए, जिससे मुझे फिर प्यास न लगे और मुझे यहाँ पानी खींचने नहीं आना पड़े'

[येसु ने उस से कहा, 'जा कर अपने पति को बुला लाओ'। स्त्री ने उत्तर दिया, 'मेरा कोई पति नहीं है। येसु ने उस से कहा, “तुमने ठीक ही कहा कि मेरा कोई पति नहीं है। तुम्हारे पाँच पति रह चुके हैं और जिसके साथ अभी रहती हो, वह तुम्हारा पति नहीं है। यह तो तुमने ठीक ही कहा है'। स्त्री ने उन से कहा, ]

“महोदय ! मैं समझ गयी, आप नबी हैं। हमारे पुरखे इस पहाड़ पर आराधना करते थे और आप लोग कहते हैं कि येरुसालेम में आराधना करनी चाहिए”। येसु ने उस से कहा, “नारी ! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह समय आ रहा है, जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर और न येरुसालेम में ही पिता की आराधना करोगे। तुम लोग जिसकी आराधना करते हो, उसे नहीं जानते। हम लोग जिसकी आराधना करते हैं, उसे जानते हैं, क्योंकि मुक्ति यहूदियों से ही प्रारंभ होती है। परन्तु वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब सच्चे आराधक आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे। पिता ऐसे ही आराधकों को चाहता है। ईश्वर आत्मा है। उसके आराधकों को चाहिए कि वे आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें”। स्त्री ने कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह, जो ख़ीस्त कहलाते हैं, आने वाले हैं, जब वह आयेंगे, तो हमें सब कुछ बता देंगे''। येसु ने उस से कहा, “मैं, जो तुम से बोल रहा हूँ, वही हूँ”।

[उसी समय शिष्य आ गये और उन्हें एक स्त्री के साथ बातें करते देख 'कर अचंम्भे में पड़ गये, फिर भी किसी ने यह नहीं कहा, 'इस से आप को क्या?' अथवा, ' आप इस से क्यों बातचीत करते हैं?' उस स्त्री ने अपना घड़ा वहीं छोड़ दिया और नगर में जा कर लोगों से कहा “चलिए एक मनुष्य को देख लीजिए जिसने मुझे वह सब, जो मैंने किया है, बता दिया है। कहीं वह मसीह तो नहीं हैं ?' इसलिए वे लोग येसु से मिलने के लिए नगर से निकले। इसी बीच उनके शिष्य उन से यह कह कर अनुरोध करते रहे, 'गुरुवर ! खा लीजिए’। उन्होंने उन से कहा, 'खाने के लिए मेरे पास वह भोजन है, जिसके विषय में तुम लोग कुछ नहीं जानते इस पर शिष्य आपस में कहने लगे, 'क्या कोई उनके लिए खाने को कुछ ले आया है?' इस पर येसु ने उन से कहा, “जिसने मुझे भेजा है, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है। क्या तुम नहीं कहते कि अब कटनी के चार महीने रह गये हैं? परन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ - आँखें उठा कर खेतों को देखो। वे कटनी के लिए पक चुके हैं। अब तक लुनने वाला मजदूरी पाता और अनन्त जीवन के लिए फसल जमा करता है, जिससे बोने वाला और लुनने वाला, दोनों मिल कर आनन्द मनायें, क्योंकि यहाँ यह कहावत ठीक उतरती है - एक बोता है और दूसरा लुनता है। मैंने तुम लोगों को वह खेत लुनने भेजा है, जिस में तुमने परिश्रम नहीं किया - दूसरों ने परिश्रम किया है और तुम्हें उनके परिश्रम का फल मिल रहा है।' ]

उस स्त्री ने कहा था - उन्होंने मुझे वह सब, जो मैंने किया है, बता दिया है। इस कारण उस नगर के बहुत-से समारियों ने येसु में विश्वास किया। इसलिए जब वे उनके पास आये, तो उन्होंने अनुरोध किया कि, आप हमारे यहाँ रहिए'। वह दो दिन वहीं रहे। बहुत-से अन्य लोगों ने उनका उपदेश सुन कर उन में विश्वास किया और उस स्त्री से कहा, ' अब हम तुम्हारे कहने के कारण ही विश्वास नहीं करते। हमने स्वयं उन्हें सुन लिया है और हम जान गये कि वह सचमुच संसार के मुक्तिदाता हैं'।

प्रभु का सुसमाचार।