चालीसे का दूसरा सप्ताह – इतवार – चक्र B

पहला पाठ

इब्राहीम ईश्वर के आदेश पर, अपने एकलौते पुत्र को भी बलि चढ़ाने के लिए तैयार हो गये। इस आज्ञापालन के कारण वह ईश्वर के कृपापात्र बन गये और उनके वंश में मसीह उत्पन्न हुए। इस तरह इब्राहीम के द्वारा सब राष्ट्रों का कल्याण हुआ।

उत्पत्ति-ग्रंथ 22:2-9,13,15-18

“हमारे पूर्वज इब्राहीम का बलिदान।”

ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, “इब्राहीम ! इब्राहीम ! ” और उसने उत्तर दिया, “मैं प्रस्तुत हूँ”। ईश्वर ने कहा, “अपने पुत्र को, अपने एकलौते को, परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश चले जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, तुम उसे बलि चढ़ा दोगे।” जब वे उस जगह पहुँचे जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छूरा उठा लिया। किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, “इब्राहीम ! इब्राहीम !” और उसने उत्तर दिया, “मैं प्रस्तुत हूँ।” दूत ने कहा, “बालक पर हाथ नहीं डालना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो - तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया”। इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जा कर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया। ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर बोला, “यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ - तुमने यह काम किया है : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया; इसीलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्रतट के बालू की तरह तेरे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे। तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा”।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 115:10-17,19

अनुवाक्य : मैं प्रभु के निकट, जीवितों के देश में टहलता रहूँगा।

1. यद्यपि मैं ने कहा, “मैं अत्यन्त दुःखी हूँ”, तब भी मैंने भरोसा नहीं छोड़ दिया। अपने भक्तों की मृत्यु से प्रभु को भी दुःख होता है।

2. हे प्रभु! मैं तेरा सेवक हूँ, तेरा दास हूँ। तूने मेरे बंधन खोल दिये। मैं प्रभु का नाम लेते हुए तुझे धन्यवाद का बलिदान चढ़ाऊँगा।

3. हे येरुसालेम ! मैं तेरे मध्य में, ईश्वर के मंदिर के आँगन में, प्रभु की सारी प्रजा के सामने प्रभु के लिए, अपनी मन्नतें पूरी करूँगा।

दूसरा पाठ

ईश्वर मनुष्यों को इतना प्यार करता है कि उसने हमारे लिए अपने पुत्र को भी क्रूस पर मरने का आदेश दिया। इसलिए हमें ईश्वर के प्रेम पर दृढ़ भरोसा रखना चाहिए।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:31-34

“ईश्वर ने अपने निज पुत्र को भी नहीं बचा रखा।”

भाइयो ! . यदि ईश्वर हमारे साथ हैं तो कौन हमारे विरुद्ध होगा? उसने-अपने निज पुत्र को भी नहीं बचा रखा, उसने हम सबों के लिए उसे समर्पित कर दिया; तो इतना देने के बाद क्या वह हमें सब कुछ नहीं देगा? ईश्वर ने जिन्हें चुन लिया है, उन पर कौन अभियोग लगा सकेगा? ईश्वर ने जिन्हें दोषमुक्त कर दिया है, उन्हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्या येसु मसीह ऐसा करेंगे ! वह तो मर गये, बल्कि जी उठे और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो कर हमारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : मत्ती 17:5

चमकीले बादल में से पिता की यह वाणी सुनाई पड़ी, “यह मेरा परमप्रिय पुत्र है; इसकी सुनो।”

सुसमाचार

प्रभु येसु मसीह शिष्यों के सामने अपने को ईश्वर के पुत्र के रूप में प्रकट करते हैं, जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। वह हमारा भी रूपान्तरण करेंगे और हमें अपनी विजय के भागी बना देंगे।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:2-10

“यह मेरा प्रिय पुत्र है।”

येसु ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही येसु का रूपान्तरण हो गया। उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई धोबी उन्हें इतना उजला नहीं कर सकता। शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये - वे येसु के साथ बातचीत कर रहे थे। उस समय पेत्रुस ने येसु से कहा, “गुरुवर ! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है। हम तीन तम्बू खड़ा कर दें - एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए”। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे; क्योंकि वे सब बहुत ही डर गये थे। तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, “यह मेरा प्रिय पुत्र है; इसकी सुनो”। इसके तुरन्त बाद जब शिष्य अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाने लगे, तो उन्हें येसु के सिवा और कोई नहीं दिखाई दिया। येसु ने पहाड़ पर से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है इसकी चरचा किसी से भी नहीं करना। उन्होंने येसु की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि “मृतकों में से जी उठने” का क्या अर्थ हो सकता है।

प्रभु का सुसमाचार।