मूसा ने लोगों से कहा, “पुरोहित तुम्हारे हाथ से टोकरी ले कर उसे तुम्हारे प्रभु-ईश्वर की वेदी के सामने रख देगा। तब तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर के सामने यह कहोगे - हमारे पूर्वज अरामी यायावर थे। जब वे शरण लेने के लिए मिस्र देश में बसने आये, तो थोड़े थे; किन्तु वे वहाँ एक शक्तिशाली, बहुसंख्यक तथा महान् राष्ट्र बन गये। मिस्र के लोग हमें सताने, हम पर अत्याचार करने और हम को कठोर बेगार में लगाने लगे। तब हमने प्रभु की, अपने पूर्वजों के ईश्वर की, पुकार की। प्रभु ने हमारी दुर्गति, दुःख-तकलीफ तथा हम पर किया जाने वाला अत्याचार देख कर हमारी पुकार सुन ली। आतंक फैला कर और चिह्न तथा चमत्कार दिखा कर प्रभु ने अपने बाहुबल से हमें मित्र से निकाल लिया। उसने हमें यहाँ ला कर यह देश, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं, दे दिया। हे प्रभु ! तूने मुझे जो भूमि दी है, उसकी फसल के प्रथम फल मैं तुझे चढ़ा रहा हूँ - यह कह कर तुम उन्हें अपने प्रभु-ईश्वर के सामने रखोगे और अपने प्रभु-ईश्वर को दण्डवत् करोगे”।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : है प्रभु ! तू संकट में मेरे साथ रहने की कृपा कर।
1. तुम जो सर्वोच्च के आश्रय में रहते और सर्वशक्तिमान् की छत्रछाया में सुरक्षित हो, तुम प्रभु से यह कहो, “तू ही मेरी शरण है और मेरा गढ़, तू ही मेरा ईश्वर है, तुझ पर ही मैं भरोसा रखता हूँ"।
2. न तो विपत्ति तुम पर आयेगी और न महामारी तुम्हारे घर के निकट आ पायेगी, क्योंकि उसने तुम्हारे विषय में अपने दूतों को आदेश दिया है कि तुम जहाँ कहीं भी जाओ, वे तुम्हारी रक्षा करें।
3. वे तुम्हें अपने हाथों पर सँभाल लेंगे कि कहीं तुम्हारे पैरों को पत्थर से चोट न लगे। तुम साँप और बिच्छु पर पैर रखोगे, तुम सिंह और अजगर कुचल दोगे।
4. वह मेरा भक्त है, इसलिए मैं उसका उद्धार करूँगा। वह मेरा नाम लेता है, इसलिए मैं उसकी रक्षा करूँगां। वह मेरी दुहाई देता है और मैं उसकी सुनूँगा, मैं संकट में उसके साथ रहूँगा और उसे बचा कर सम्मानित करूँगा।
धर्मग्रंथ कहता है, “वचन तुम्हारे पास ही है, वह तुम्हारे मुख में और तुम्हारे हृदय में है'' - यह विश्वास का वचन है, जिसका हम प्रचार करते हैं। क्योंकि यदि आप लोग मुख से स्वीकार करते हैं कि 'येसु प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया है, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी। हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धर्मी बनता हैं और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है। धर्मग्रंथ कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा” इसलिए यहूदी और युनानी में कोई भेद नहीं है - सबों का एक ही प्रभु है। वह उन सबों के प्रति उदार है, जो उनकी दुहाई देते हैं। क्योंकि जो कोई प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।
प्रभु की वाणी।
मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।
येसु पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर यर्दन के तट से लौटे। उस समय आत्मा उन्हें निर्जन प्रदेश ले चला। वह चालीस दिन वहाँ रहे और शैतान ने उनकी परीक्षा ली। येसु ने उन दिनों कुछ भी नहीं खाया और इसके बाद उन्हें भूख लगी। तब शैतान ने उन से कहा, “यदि आप ईश्वर के पुत्र हों, तो इस पत्थर से कह दीजिए कि यह रोटी बन जाये”। परन्तु येसु ने उत्तर दिया, 'लिखा है - मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है''। फिर शैतान उन्हें ऊपर उठा ले गया और क्षण भर में संसार के सभी राज्य दिखा कर बोला, “मैं आप को इन सभी राज्यों का अधिकार और इनका वैभव दे दूँगा। यह सब मुझे मिल गया है और मैं जिसे चाहूँ, उसे दे सकता हूँ। यदि आप मेरी आराधना करें, तो यह सब आप को मिल जायेगा” पर येसु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है - अपने प्रभु ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’‘ तब शैतान ने उन्हें येरुसालेम ले जा कर मंदिर के शिखर पर खड़ा कर दिया और कहा, “यदि आप ईश्वर के पुत्र हों, तो यहाँ से नीचे कूद जाइए, क्योंकि लिखा है - तुम्हारे विषय में वह अपने दूतों को आदेश देगा कि वे तुम्हारी रक्षा करें और वे तुम्हें अपने हाथों पर सँभाल लेंगे कि कहीं तुम्हारे पैरों को पत्थर से चोट न लगे’‘। येसु ने उत्तर दिया, “यह भी कहा है - अपने प्रभु ईश्वर की परीक्षा मत करो''। इस तरह सब प्रकार की परीक्षा लेने के बाद शैतान, निश्चित समय पर लौटने के लिए, येसु के पास से चला गया।
प्रभु का सुसमाचार।