पवित्र हृदय का धर्मानुष्ठान – वर्ष A

पहला पाठ

विधि-विवरण ग्रंथ 7:6-11

“प्रभु ने तुम्हें अपनाया और चुना है।"

मूसा ने लोगों से कहा, "तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर की पवित्र प्रजा हो। हमारे प्रभु-ईश्वर ने पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों में से तुम्हें अपनी निजी प्रजा चुना है। प्रभु ने तुम्हें इसलिए नहीं अपनाया और चुना है कि तुम्हारी संख्या दूसरे राष्ट्रों से अधिक थी - तुम्हारी संख्या तो सब राष्ट्रों से कम थी। प्रभु ने तुम्हें प्यार किया और तुम्हारे पूर्वजों को दी गयी शपथ को पूरा किया, इसलिए प्रभु ने तुम्हें अपने भुजबल से निकाला और दासता के घर से, मिस्र देश के राजा फिराऊन के हाथ से छुड़ाया है। इसलिए याद रखो कि तुम्हारा प्रभु-ईश्वर सच्चा और सत्यप्रतिज्ञ ईश्वर है। जो लोग उसे प्यार करते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, वह उनके लिए हज़ार पीढ़ियों तक अपनी प्रतिज्ञा और अपनी कृपा बनाये रखता है। जो लोग उसका तिरस्कार करते हैं, वह उन्हें दण्ड देता और उनका विनाश करता है। जो व्यक्ति उसका तिरस्कार करता है, वह उस को दण्ड देने में देर नहीं करता। इसलिए जो आज्ञाएँ, नियम और आदेश मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ, तुम लोग उसका पालन करो।"

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-4,6-8,10

अनुवाक्य : अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम सदा-सर्वदा बना रहता है।

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमज़ोरी दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से मुझे सँभालता है।

3. प्रभु न्यायपूर्वक शासन करता और सब पददलितों का पक्ष लेता है। उसने मूसा को अपने मार्ग बताये और इस्राएल को अपने महान् कार्य।

4. प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड देता है।

दूसरा पाठ

सन्त योहन का पहला पत्र 4:7-16

“यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है।"

प्रिय भाइयो ! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है। जो प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता, क्योंकि ईश्वर प्रेम है। ईश्वर हम को प्यार करता है, यह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें। ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया है और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिए अपने पुत्र को भेजा है। प्रिय भाइयो ! यदि ईश्वर ने हम को इतना प्यार किया है, तो हम को भी एक दूसरे को प्यार करना चाहिए। ईश्वर को किसी ने कभी देखा नहीं। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है। और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है। यदि वह इस प्रकार हमें अपना आत्मा प्रदान करता है, तो हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है। पिता ने संसार के मुक्तिदाता के रूप में अपने पुत्र को भेजा है - हमने यह देखा है और हम इसका साक्ष्य देते हैं। जो कोई यह स्वीकार करता है कि येसु ईश्वर के पुत्र हैं, ईश्वर उस में निवास करता है और वह ईश्वर में। इस प्रकार हम अपने प्रति ईश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। ईश्वर प्रेम है और जो प्रेम में बना रहता है, वह ईश्वर में और ईश्वर उस में निवास करता है।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

<प>(अल्लेलूया, अल्लेलूया !) प्रभु कहते हैं, "मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ।" (अल्लेलूया !)

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 11:25-30

"मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ।"
<>येसु ने कहा, "हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। हाँ, पिता! यही तुझे अच्छा लगा। मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर कोई भी पुत्र को नहीं जानता। इसी तरह पिता को कोई भी नहीं जानता, केवल पुत्र जानता है और वही, जिसके लिए पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे। “थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो ! तुम सब के सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शांति पाओगे, क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।"