पवित्र त्रित्व का उत्सव - पेन्तेकोस्त के बाद का रविवार – वर्ष A

पहला पाठ

निर्गमन-ग्रंथ 34:4-6,8-9

“प्रभु ! प्रभु एक करुणामय तथा कृपालु ईश्वर है।"

मूसा, प्रभु के आज्ञानुसार, पत्थर की दो पाटियाँ हाथ में लिए हुए बहुत सबेरे सिनाई पर्वत पर चढ़ा। प्रभु बादल के रूप में उतर कर उसके पास आया और मूसा ने प्रभु का नाम लिया। तब प्रभु ने उसके सामने से निकल कर कहा, "प्रभु एक करुणामय तथा कृपालु ईश्वर है। वह देर से क्रोध करता और अनुकम्पा तथा सत्यप्रतिज्ञता का धनी है।" मूसा ने तुरन्त दण्डवत् कर उसकी आराधना की और कहा, "हे प्रभु ! यदि मुझ पर तेरी कृपादृष्टि है, तो मेरा प्रभु हमारे साथ चले। ये लोग हठधर्मी तो हैं, किन्तु तू हमारे अपराध तथा पाप क्षमा कर और हमें अपनी निजी प्रजा बना ले।"

प्रभु की वाणी।

भजन : दानिएल 3:52-56

अनुवाक्य : तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।

1. हे प्रभु ! हमारे पूर्वजों के ईश्वर ! तू धन्य है। तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे। तेरा महिमामय पवित्र नाम धन्य है ! तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।

2. तू अपने महिमामय मंदिर में धन्य है ! तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।

3. तू अपने राज्य के सिंहासन पर धन्य है ! तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।

4. तू गहराइयों की थाह लेता है। तू धन्य है ! तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।

5. तू स्वर्ग की ऊँचाइयों पर धन्य है ! तेरी स्तुति निरन्तर होती रहे।

दूसरा पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 13:11-13
“येसु मसीह की कृपा, ईश्वर का प्रेम तथा पवित्र आत्मा का साहचर्य।"

भाइयो ! अलविदा ! आप पूर्ण बनें; हमारा उपदेश हृदयंगम करें; एकमत रहें; शांति बनाये रखें - और प्रेम तथा शांति का ईश्वर आपके साथ होगा। शांति के चुम्बन से एक दूसरे का अभिवादन करें। सब ईश्वर-भक्त आप लोगों को नमस्कार कहते हैं। हमारे प्रभु येसु मसीह की कृपा, ईश्वर का प्रेम तथा पवित्र आत्मा का साहचर्य आप सबों को प्राप्त हो।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

(अल्लेलूया, अल्लेलूया !) पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को महिमा ! उसी ईश्वर को, जो है, जो था और जो आने वाला है। (अल्लेलूया !)

सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 3:16-18

"ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए भेजा कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे।

ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमें विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे। ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा कि वह संसार को दोषी ठहराये। उसने उसे इसलिए भेजा कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे। जो पुत्र में विश्वास करता है, वह दोषी नहीं ठहराया जाता है। जो विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; क्योंकि वह ईश्वर के एकलौते पुत्र के नाम में विश्वास नहीं करता।

प्रभु का सुसमाचार।