पास्का का सातवाँ इतवार - वर्ष B

पहला पाठ

<5>यूदस के स्थान पर किसी को चुनना था। इस से पहले पेत्रुस शिष्यों के समुदाय से कहते हैं कि प्रेरित का प्रधान कार्य है - येसु के पुनरुत्थान का साक्ष्य देना।

प्रेरित-चरित 1:15-17, 20-26

"इन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बन जाये।”

पेत्रुस भाइयों के बीच खड़े हो गये। वहाँ लगभग एक सौ बीस व्यक्ति एकत्र थे। पेत्रुस ने कहा, "भाइयो! यह अनिवार्य था कि धर्मग्रंथ की वह भविष्यवाणी पूरी हो जाये, जिसे पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यूदस के विषय में कहा था। वह येसु को गिरफ्तार करने वालों का अगुआ बन गया था। यूदस हम लोगों में से एक और धर्मसेवा में हमारा साथी था। स्तोत्र-संहिता में यह लिखा है – कोई दूसरा उसका पद ग्रहण करे। उचित है कि जितने समय तक प्रभु येसु हमारे बीच रहे, अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बन जाये।” इस पर उन्होंने दो व्यक्तियों को प्रस्तुत किया- यूसुफ को, जो बरसबा कहलाता था और जिसका दूसरा नाम युस्तुस था, और मथियस को। तब उन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की, "हे प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है, जिस से वह धर्मसेवा तथा प्रेरिताई में वह पद ग्रहण करे जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्थान में चला गया।” उन्होंने चिट्ठी डाली। चिट्ठी मथियस के नाम निकली और उसकी गिनती ग्यारह प्रेरितों के साथ होने लगी।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-2,11-12,19-20

अनुवाक्य : प्रभु ने स्वर्ग में अपना सिंहासन स्थापित किया है। (अथवा : अल्लेलूया!)

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्यवाद कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. आकाश पृथ्वी के ऊपर जितना ऊँचा है, उतना महान् है अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम। पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है।

3. प्रभु ने स्वर्ग में अपना सिंहासन स्थापित किया है, वह समस्त विश्व का शासन करता है। प्रभु के शक्तिशाली स्वर्गदूत उसकी वाणी सुनते ही उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।

दूसरा पाठ

भ्रातृप्रेम हमारी भक्ति की कसौटी है। यदि हम सचमुच एक दूसरे की सहायता करेंगे और मनुष्य मात्र को प्यार करेंगे, तो इस से हम जान जायेंगे कि ईश्वर का आत्मा हम में निवास करता है।

सन्त योहन का पहला पत्र 4:11-16

"जो प्रेम में बना रहता है, वह ईश्वर में और ईश्वर उस में निवास करता है।”

प्रिय भाइयो! यदि ईश्वर ने हम को इतना प्यार किया है, तो हम को भी एक दूसरे को प्यार करना चाहिए। ईश्वर को किसी ने कभी देखा नहीं। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है। यदि वह इस प्रकार हमें अपना आत्मा प्रदान करता है, तो हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है। पिता ने संसार के मुक्तिदाता के रूप में अपने पुत्र को भेजा है हमने यह देखा है और हम इसका साक्ष्य देते हैं। जो कोई यह स्वीकार करता है, कि येसु ईश्वर के पुत्र हैं, ईश्वर उस में निवास करता है और वह ईश्वर में। इस प्रकार हम अपने प्रति ईश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। ईश्वर प्रेम है और जो प्रेम में बना रहता है, वह ईश्वर में और ईश्वर उस में निवास करता है।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "मैं तुम लोगों को अनाथ छोड़ कर नहीं जाऊँगा। मैं तुम्हारे पास आऊँगा और तुम्हारे हृदय आनन्दित होंगे"। अल्लेलूया!

सुसमाचार

येसु अपने शिष्यों के विषय में कहते हैं कि "वे संसार के नहीं हैं, जिस तरह मैं संसार का नहीं हूँ"। फिर भी वह उन्हें संसार में भेजते हैं, जिससे वे सत्य की सेवा में समर्पित हो जायें। शिष्यों को संसार के भाव नहीं अपनाने हैं, बल्कि निर्भीकता से सत्य का साक्ष्य देना है।

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 17:11-19

"सब के सब एक हो जायें।”

येसु ने अपनी आँखें ऊपर उठायीं और यह कहा, "हे परमपावन पिता! तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, उन्हें अपने नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रख, जिससे वे हमारी ही तरह एक बने रहें। तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, जब तक मैं उनके साथ रहा, मैंने उन्हें तेरे नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रखा है। मैंने उनकी रक्षा की है। उन में से किसी का भी सर्वनाश नहीं हुआ है विनाश का पुत्र इसका एक ही अपवाद है, क्योंकि धर्मग्रंथ का पूरा हो जाना अनिवार्य था। "अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ। जब तक मैं संसार में हूँ, यह सब कह रहा हूँ, जिससे उन्हें मेरा आनन्द पूर्ण रूप से प्राप्त हो जाये। मैंने उन्हें तेरी शिक्षा प्रदान की है। संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जिस तरह मैं संसार का नहीं हूँ, उसी तरह वे भी संसार के नहीं हैं। मैं यह निवेदन नहीं करता कि तू उन्हें संसार से उठा ले, बल्कि यह कि तू उन्हें बुराई से बचा। वे संसार के नहीं हैं, जिस तरह मैं संसार का नहीं हूँ। "तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर। तेरी शिक्षा ही सत्य है। जिस तरह तूने मुझे संसार में भेजा है, उसी तरह मैंने भी उन्हें संसार में भेजा है। मैं उनके लिए अपने को समर्पित करता हूँ, जिससे वे भी सत्य की सेवा में समर्पित हो जायें"।

प्रभु का सुसमाचार।