पास्का का छठा सप्ताह - बुधवार

पहला पाठ

प्रेरित-चरित 17:15,22-18:1

"आप अनजाने जिसकी पूजा करते हैं, मैं उसी के विषय में आप को बताने आया हूँ।”

पौलुस के साथी उसे आथेंस ले चले और उसका यह संदेश ले कर लौटे कि जितनी जल्दी हो सके सीलस और तिमथी मेरे पास चले आयें। पौलुस परिषद् के सामने खड़ा हो कर यह कहने लगा, "आथेंस के सज्जनो! मैं देख रहा हूँ कि आप लोग देवताओं पर बहुत अधिक श्रद्धा रखते हैं। आपके मंदिरों का परिभ्रमण करते समय मुझे एक वेदी पर यह अभिलेख मिला- 'अज्ञात देवता को।' आप लोग अनजाने जिसकी पूजा करते हैं, मैं उसी के विषय में आप को बताने आया हूँ। "जिस ईश्वर ने विश्व तथा उस में जो कुछ है, वह सब बनाया है, और जो स्वर्ग और पृथ्वी का प्रभु है, वह हाथ से बनाये हुए मंदिरों में निवास नहीं करता। वह इसलिए मनुष्यों की पूजा स्वीकार नहीं करता कि उसे किसी वस्तु का अभाव है। वह तो सबों को जीवन, प्राण और सब कुछ प्रदान करता है। उसने एक ही मूलपुरुष से मानव जाति के सब राष्ट्रों की सृष्टि की और उन्हें सारी पृथ्वी पर बसाया। उसने उनके इतिहास के युग और उनके क्षेत्रों के सीमान्त निर्धारित किये हैं। यह इसलिए हुआ कि मनुष्य ईश्वर का अनुसंधान करें और उसे खोजते हुए संभवतः उसे प्राप्त करें, यद्यपि वास्तव में वह हम में से किसी से भी दूर नहीं है; क्योंकि उसी में हमारा जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है, जैसा कि आपके कुछ कवियों ने कहा है - हम भी तो उसके वंशज हैं। यदि हम ईश्वर के वंशज हैं, तो हमें यह नहीं समझना चाहिए कि परमात्मा सोने, चाँदी या पत्थर की मूर्ति से सादृश्य रखता है, जो मनुष्य की कला तथा कल्पना की उपज है। “ईश्वर ने अज्ञान के युगों का लेखा लेना नहीं चाहा, परन्तु अब उसकी आज्ञा यह है कि सर्वत्र सभी मनुष्य पश्चात्ताप करें। क्योंकि उसने वह दिन निश्चित किया है, जिस में वह एक पूर्वनिर्धारित व्यक्ति द्वारा समस्त संसार का न्यायपूर्वक विचार करेगा। ईश्वर ने उस व्यक्ति को मृतकों में से पुनर्जीवित कर सबों को अपने इस निश्चय का प्रमाण दिया है।” मृतकों के पुनरुत्थान की चरचा सुनते ही कुछ लोग उपहास करने लगे और कुछ लोगों ने यह कहा, “इस विषय पर हम फिर कभी आपकी बात सुनेंगे।” इसलिए पौलुस उन्हें छोड़ कर चला गया। फिर भी कई व्यक्ति उसके साथ हो लिये और विश्वासी बन गये, जैसे परिषद् का सदस्य दियोनिसियुस, दमरिस नामक महिला और अन्य लोग भी। इसके बाद पौलुस आथेंस छोड़ कर कुरिंथ आया।

प्रभु की वाणी।

भजन स्तोत्र 148:1-2,11-14

अनुवाक्य : तेरी महिमा स्वर्ग और पृथ्वी में व्याप्त है। (अथवा : अल्लेलूया!)

1. स्वर्ग में प्रभु की स्तुति हो, उच्च लोक में प्रभु की स्तुति हो। प्रभु के दूत उसकी स्तुति करें, समस्त विश्वमंडल प्रभु की स्तुति करे।

2. पृथ्वी के राजा तथा समस्त राष्ट्र, पृथ्वी के क्षत्रप तथा सभी शासक, नवयुवक तथा नवयुवतियाँ, वृद्ध तथा बालक प्रभु की स्तुति करें।

3. वे सब के सब प्रभु की स्तुति करें, क्योंकि उसी का नाम महान् है। उसके नाम का प्रताप आकाश और पृथ्वी के परे है।

4. वह अपनी प्रजा को बल प्रदान करता है। उसके सभी भक्त, इस्राएल की सन्तान तथा उसकी शरण में रहने वाली प्रजा, वे सब के सब उसकी स्तुति करते रहते हैं।

जयघोष

अल्लेलूया! मैं पिता से निवेदन करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा, जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा। अल्लेलूया!

सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 16:12-15

"सत्य का आत्मा तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा।”

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "मुझे तुम लोगों से और बहुत कुछ कहना है, परन्तु अभी तुम वह नहीं सह सकते। जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा; क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, बल्कि उसने जो सुना है, वही कहेगा और तुम्हें आने वाली बातों के विषय में बतायेगा। वह मुझे महिमान्वित करेगा, क्योंकि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा। जो कुछ पिता का है, वह मेरा है। इसलिए मैंने कहा कि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।”

प्रभु का सुसमाचार।