पास्का का तीसरा सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ

प्रेरित-चरित 9:31-42

"कलीसिया, पवित्र आत्मा की सान्त्वना द्वारा बल प्राप्त करती हुई, बराबर बढ़ती जाती थी।”

उस समय समस्त यहूदिया, गलीलिया तथा समारिया में कलीसिया को शांति मिली। उसका विकास होता जा रहा था और वह, प्रभु पर श्रद्धा रखती हुई और पवित्र आत्मा की सान्त्वना द्वारा बल प्राप्त करती हुई, बराबर बढ़ती जाती थी। पेत्रुस, चारों ओर दौरा करते हुए, किसी दिन लिद्दा में रहने वाली ईश्वर की प्रजा के यहाँ भी पहुँचा। वहाँ उसे एनियस नामक अर्धांगरोगी मिला, जो आठ वर्षों से बिस्तर पर पड़ा हुआ था। पेत्रुस ने उस से कहा, "एनियस! येसु मसीह तुम को स्वस्थ करते हैं। उठो और अपना बिस्तर स्वयं ठीक करो।” और वह उसी क्षण उठ खड़ा हुआ। लिद्दा और शारोन के सब निवासियों ने उसे देखा और प्रभु को स्वीकार किया। योप्पे में तबिथा नामक शिष्या रहती थी - तबिथा का यूनानी अनुवाद दोरकास (अर्थात् हरिणी) है। वह बहुत अधिक परोपकारी और दानी थी। उन्हीं दिनों वह बीमार पड़ी और चल बसी। लोगों ने उसे नहला कर अटारी पर लिटा दिया। लिद्दा योप्पे से दूर नहीं है और शिष्यों ने सुना था कि पेत्रुस वहाँ है। इसलिए उन्होंने दो आदमियों को भेज कर उस से यह अनुरोध किया कि आप तुरन्त हमारे यहाँ आइएगा। पेत्रुस उसी समय उनके साथ चल दिया जब वह योप्पे पहुँचा, तो लोग उसे उस अटारी पर ले गये। वहाँ सब विधवाएँ रोती हुई उसके चारों ओर आ खड़ी हुईं और वे कुरते और कपड़े दिखाने लगीं, जिन्हें दोरकास ने उनके साथ रहते समय बनाया था। पेत्रुस ने सबों को बाहर किया और वह घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा। इसके बाद वह शव की ओर मुड़ कर बोला “तबिथा, उठो”। उसने आँखें खोल दीं और पेत्रुस को देखकर वह उठ बैठी। पेत्रुस ने हाथ बढ़ा कर उसे उठाया और विश्वासियों तथा विधवाओं को बुला कर उसे जीता-जागता उनके सामने उपस्थित कर दिया। यह बात योप्पे में फैल गयी और बहुत-से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 115:12-17

अनुवाक्य : प्रभु के सब उपकारों के लिए मैं उसे क्या दे सकता हूँ? (अथवा : अल्लेलूया!)

1. प्रभु के सब उपकारों के लिए मैं उसे क्या दे सकता हूँ? मैं मुक्ति का प्याला उठा कर प्रभु का नाम लूँगा।

2. मैं प्रभु की सारी प्रजा के सामने प्रभु के लिए अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। अपने भक्तों की मृत्यु से प्रभु को दुःख होता है।

3. हे प्रभु! मैं तेरा सेवक हूँ। तेरा दास हूँ। तूने मेरे बन्धन खोल दिये। मैं प्रभु का नाम लेते हुए धन्यवाद का बलिदान चढ़ाऊँगा।

जयघोष

अल्लेलूया! हे प्रभु! आपकी शिक्षा आत्मा और जीवन हैआपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। अल्लेलूया!

सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:60-69

"हम किसके पास जायें! आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है।”

येसु के बहुत-से शिष्यों ने सुना और कहा, "यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है? “ यह जान कर कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे हैं, येसु ने उन से कहा, "क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो? जब तुम मानव पुत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे जहाँ वह पहले था, तो क्या कहोगे? आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, मांस से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम्हें जो शिक्षा दी है, वह आत्मा और जीवन है। फिर भी तुम लोगों में से अनेक विश्वास नहीं करते।” येसु तो प्रारंभ से ही यह जानते थे कि कौन विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा। उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक उसे पिता से यह वरदान न मिल जाये।” इसके बाद बहुत-से शिष्य अलग हो गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया। इसलिए येसु ने बारहों से कहा, "क्या तुम लोग भी चले जाना चाहते हो? “ सिमोन पेत्रुस ने उन्हें उत्तर दिया, "प्रभु! हम किसके पास जायें! आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। हमने विश्वास कर लिया है और हम जान गये हैं कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष हैं।”

प्रभु का सुसमाचार।