उस समय गमालिएल नामक फरीसी, जो संहिता का शास्त्री और सारी जनता में सम्मानित था, महासभा में उठ खड़ा हुआ। उसने प्रेरितों को थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाने का आदेश दिया और महासभा के सदस्यों से यह कहा, "इस्राएली भाइयो! आप सावधानी से विचार करें कि इन लोगों के साथ क्या करने जा रहे हैं। कुछ समय पहले थेउदस प्रकट हुआ। वह दावा करता था कि मैं भी कुछ हूँ और लगभग चार सौ लोग उसके अनुयायी बन गये। वह मारा गया, उसके सभी अनुयायी बिखर गये और उनका नाम-निशान भी नहीं रहा। उसके बाद, जनगणना के समय, यूदस गलीली प्रकट हुआ। उसने बहुत-से लोगों को बहका कर अपने विद्रोह में सम्मिलित कर लिया। वह भी नष्ट हो गया और उसके सभी अनुयायी बिखर गये। इसलिए इस विषय के संबंध में मैं आप लोगों से यह कहना चाहता हूँ कि आप इनके काम में दखल मत दें और इन्हें अपनी राह चलने दें। यदि यह योजना अथवा आन्दोलन मनुष्यों का है, तो यह अपने आप नष्ट हो जायेगा। परन्तु यदि यह ईश्वर का है, तो आप इन्हें नहीं मिटा सकेंगे और ईश्वर के विरोधी प्रमाणित होंगे।" वे उसकी बात मान गये। उन्होंने प्रेरितों को बुला भेजा, उन्हें कोड़े लगवाये और यह कड़ा आदेश दे कर छोड़ दिया कि तुम लोग येसु का नाम ले कर उपदेश मत दिया करो। प्रेरित इसलिए आनन्दित हो कर महासभा के भवन से निकले कि वे येसु के नाम के कारण अपमानित होने योग्य समझे गये। वे प्रतिदिन मंदिर में और घर-घर जा कर शिक्षा देते रहे और येसु मसीह का सुसमाचार सुनाते रहे।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : मैं प्रभु से यही प्रार्थना करता रहा कि मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ। (अथवा : अल्लेलूया!)
1. प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?
2. मैं प्रभु से यही प्रार्थना करता रहा कि मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ और प्रभु की मधुर छत्र छाया में रह कर उसके मंदिर में मनन करूँ।
3. मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा। प्रभु पर भरोसा रखो, दृढ़ रहो और प्रभु पर भरोसा रखो।
अल्लेलूया! मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है। अल्लेलूया!
येसु गलीलिया अर्थात् तिबेरियस के समुद्र के उस पार चले गये। एक विशाल जन समूह उसके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने उन चमत्कारों को देखा था, जिन्हें येसु बीमारों के लिए करते थे। येसु पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये। यहूदियों का पास्का पर्व निकट था। येसु ने अपनी आँखें ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है और उन्होंने फिलिप से यह कहा, "हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें? " उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वह जानते ही थे कि वह क्या करेंगे। फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, "दो सौ दीनार की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके।" उनके शिष्यों में से एक, सिमोन पेत्रुस के भाई अंद्रेयस ने कहा, "यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह इतने लोगों के लिए क्या है? " येसु ने कहा "लोगों को बैठा दो"। उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार थी। येसु ने रोटियाँ ले लीं, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उनकी इच्छा भर बँटवायीं। उन्होंने मछलियाँ भी इसी तरह बँटवायीं। जब लोग खा कर तृप्त हो गये, तो येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बर्बाद न हो"। इसलिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरे भरे, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे। लोग येसु का यह चमत्कार देख कर बोल उठे, "निश्चय ही यह वह नबी हैं, जो संसार में आने वाले हैं।" येसु समझ गये कि वे आ कर मुझे राजा बनाने के लिए पकड़ ले जायेंगे, इसलिए वह फिर अकेले ही पहाड़ी पर चले गये।
प्रभु का सुसमाचार।