इस घर का तुम आश्रय बन जा (2)
येसु, मरियम यूसुफ़ पिता
हमारे घर के आँगन में पावन क्रूस लगा देना (2)
पहरा देने चारों ओर स्वर्गदूतों को लगा देना
घर के कोने-कोने में तुम रक्षा स्तम्भ लगा देना (2)
शैतान के सब फंदों से हम दुर्बलों को तुम बचा लेना
(इस घर का तुम आश्रय बन जा ...)
प्रभु के पावन छिदे हृदय में हम सबको तुम छिपा लेन (2)
प्रभु की शांति की धारा हर दिल में रोज बहा देना (2)
किसी को दु:ख देवे जो काम वह हम से न होने देना
(इस घर का तुम आश्रय बन जा ...)
साथी और सहारा बन हमें संग-संग चलना सिखा देना
एक दूजे को साया देने एकता का तुम वर देना (२)
दु:ख में, सुख में, हर ढालत में संग-संग चलना सिखा देना
(इस घर का तुम आश्रय बन जा ...)
इस महान संस्कार को, दंडवत् बारम्बार हो।
इस महान संस्कार को
बीती विधि का उतार हो, नव रीति का विस्तार हो,
देख न पाती आँख जिसे, दरसाता विश्वास उसे ।
इस महान संस्कार को|
पिता अर पुत्र ईश्वर को, महिमा गान निरन्तर हो
उन्हीं से प्रसुत आत्मा को, सम सम्मान स्तुति सदा हो ।
इस महान संस्कार को
तेरे आगे झुकते हैं हम करने तेरा पूजन
धन्य धन्य है धन्य महत्तम परमप्रसाद सुपावन,
करें पुराने और अधूरे, संस्कारों को पूरन
नूतन संस्कारों की महिमा अपनाएँ संपूरन
बुद्धि गम्य जो नहीं उसी को श्रद्धा से हम पायें
तेरे आगे इसीलिए हम अपना शीश झुकाएँ
सर्वकाल के परम पिता को और उसी के सुत को
जो विराजता सब से ऊपर, उस चिर महिमा युत को
और उन्हीं से शाश्वत प्रकटित उस पावन आत्मा को
जिन तीनों के द्वारा पाते हम नव जीवन धन को
सर्वशक्तिमान मुक्ति प्रदाता महिमामय को ध्यावें
ये हैं चिर आराध्य हमारे इनका राज्य बढ़ावें।