सुलेमान ने प्रार्थना की और उन्हें प्रज्ञा मिली। वे राजदण्ड, सिंहासन, धन-दौलत, अमूल्य रत्न, सोना, चाँदी, स्वास्थ्य तथा सौदर्य से अधिक प्रज्ञा चाहते थे। उन्होंने तुझ से प्राप्त प्रज्ञा को अपनी ज्योति बनाने का निर्णय लिया।
आज मैं तुझ से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अपनी प्रज्ञा प्रदान कर ताकि मैं तेरे वरदानों का मूल्य समझूँ। हमारी समस्त बुध्दि और शिल्प-विज्ञान भी तेरे हाथ में हैं। तेरा वचन कहता है, “प्रज्ञा में एक आत्मा विद्यमान है, जो विवेकशील, पवित्र, अद्वितीय, बहुविध, सूक्ष्म, गतिमय, प्रत्यक्ष, निष्कलंक, स्वच्छ, अपरिवर्तनीय, हितकारी, तत्पर, अदम्य, उपकारी, जनहितैषी, सुदृढ़, आश्वस्त, प्रशान्त, सर्वशक्तिमान् और सर्वनिरीक्षक है। वह सभी विवेकशील, शुद्ध तथा सूक्ष्म जीवात्माओें में व्याप्त है” (प्रज्ञा 7:22-23)। वह तेरी शक्ति का प्रसव है, तेरी महिमा की परिशुध्द प्रदीप्ति है, तेरी शाश्वत ज्योति का प्रतिबिम्ब तथा तेरी भलाई का प्रतिरूप है। वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी पवित्र जीवात्माओं में प्रवेश कर उन्हें तेरे मित्र और नबी बनाती है क्योंकि तू केवल उसे प्यार करता है जो प्रज्ञा के साथ निवास करता है।
हे प्रज्ञा के प्रभु, मुझे अपनी प्रज्ञा से भर दे ताकि मैं तेरी राह पर चल कर अपने कर्तव्यों का पालन कर सकूँ तथा दूसरों की भलाई कर तेरे योग्य बन सकूँ, हमारे प्रभु ख्रीस्त के द्वारा। आमेन।