असीसी के संत फ्रांसिस आपने प्रभु येसु को उनके सुसमाचार में पाया तथा उस शिक्षा का अपने जीवन में अक्षर-अक्षर पालन किया। अपने स्वर्गिक पिता के प्रेम का अनुभव करने के लिये आपने अपना आरामदायी रहन-सहन, सम्पन्न परिवार, स्नेही माता-पिता, मित्र, व्यवसाय - सब कुछ त्याग दिया। स्वर्गिक पिता के प्रेम एवं उनके पूर्व-प्रबंध पर आपने इतना विश्वास किया कि घर छोड़ते समय आपने आपके पिता के दिये हुये वस्त्र तक त्याग दिये। प्रभु की वाणी को सुन कर आपने गिर्जाघर की मरम्मत की तथा कालांतर में वह कलीसिया के निर्माण की बुलाहट बन गयी। हे अति महान असीसी के संत फ्रांसिस आपके जीवन की महानता भाषा एवं शब्दों से सीमित हो जाती है। हमारे लिये प्रार्थना कर कि हम भी आपके बताये हुये आदर्शों पर चल सकें। जिस तरह आपने अपने जीवन के द्वारा मानवता को सिखाया कि सुसमाचार की शिक्षा पर चलना संभव है तथा उसी में ही वास्तविक जीवन है। उसी प्रकार हमारे जीवन में भी ईश्वरीय तेज एवं अनुग्रह भर दीजिये ताकि हम सुसमाचार को जीवन का विधान मान कर जी सकें। आपने दीन-हीन बनकर दरिद्रता का जीवन जीया तथा हमेशा दुःखी, पीड़ित, दीन-हीन, कमजोर, गरीब, भूखे-नंगे तथा असहाय लोगों के साथ अपना जीवन तथा ईश्वरीय उपहार बांटे। स्वार्थता, संवेदनहीनता तथा प्रतिस्पर्धा के दलदल में फंसे वर्तमान समाज में हमें सुसमाचार के - भूखों को भोजन, प्यासों को पानी, परदेशी को निवास, निवस्त्रों को वस्त्र, बंदियों से भेंट के - आदेश को पूरा करने का साहस एवं मनोबल प्रदान कीजिये (देखिये मत्ती 25:35)। आपका प्रकृति-प्रेम अत्यंत गहरा था तथा आपके इस प्रेम से प्रेरित होकर पशु-पक्षी एवं बनैले जानवर भी आपसे प्रेम करते थे तथा आपकी वाणी सुनते थे। हे प्रेममय असीसी के संत फ्रांसिस, हमें भी प्रकृति एवं उसमें विराजित सभी कृतियों को ईश्वर की सृष्टि मानकर उनकी देखरेख करने की प्रेरणा प्रदान करिये ताकि हम विकास एवं प्रकृति में सदैव संतुलन बनाये रखें। आपकी मध्यस्थ-प्रार्थनाओं से अनेकों ने लाभ पाया है। अतः यह मेरा भी विश्वास है कि आप मेरे लिये येसु से अवश्य ही यह कृपा कर सकेंगे। निजी निवेदन...............................। आमेन।