(एक गीत या भजन गाना उचित है)
अब हम मौन रहकर हमारे हृदयों में विराजमान प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करने की कोशिश करें।
1.हम प्रभु को आमंत्रित करें।
कृपया आप में से कोई प्रार्थना द्वारा येसु को आमंत्रित करें।
2.हम पाठ पढें।
हम खोलें, ...................का सुसमाचार, अध्याय ............. । (दो तीन बार बोलिए। देख लीजिए कि सब लोगों ने बाईबिल खोल लिया और सही अध्याय निकाला है)
वाक्य .......... से ....... तक (देख लीजिए कि सब तैयार हैं।)
कृपया आप में से और कोई वाक्य ......... से ........ तक पढि़ए। (जब एक बार पाठ पूरा हो जाता है) कृपया आप में से और कोई वाक्य ........... से ........... तक किसी दूसरी भाषा या संस्करण के बाईबिल से पुन: पढि़ए।
3.हम शब्दों को चुनें और उन पर मनन करें।
हम शब्दों या लघु–वाक्यों को चुनें; उन्हें भक्तिभाव से, जोर से पढें। बीच बीच में मौन साधें।
4.हम मौन रहकर ईश्वर को बोलने दें।
हम............. मिनिट मौन रहें और ईश्वर को अपने साथ बात करने दें।
5.जो कुछ हमने अपने हृदय में सुना है उसकी भागीदारी करें।
किस शब्द ने हमें व्यक्तिगत रुप से प्रभावित किया है? या किस प्रकार हमने ’जीवन्त वचन’ को जीया है।
6.जो काम हमारे दल को करना है, उस पर विचार–विमर्श करें।
सबसे पहले हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि हमने किस प्रकार पिछली बैठक के निर्णयों को पूरा किया। पिछली बैठक में हमने यह तय किया था कि ...................
क्या हमने अपने कार्यों को पूरा किया है?
हमने क्या अच्छा किया?
हम क्या सुधार ला सकते हैं?
आज का सुसमाचार हमें कौन सा नया काम करने को प्रेरित करता है?
(सभी सुझावों को सुनने के बाद)
इन में से कौन से काम की हमारे समुदाय में सब से ज्यादा जरुरत है?
कौन, क्या, कब और कैसे करेंगे।
(पक्का निर्णय लेने के बाद)
हम कौन सा जीवन्त–वचन चुनें?
7.हम प्रार्थना के साथ सुसमाचार आदान–प्रदान को समाप्त करें।
हम प्रभु को धन्यवाद दें। हममें से हर एक व्यक्ति स्वत: उत्प्रेरित प्रार्थना द्वारा प्रभु को धन्यवाद दे।
(जब कई लोग प्रार्थना द्वारा प्रभु को धन्यवाद दे चुके हैं)
हम एक गीत गाकर (या हम पिता हमारे प्रार्थना बोलकर) हमारी बैठक का समापन करें।
मूल्यांकन
चरण 1 : क्या वातावरण प्रार्थनामय था? क्या किसी कारणवश प्रार्थना का मनोभाव भंग या नष्ट हुआ?
चरण 2 : पढ़ने के पहले क्या सबों ने पाठ खोल लिया था?
चरण 3 : क्या चुने हुए शब्दों के बीच में हमने मौन रखा? क्या हमने उन्हें प्रार्थनामय ढं़ग से जोर से पढ़ा?
चरण 4 : मौन का समय बहुत कम या लम्बा था?
चरण 5 : क्या यह वास्तव में व्यक्तिगत आदान–प्रदान था, या दुसरों के लिए उपदेश?
चरण 6 : क्या हमने अपने कार्यों पर विचार–विमर्श करते समय ईशवचन को अपना पथ–प्रदर्शन करने दिया?
चरण 7 : क्या हमने स्वैच्छिक प्रार्थना करने के लिये सबको पर्याप्त समय दिया?
संचालक: हमारे संचालक ने क्या अच्छा किया?
हमारे संचालक किस बात में और सुधार ला सकते हैं?