बलिदान की भावना सब से उत्तम तथा प्रभावशाली मानवीय भावना होती है। उत्पत्ति ग्रन्थ हमें बताता है कि ईश्वर ने छ: दिन में इस संसार की वस्तुओं की सृष्टि की और ईश्वर को सब कुछ अच्छा लगा। परन्तु इस अच्छाई और भालाई को बनाये रखने के लिए हर पीढ़ी के लोगों के बहुत-से बलिदान करने पडते है।
अगर माँ में बलिदान की भावना नहीं होती, तो कोई बच्चा जिवित नहीं रह सकता। हमारे माता-पिता के कई बलिदानों के कारण ही हम आज आनन्दमय जीवन बिता रहे हैं। हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों के कारण ही हम आज आज़ाद हैं। लाखों सैनिकों तथा सुरक्षा-कर्मियों के दैनिक बलिदानों के कारण ही हम आज सुरक्षित जीवन बिता पा रहे हैं। करोडों किसानों के बलिदानों के कारण ही हमें प्रतिदिन भोजन मिलता है। हज़ारों डॉक्टरों और नर्सों के बलिदानों के कारण ही बीमार लोग चंगाई का अनुभव करते हैं।
सच्चाई यह है कि जितने अधिक लोग बलिदान की भावना से प्रेरित होंगे, उनता ही अधिक समाज आगे बढ़ेगा, परिवार मज़बूत बनेगा और कोई भी संस्था सुचारू रूप से चल पायेगी।
हरेक बलिदान के पीछे प्रेम है। अपने बच्चे के प्रति प्रेम के खातिर ही माँ बलिदान की भावना से भर जाती है। देशप्रेम के कारण ही सैनिक अपने आप को निछावर करके भी देश को बचाने का प्रयत्न करते हैं।
येसु में विश्वास करने वालों से येसु बलिदान चाहते हैं। विश्वास और प्रेम एक दूसरे के पूरक हैं। ईश्वर ने इब्राहीम से बलिदान चाहा। यूसुफ, समुएल, यिरमियाह, दानिएल, एस्तेर, यूदीत – इन सब के जीवन बलिदानों के जीवन थे।
येसु का जीवन बलिदानों की एक श्रंखला था। ईश्वर का मानव जन्म ही एक महान बलिदान था। प्रभु येसु ने अपने मानवीय जीवन के हरेक क्षण को बलिदान की भावना से जीया। क्रूस पर उन्होंने अपना सब से बडा बलिदान अर्पित किया।
शूनम की महिला नबी एलीशा के लिए रहने तथा भोजन करने की व्यवस्था बलिदान की भावना से करती है। हमारे दैनिक जीवन में येसु हमें बलिदान की भावना को अपनाने का आह्वान करते हैं। क्रूस बलिदान का चिह्न है। येसु कहते हैं, “जो अपना कृस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं” (मत्ती 10:38)। आईए हम इस चुनौती को हृदय से स्वीकार करें। हम अपने दैनिक जीवन के दुख-संकटों को खुशी से झेल कर ईश्वर से उत्पन्न भलाई को अपने बलिदानों के द्वारा बनाये रखने का दृढ़संकल्प कर अपने जीवन को धन्य बनायें।