प्रेरित चरित 7:55-60; प्रका्शना 22:12-14,16-17,20; योहन 17:20-26
आज के पहले पाठ में हमने सुना कि येरूसालेम के लोगों ने संत स्तेफ़नुस के तीक्ष्ण भाषण को सुनने के बाद उसे पत्थरों से मार डाला। साऊल जो बाद में पौलुस कहलाया इस हत्या का समर्थन कर रहा था। संत स्तेफ़नुस ने जिस सत्य को समझा तथा घोषित किया था उसके लिये उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर किये। वह प्रभु येसु के लिये पहला शहीद बन गया। मेरा यह विचार है कि वहाँ उपस्थित भीड़ पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और इसके परिणामस्वरूम कई लोगों का हृदय परिवर्तन हुआ होगा। संत पौलुस जो पहले ईसाईयों को प्रताड़ित करता था ने भी संभवतः इसी घटना के बाद कुछ हृदय परिवर्तन का अनुभव किया होगा। दूसरे पाठ में हमने प्रभु येसु के द्वितीय आगमन के बारे में सुना- ‘‘मैं जल्द ही आऊँगा’’।
सुसमाचार में प्रभु येसु के अपने प्रिय शिष्यों से विदा लेने का वर्णन है। संत योहन के सुसमाचार के अनुसार प्रभु येसु ने शिष्यों से विदा लेने के पूर्व हृदय स्पर्शी प्रार्थना की कि उनके सब अनुयायी एक हो जायें। प्रभु येसु और पिता ईश्वर के बीच जो एकता थी वही एकता वे अपने शिष्यों के बीच कायम करना चाहते थे। इसलिये उन्होंने कहा- ‘‘जैसे हम एक हैं वैसे वे भी एक हो जायें’’।
यद्यपि प्रभु येसु ने अपने अनुयायियों की एकता के लिये प्रार्थना की, फिर भी हम महसूस करते हैं कि वह एकता हमारे बीच में पूर्ण रूप से कायम नहीं है। निश्चय ही प्रभु येसु की प्रार्थना सुनी गई है परन्तु हम उस प्रार्थना को पूर्ण होते नहीं देखते हैं। यहाँ हमें विरोधाभास दिखाई है। खीस्तीयों में मतभेद के लिए कौन उत्तरदायी है? यूँ तो कलीसिया में प्रारंभ से ही मतभेद और कई विभाजन रहे हैं जो आज भी विद्यमान है जैसे विचारों में असमानता, सिद्धांतों और मान्यताओं में भिन्नता और अन्य मतभेद जो अच्छी से अच्छी पल्ली में भी देखने को मिलते है?
हम यह प्रचारित करते हैं कि पिछले 50 वर्षों में खीस्तीयों की आपसी एकता सुदृढ़ हुई है। यह उत्साहवर्धक बात है। परन्तु हकीकत में हमें पूर्ण एकता की ओर एक बहुत लम्बा सफर तय करना है। हमें विभिन्न गिरजाघरों के बीच, पल्ली स्तर पर और खीस्तीय परिवारों में एकता स्थापित करनी है। प्रभु येसु चाहते हैं- हम एक हो जायें। हम काथलिक लोगों के बीच एकता प्रभु येसु की इच्छा के अनुरूप नहीं है। हमें इस पर चिन्तन करना होगा। प्राकृतिक, तर्कसंगत और विधिसंगत भिन्नतायें लाज़मी हैं, परन्तु इन भिन्नताओं में ईश्वर के दृष्टिकोण और हमारे विचारों के बीच का फ़रक़ सामने आता है।
हम काथलिकों के बीच सचमुच आंतरिक एकता है और हमने हमारे बीच में से विभिन्न भिन्नताओं को दूर करने का प्रयास किया है। यूँ तो सारे संसार में लोग एक जैसे नहीं होते हैं, जैसे अलग-अलग भाषायें, संस्कृति, रहन-सहन, संगीत, आदि। यह सच है किसी भी काथलिक पल्ली में प्रवेश करते ही आपको वहाँ के लोगों के बारे में अनुमान हो जाता है। यूखारिस्तीय समारोह किसी भी खीस्तीय समुदाय की एकता का चिन्ह है। समुदाय की एकता यूखारिस्तीय समारोह में झलकती है। जो लोग आपस में भेदभाव रखते है मिस्सा बलिदान सही ढ़ंग से चढा़ नहीं सकते है। जो लोग आपस में एकता महसूस करते हैं उन्हें मिस्सा बलिदान उस एकता में और अधिक अग्रसर होने की शक्ति प्रदान करता है।
नोबल पुरस्कार विजेता मैनरीड कोरगिन ने बेट्टी विलियम्स के साथ मिलकर एकता और शांति के लिये आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन की शुरुआत एक दुःखद हादसे से प्रारंभ हुई जब एक पुलिस कार्यवाही में गलती से उनकी गाड़ी का चालक और उनके स्वयं के तीन बच्चे मारे गये। उनकी भी बहन गम्भीर रूप से घायल हो गई, जो इस हादसे से उभर नहीं पाई और कुछ वर्षों पश्चात् उसने खुदखुशी कर ली।
इन भयानक घटनाओं ने इन दो साहसी स्त्रियों को शांति के लिये आंदोलन चलाने को प्रेरित किया, ठीक उसी प्रकार जैसे कि हमने पहले पाठ में सुना कि संत स्तेफ़नुस अंत तक साहसी बने रहे और संत पौलुस ने भी बाधाओं और प्रताड़नाओं में साहस नहीं खोया। दृढ़ता और उत्साहपूर्वक प्रार्थनाओं के द्वारा ही शांति और एकता प्राप्त हो सकती है।
हमें भी कलीसिया और समाज में एकता और शांति स्थापित करनी होगी। इसके लिये हमें भी आंदोलन चलाना होगा। उन दो भद्र महिलाओं ने कुछ सुझाव दिये हैं। आपके पास भी कुछ सुझाव होंगे, उन्हें अपने तक सीमित न रखें। उन्हें दूसरों तक ज़रूर पहुँचाईये। एकता और शांति व्यक्तिगत संबंधों की नींव पर ही स्थापित की जा सकती हैं। जब तक हम एक दूसरे को नहीं जानेंगे हमारे बीच में एकता नहीं आ सकती। कलीसिया में एकता कहने मात्र से नहीं आयेगी। एकता तभी आयेगी जब सब खीस्तीय आपस में एक दूसरे को जानें, पहचानें और एक दूसरे को सम्मान दे और मिलकर ईश्वर की आराधना करने की ज़रूरत महसूस करें।
मसीह ने जिस उद्देश्य के लिये प्रार्थना की थी वह असंभव नहीं है। परन्तु इस प्रार्थना को पूर्ण होने के लिये हरेक को प्रयास करना होगा। वह एकता जिसके लिये मसीह ने प्रार्थना की है तभी स्थापित होगी जब आप और मैं अपनी प्रार्थनाओं को मसीह की प्रार्थना के साथ जोडॆंगे। हम आशा करें कि जब मसीह अपनी महिमा में आयेंगे तो वे हमें एक साथ उनकी एकता में उनसे पुरस्कार पाने के योग्य पाये।