प्रेरित चरित 10:34अ,37-43; कलोसियों 3:1-4 या 1 कुरिन्थियों 5:6ब-8; योहन 20:1-9
संत पौलुस कुरिन्थियों के नाम पहले पत्र, अध्याय पन्द्रह में प्रभु येसु के पुनरुत्थान एवं सभी विश्वासियों के पुनरुत्थान के बारे में हमें समझाते हैं। वे कहते हैं कि हमारा विश्वास इस सत्य पर आधारित है कि मसीह मृतकों में से जी उठे हैं। उनका यह कहना है कि यदि मसीह मृतकों में से जी नहीं उठे हैं तो प्रभु येसु के नाम पर हमारा धर्मप्रचार एवं विश्वास व्यर्थ है और हम अब तक हमारे पापों में फँसे हुए हैं। इतना ही नहीं, जो लोग मसीह में विश्वास करते हुए मरे हैं, उनका विश्वास और उनका जीवन भी व्यर्थ है। (1 कुरिन्थियों 15:14-18)
प्रभु येसु का पुनरुत्थान हमारे विश्वास की नींव है। प्रभु येसु पर पूर्ण विश्वास करने के लिए उनके पुनरुत्थान को समझना और उसका अनुभव करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके अभाव में हम पुनरुत्थान को अपने जीवन में महसूस नहीं कर सकते हैं।
पवित्र बाइबिल हमें प्रभु येसु के पुनरुत्थान के तीन महत्वपूर्ण सबूत देती हैं और आज के पाठों में ये तीनों सबूत प्रस्तुत किये गये हैं।
बाइबिल के अनुसार खाली कब्र प्रभु येसु खीस्त के पुनरुत्थान का पहला सबूत है। प्रभु येसु को मृतकों में से जी उठते हुए किसी ने नहीं देखा, परन्तु जिस कब्र में प्रभु का मृत शरीर रखा गया था वह खाली पायी गयी। यूसुफ़ और निकोदेमुस नामक दो धार्मिक व्यक्तियों ने पिलातुस से अनुमति लेकर येसु का मृत शरीर क्रूस पर से उताकर चट्टान में खुदी हुयी एक कब्र में रख दिया तथा कब्र के द्वार पर एक बड़ा सा पत्थर रखकर उसे बंद किया। महायाजक एवं फ़रीसियों के कहने पर पिलातुस ने कब्र पर मुहर लगवाई तथा पहरा बैठाकर उसे सुरक्षित कर दिया। इन सभी पूर्वोपायों के बावजूद भी तीसरे दिन कब्र खाली पायी जाती है। जो लोग कब्र के पास जाते हैं वे कब्र के मुँह से पत्थर लुढ़का हुआ तथा कब्र को खाली पाते हैं। यह प्रभु येसु खीस्त के पुनरूत्थान का एक प्रमाण माना जाता है।
पुनर्जीवित प्रभु येसु का बार-बार अपने शिष्यों तथा जन समूह के सामने प्रकट होना प्रभु के पुनरुत्थान का दूसरा प्रमाण है। मरियम मगदलेना, जो सप्ताह के प्रथम दिन कब्र के पास आई थी, को पुनर्जीवित येसु ने अपना दर्शन दिया (योहन 20:14-18)। यहूदियों के भय से द्वार बन्द किये एकत्रित शिष्यों को पुनर्जीवित येसु ने अपना दर्शन दिया (योहन 20:19-23)। आठ दिन बाद जब फिर से शिष्यगण घर के भीतर थे पुनर्जीवित येसु ने उन्हें पुनः दर्शन दिया (योहन 20:26-29)। तिबेरियस समुद्र के तट पर प्रभु येसु ने अपने शिप्यों को दर्शन दिये (योहन 21:1-23)। दो शिष्य जो एम्माउस जा रहे थे उन्होंने भी पुनर्जीवित येसु का दर्शन किया (लूकस 24:13-32)। सन्त पौलुस कहते हैं कि एक बार पुनर्जीवित येसु ने करीब पाँच सौ लोगों को दर्शन दिया (1 कुरिन्थियों 15:6)। आज के पहले पाठ में संत पेत्रुस स्वयं इसका साक्ष्य देते हैं कि प्रभु येसु ने अपने पुनरुत्थान के बाद लोगों को अपना दर्शन दिया (प्रेरित चरित 10:40)। इस प्रकार पुनरुत्थित प्रभु के दर्शन भी प्रभु के जी उठने का सबूत है।
प्रभु येसु के पुनरुत्थान का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सबूत है प्रभु येसु के शिष्यों के जीवन में आया आकस्मिक परिवर्तन। हमें मालूम हैं कि प्रभु येसु के दुखभोग के समय और उसके पश्चात् भी प्रभु के शिष्य कितने डरे सहमे थे। बारी में प्रभु की गिरफ्तारी के समय एक-एक शिष्य प्रभु येसु को छोड़कर भाग गये थे क्योंकि वे डरते थे कि यहूदी जनता प्रभु के साथ उन्हें भी मार डालेगी। येसु के दुखभोग के समय हम यह भी देखते हैं कि संत पेत्रुस एक साधारण स्त्री के सामने प्रभु येसु को अस्वीकार करते हैं। प्रभु की मृत्यु के बाद डर के मारे शिष्यगण द्वार बंद किये डरे सहमे रहते हैं। यह सब प्रभु येसु के पुनरुत्थान के पहले की बात हैं या प्रभु येसु के पुनरुत्थान को पूर्ण रुप से समझने और उसपर विश्वास करने से पहले की बात है। लेकिन प्रभु येसु के पुनरुत्थान से उनके शिष्यों का जीवन पूर्ण रूप से बदल जाता है। शिष्य जो प्रभु येसु के दुखभोग के समय अपनी मृत्यु से डरकर भाग गये थे, वे प्रभु येसु के पुनरुत्थान का अनुभव करने के बाद, उस पर विश्वास करने के बाद न केवल सबके सामने प्रभु के पुनरुत्थान की निडर होकर घोषणा करते हैं, बल्कि प्रभु के लिए, प्रभु के सुसमाचार के लिए अपने जीवन का बलिदान देते हैं। संत पेत्रुस जिन्होंने एक साधारण स्त्री के सामने डर के मारे प्रभु येसु को अस्वीकार कर दिया था वही पेत्रुस प्रभु येसु के पुनरुत्थान के बाद, सबके सामने येसु की मृत्यु एवं पुनरुत्थान के बारे में निर्भयता से साक्ष्य देते हैं। कलीसिया के पारम्परिक विश्वास के अनुसार प्रभु येसु के बारह शिष्यों में से दस शिष्य प्रभु येसु के लिए, प्रभु येसु के सुसमाचार के लिए शहीद बने, याद रखे कि ये वे ही शिष्य हैं जो प्रभु येसु के दुखभोग के समय अपनी जान बचाने के लिए डरकर भाग गये थे। यदि प्रभु का पुनरुत्थान सच्चा नहीं होता, यदि उन्होंने प्रभु के पुनरुत्थान का अनुभव नहीं किया होता और यदि वे प्रभु के पुनरुत्थान पर पूर्ण विश्वास नहीं करते, तो वे प्रभु के पुनरुत्थान के बारे में निडर होकर प्रचार नहीं करते और प्रभु येसु के लिए अपना जीवन बलिदान नहीं देते।
प्रभु येसु के पुनरुत्थान के बाद शिष्यों के जीवन में आकस्मिक बदलाव आया था। यही बदलाव प्रभु येसु के पुनरुत्थान का सबसे अच्छा और महत्वपूर्ण सबूत थे। उन्होंने प्रभु के पुनरुत्थान का अनुभव किया और उसपर विश्वास किया।
आज माता कलीसिया प्रभु येसु के पुनरुत्थान का पर्व मना रही है। प्रभु के पुनरुत्थान से ही शिष्यों के जीवन में बदलाव आया था। वे प्रभु की मृत्यु के कारण निराश हो गये थे परंतु प्रभु के पुनरुत्थान ने उनकी निराशाओं को आशा में बदल दिया। उनका विश्वास प्रभु येसु की मृत्यु पर टूट गया था, लेकिन प्रभु के पुनरुत्थान ने उन्हें नया विश्वास दिलाया। प्रभु येसु के दुखभोग ने उन्हें प्रभु को अस्वीकार करने के लिए विवश किया, लेकिन प्रभु के पुनरुत्थान ने उन्हें सबके सामने निडर होकर सुसमाचार का प्रचार करने की शक्ति प्रदान की।
इस प्रकार इन तीनों सबूतों में से तीसरा सबूत सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। तर्क-वितर्क से विश्वास नहीं बढ़ता, बल्कि अनुभव विश्वास को पक्का बनाता है। शायद हम भी ईश्वर की दस आज्ञाओं को, कलीसिया के नियमों को कंठस्थ जानते हैं। परन्तु जब प्रभु का अनुभव हमें मिलता है, उनके दर्षन का सौभाग्य हमें प्राप्त होता है तभी हम पक्के विष्वासी बनते हैं। जब हम खाली कब्र तथा आदिम खीस्तीय समुदाय में प्रभु के दर्शन के बारे में लोगों को समझाने की कोशिष करते है तब हम शायद ही प्रभु ईश्वर की उपस्थिति को उनके सामने सिद्ध कर पायेंगे। परन्तु जब प्रभु में हमारे विश्वास के फलस्वरूप लोगों को हमारा जीवन ही बदला हुआ नज़र आयेगा तब कोई भी हमारे विश्वास की असलियत को अस्वीकार नहीं कर पायेगा।
आज के इस पर्व पर हम पुनर्जीवित प्रभु येसु से प्रार्थना करें कि हम भी प्रभु के पुनरुत्थान का पूर्ण अनुभव कर पायें एवं उस पर विश्वास कर सकें ताकि यह अनुभव और विश्वास हमारे जीवन में भी बदलाव लाये। प्रभु येसु के पुनरूत्थान पर हमारा विश्वास हमारी निराषाओं को आशा में, अविश्वास को विश्वास में बदलने और भय को निर्भयता में बदलकर प्रभु का सुसमाचार फैलाने की कृपा हमें दे।