इसायाह 50:4-7; फ़िलिप्पियों 2:6-11; जुलूसः लूकस 19:28-40; मिस्साः लूकस 22:14-23
बाइबिल के अनुसार इस्राएल ईश्वर द्वारा विशेष रुप से चुनी गयी प्रजा थी। विशेष रुप से चुनी गयी प्रजा होने के बावजूद भी दूसरे देषों की अपेक्षा इस्राएली जनता को उनके जीवन में बहुत-सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। कभी वे मिस्र की दासता में थे तो कभी असीरियों की, तो कभी रोमियों की। लोगों का ईश्वर पर विष्वास इन कठिनाईयों के कारण क्षीण हो जाया करता था। न केवल कठिनाईयों के दौरान बल्कि सुख-समृद्धि के समय में भी वे कभी-कभी ईश्वर को भूलने के प्रलोभन से बच नहीं पाते थे। इन अवसरों पर ईश्वर के भेजे हुये नबी उन्हें ईश्वर द्वारा उनके व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में किये गये अद्भुत कार्यो की याद दिलाकर उनका विष्वास पुनः ईश्वर पर सुदृढ़ बनाने की कोशिष करते थे। उदाहरण के लिए, विधि-विवरण ग्रन्थ 7:17-20 में हम पढ़ते हैं कि मूसा इस्राएलियों को उनके जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार करते हुए कहते हैं कि ‘‘याद रखो कि प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने फ़िराउन और सारे मिस्र देश के साथ क्या-क्या नहीं किया था। उन बडे़-बड़े कष्टों को याद करो, जिन्हें तुमने अपनी आँखों से देखा था, उन चिन्हों और उन चमत्कारों को, उस बाहुबल और सामर्थ्य को, जिनके द्वारा प्रभु तुम्हारा ईश्वर तुम्हें वहाँ से निकाल लाया था . . .।’’
इस्राएली जनता के सभी विशेष पर्व भी ईश्वर द्वारा उनके पूर्वजों के जीवन में किये गये महान चमत्कारों को याद करने हेतु मनाये जाते थे। उदाहरण के लिए पास्का पर्व उन्हें उस दिन की याद दिलाता है जब ईश्वर ने चमत्कारों और चिन्हों द्वारा इस्राएल को लाल सागर पार कराकर मिस्र की दासता से मुक्ति दिलायी (निर्गमन ग्रन्थ 13:3)। यहूदी लोग इसी घटना को ईश्वर द्वारा उनके जीवन में किये गये चमत्कारों में सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं।
यह हमारा भी अनुभव है कि ईश्वर द्वारा हमारे जीवन में और हमारे पूर्वजों के जीवन में किये कार्यों को याद करने से ईश्वर पर हमारा विष्वास दृढ़ बन जाता है और हम अपने आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने लगते हैं।
आज हम खजूर इतवार मना रहे हैं। हम पुण्य सप्ताह में प्रवेश कर रहे हैं। इन दिनों में हम ईश्वर द्वारा हम मानवों के लिए किए गये सबसे महत्वपूर्ण कार्यों का स्मरण करते हैं। खजूर इतवार के इस अवसर पर हम उस दिन की याद करते हैं जब प्रभु येसु अपने दुखभोग, मरण एवं पुनरुत्थान के द्वारा अपने परम पिता की इच्छा को पूरा करने के मकसद से येरूसालेम नगर में प्रवेश करते हैं। इसके उपरांत पवित्र बृहस्पतिवार को प्रभु येसु द्वारा यूखारिस्त की स्थापना और बारी में प्रभु येसु के दुखभोग, और पुण्य षुक्रवार को हम प्रभु येसु के क्रूस मरण का स्मरण करेंगे।
आज के पहले और दूसरे पाठों में हमने प्रभु के दुखभोग के बारे में सुना। आज के पहले पाठ में नबी इसायाह द्वारा प्रभु येसु की मृत्यु के करीब साढे़ सात सौ साल पहले, प्रभु येसु के दुखभोग के विषय में की गयी भविष्य वाणी को सुना। दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु खीस्त ईश्वर होकर भी दास का रूप धारणकर, आज्ञाकारी बनकर क्रूस की यातनाऐं सहकर मर गये। आज के सभी पाठ हमें प्रभु येसु खीस्त की प्राण पीड़ा तथा क्रूस-मरण पर मनन् चिंतन करने के लिये प्रेरित करते हैं। इस अवसर पर यह प्रष्न करना उचित होगा कि क्यों प्रभु येसु ईश्वर होते हुए भी हम मानवों का शरीर धारण कर इस धरती पर आये? क्यों प्रभु येसु ने हमारे लिए दुख तकलीफें सही? क्यों प्रभु येसु यातनायें सहकर क्रूस पर मर गये? इन सभी सवालों का एक मात्र जवाब है- प्रभु येसु ने हमें बहुत प्यार किया।
प्रभु येसु का दुखभोग एवं मरण हमारे प्रति येसु के असीम प्रेम का न केवल प्रतीक है वरन् प्रमाण भी है। आज के पाठों में हम एक तरफ ‘होसान्ना दाऊद के पुत्र को होसान्ना’ की जय-जयकार सुनते हैं तो दूसरी तरफ उन्हीं लोगों के मुँह से ‘इसे क्रूस दीजिये‘ की माँग। प्रभु येसु के प्रेम की यह विशेषता है कि इन दोनों अवसरों पर प्रभु ने उन्हें एक समान प्यार किया। हमारी बुराई भी उनके प्रेम के प्रवाह में बाधा नहीं डाल सकती। षायद इसलिये संत पौलुस कहते हैं, ‘‘धार्मिक मनुष्य के लिए षायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये, किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है’’ (रोमियों 5:7-8)।
आज हम प्रार्थना करें कि ईश्वर द्वारा हमारे जीवन में किये गए सभी कार्यों एवं विशेष रूप से प्रभु येसु के दुखभोग, मरण एवं पुनरुत्थान को हमेषा याद करने की कृपा वे हमें दे ताकि हम दिन प्रतिदिन ईश्वरीय विष्वास में बढ़ते जायें और ईश्वरीय प्रेम का अनुभव कर सकें।