योशुआ 5:9अ,10-12; 2 कुरिन्थियों 5:17-21; लूकस 15.1-3,11-31
उडाऊँ पुत्र का दृष्टांत पुत्र की दुष्टता से अधिक पिता की सहद्यता एवं दयालुता पर केंद्रित दृष्टांत हैं। पुत्र का अपने पिता से संपत्ति का हिस्सा मांगना न सिर्फ परंपरा के प्रतिकूल था बल्कि एक प्रकार की उद्दण्डता भी थी। किन्तु पिता पुत्र की अयोग्यता को जानते हुये भी उसे सम्पति का हिस्सा दे देता है। पुत्र जल्द ही अपनी सम्पत्ति का हिस्सा भोग-विलास में उडा देता है तथा अत्यंत दयनीय तथा दरिद्रता का जीवन जीने लगता है। उसे पराये देश में सेवक की नौकरी करनी पडती हैं। वहॉ उसे सूअरों की देखभाल करने का कार्य दिया जाता है। उस देश में अकाल पडा था इसलिये वह सूअर का खाना खाकर “अपना पेट भरना चाहता था, लेकिन कोई उसे उन में से कुछ नहीं देता था” (लूकस 15:16)। तब जाकर वह सोचता है कि उसके पिता के सेवकों के साथ कितना अच्छा व्यवहार किया जाता है। अतः वह सेवक के रूप में ही पिता के घर लौटना चाहता है। हैरानी की बात है कि वह अपने पिता को उसका इंतजार करते हुये पाता है। पिता बिना किसी हिचकिचाहट से उसका स्वागत करता है तथा उसे पुत्र का दर्जा पुनः प्रदान करता है। पिता और पुत्र का व्यवहार निम्नलिखित बातें प्रदर्शित करता है।
1. उडाऊँ पुत्र का रवैया हमे सिखलाता है कि जब हम अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं तो पाप करते हैं तथा इस परिणामस्वरूप सदैव कष्ट उठाते हैं। संत पौलुस कहते हैं, “पाप का वेतन मृत्यु है” (रोमियों 6:23)। आदम और हेवा को ईश्वर ने सबकुछ के साथ उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी प्रदान की थी। किन्तु जब उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का मनमाना इस्तेमाल किया तो उन्होंने पाप किया तथा वे ईश्वर से दूर हो गये। धर्मग्रंथ हमें इस विषय में चेतावनी देता है, “भाइयो! आप जानते हैं कि आप लोग स्वतंत्र होने के लिए बुलाये गये हैं। आप सावधान रहें, नहीं तो यह स्वतन्त्रता भोग-विलास का कारण बन जायेगी।” (गलातियों 5:13) तथा “आप लोग स्वतन्त्र व्यक्तियों की तरह आचरण करें, किन्तु स्वतन्त्रता की आड् में बुराई न करें।” (1 पेत्रुस 2:16) उडाऊँ पुत्र के पिता ने जो स्वतंत्रता उसे प्रदान की थी उसका दुरूपयोग कर वह पिता से सम्पत्ति का बंटवारा करने को कहता है।
2. पुत्र का व्यवहार बताता है कि जब उसने अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग किया तो वह प्रारंभिक दौर में तो भोग-विलास का आनन्द उठाता है किन्तु बाद में उसे घोर यंत्रणा उठानी पडती हैं। ईश्वर से दूर जाकर, उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन कर शुरूआत में तो हमें स्वतंत्रता का अहसास होता है किन्तु जल्द ही हम अनेक बातों, वस्तुओं, परिस्थितियों या व्यक्तियों के गुलाम बन जाते हैं जो हमारे तिरसकार एवं पतन का कारण बन जाता है।
3. पुत्र अपना सबकुछ लुटाने के बाद भी अपने पिता के घर लौटने में देर करता है। पहले उसे किसी बैगाने देश में सेवक बनना पडता है। फिर उसे सूअरों की देखभाल करने का कार्य दिया जाता है। इसके बाद भी उसे पिता के घर लौटने की याद नहीं आती। फिर उसे सूअरों का खाना खाकर अपना जीवन गुजारना पडता है। इतनी दयनीय स्थिति से गुजरने के बाद वह अपने पिता के घर लौटने की सोचता है। एक पापी के रूप में जब हम ईश्वर से दूर हो जाते हैं तो हमारा जीवन भी विभिन्न दुखमयी परिस्थितियों से गुजरता है। हम सांसारिक ’जुगाड’ लगाकर टाल मटोल का रवैया अपनाते हैं। ईश्वर की ओर लौटने के बजाय जब तक हम मजबूर नहीं होते या टूट नहीं जाते हैं तब तक शायद हम ईश्वर की ओर न लौटे। उडाऊँ पुत्र का व्यवहार हमें शिक्षा देता है कि जब हम जीवन में ईश्वर से दूर हो जायें तो यह कहने में “मैं उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा...” देर न करें।
4. उडाऊँ पुत्र का अपने जीवन को सही मार्ग पर लाने का एकमात्र रास्ता पश्चातापी हृदय से अपने पिता के घर लौटने का था। इस बात को समझने में उसे बहुत कष्ट उठाना पडता है तथा समय लगता है। यदि हम ईश्वर से दूर है तो हमें भी पश्चाताप कर ईश्वर की ओर लौटना चाहिये क्योंकि बचने का यही एकमात्र उपाय है।
5. पिता का व्यवहार ईश्वर का मानव के प्रति दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। जब पुत्र ने पिता से अलग हो जाना चाहा तो पिता ने यह जानते हुये भी कि पुत्र की मांग मर्यादा के अनुरूप नहीं है उसकी स्वतंत्रता के अनुसार निर्णय करने देता है।
6. जब पुत्र लौटता है तब वह पिता को उसका इंतजार करते हुये पाता है। पिता का उसे इस प्रकार दूर से ही देख लेना एक संयोग मात्र नहीं था बल्कि पिता रोजाना ही अपने पुत्र की राह देखता रहता था। ईश्वर भी हमारे लौटने के प्रति आशावादी है तथा हमारे सही मार्ग पर लौटने की प्रतीक्षा करते हैं।
7. पिता अपने पुत्र का बिना शर्त स्वागत करता है। वह उसे न तो डांटता है और न ही उसमें ग्लानि का भाव उत्पन्न कराने के लिए कुछ कहता है। बल्कि वह उसे पुत्र के रूप में स्वीकार कर उसका स्वागत करता है। वह उसे पुत्र के वस्त्र एवं अॅगूठी पुनः प्रदान कर उसे पहली जैसी गरिमा प्रदान करता है।
8. जब बडा लडका पिता के इस व्यवहार पर कडी आपत्ति उठाता है तथा घर में आने से इंकार कर देता है तो पिता अपनी उदारता न्यायोचित बताता है। वह बडे बेटे को मनाने के लिए बहाना नहीं बनाता बल्कि प्रदर्शित करता है कि पिता की उदारता पश्चातापी पुत्र के लिए सदैव बनी रहती है।