योशुआ 5:9अ,10-12; 2 कुरिन्थियों 5:17-21; लूकस 15.1-3,11-31
आज के पाठों का विषय है ‘मेल-मिलाप’। पहले पाठ में ईश्वर पहले कदम बढ़ाते हैं- इस्राएल के सारे पापों व गलतियों को क्षमा करने के लिए। इस प्रकार ईश्वर और इस्राएल का मेल-मिलाप होता है। दूसरे पाठ में संत पौलुस कहते हैं कि ‘‘नया जीवन’’, ख्रीस्त में जीवन जीने का नतीजा है। संत पौलुस का दृढ़ विश्वास है कि जो ख्रीस्त में जीता है वह व्यक्ति मिलनसार व मेल-मिलाप करने वाला होता है और इस प्रकार वह नये जीवन की ओर अग्रसर होता है। ख्रीस्त के महान बलिदान के द्वारा ही ईश्वर व मुनष्य का मिलन संभव हो सका है। ख्रीस्तीय होने की भव्यता एवं सुन्दरता इस बात में है कि वह नया जन्म लेने के काबिल होता है और उन सब बातों का त्याग करता है जो मेल-मिलाप के विरुद्ध है।
संत लूकस के सुसमाचार के जिस भाग की आज की पूजन-विधि में घोषणा की गई, वह सम्पूर्ण धर्मग्रन्थ का एक अति सुन्दर हिस्सा है जो मानव इतिहास में, मानव व ईश्वर के मेल-मिलाप को चित्रित करता है। यहाँ पर ईश्वर जो दयालु पिता है उनसे पापी मनुष्य के मिलन का सुन्दर वर्णन है। छोटा बेटा जिसे धन-दौलत की भरपूरता के बावजूद अपना घर अधूरा लगा, ने पिता से जायदाद का अपना हिस्सा माँगा। पिता ने उसका हिस्सा दे दिया। छोटे पुत्र ने धन का अपना हिस्सा मौज-मस्ती में उड़ा दिया। इस कहानी में नाटकीय मोड़ आता है जब उस पुत्र के पास कुछ भी धन नहीं बचता। गरीबी के हालात उसे विचार करने को मजबूर कर देते है कि उसके पिता के घर में कितना प्रेम व खुशी है। पिता के घर में प्राप्त सुख-सुविधाओं का विचार आते ही उसे दुःख और पश्चात्ताप होता है। वह अपने पिता से, परिवार से पुनः रिश्ता जोड़ने के लिए वापस घर जाता है। हम रिश्तों में ही अपने जीवन के अस्तित्व का अर्थ समझ सकते हैं। किन्तु जब हमारे रिश्ते असफल होते हैं तो हम क्या करते हैं ?
इस संदर्भ में एक कहानी है। एक सुप्रसिद्ध वक्ता ने अपना भाषण 500 रुपये का नोट दिखाकर शुरू किया। उस स्थान पर करीब 200 लोग थे। उसने पूछा, ‘‘क्या आप में से किसी को 500 रुपये का यह नोट चाहिए’’? बहुत से लोगों ने अपने हाथ ऊपर किये। वक्ता ने कहा, ‘‘मैं यह नोट सिर्फ एक व्यक्ति को दे सकता हूँ, किन्तु उसके पहले मुझे कुछ करना है’’। वह नोट को मोड़कर मसलने लगा। फिर पूछा, ‘‘अब यह किसे चाहिये’’? कुछ हाथ फिर से ऊपर उठे। ‘’ठीक है’’ कह कर उसने नोट को जमीन पर फेंका और पैरों तले रौंद डाला। फिर नोट उठाया और पूछा, ‘‘अब किसे चाहिए’’? कुछ हाथ फिर भी उठे। वक्ता ने कहा, ‘‘दोस्तों, इस से हमें एक अनमोल सबक मिलता है - कि नोट चाहे कैसा भी हो, मैला-कुचला या फटा-पुराना फिर भी उसकी कीमत कम नहीं होती’’।
हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है। हम जीवन में गिरा दिये जाते हैं, दबाये जाते हैं, कुचले जाते हैं। हमारे गलत कार्यों एवं निर्णयों के कारण हम गिर जाते हैं। कभी-कभी वातावरण ही दूषित होता है जो हमें बिगाड़ देता है। इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि हमारे साथ क्या हुआ है या क्या होगा। हमारा ‘मान’ कभी नहीं घटेगा। परन्तु पहले हमें अपनी ‘कीमत’ अपना ‘महत्व’ समझना है।
उड़ाऊ पुत्र को यही एहसास - अपने ‘महत्व’ का - वापस घर ले कर आया। अपनी आदतों तथा इच्छाओं के द्वारा 500 रूपये के नोट की भांति उसे भी तोड़ा-मरोड़ा गया। जब उसकी धन-सम्पत्ति खत्म हो गयी तब सारे मित्रों ने उसे अकेला छोड़ दिया। वह परित्यक्त बन गया। यह सब उसके ही किये-कराये का फल था।
जैसे कि लोगों ने 500 रुपये के फटे नोट को पाने के लिए हाथ उठाये उसी प्रकार दयालु और प्रेमी पिता ने अपने उड़ाऊ पुत्र के प्रति प्रेम दर्शाया। हालाँकि पुत्र बिछड़ गया था लेकिन पिता को अपना प्रेम याद था।
चालीसा का समय घर वापसी का समय है। किन्तु यह समय तब ही फलदायी होगा जब हम अपना महत्व समझें। दयालु पिता का दृष्टांत यही सिखाता है। हम चाहे कितने भी बुरे हों, गिर गये हों, स्वर्गीय पिता हमें वापस प्यार से अपना लेंगे। वे हमें उनके प्रेमपूर्ण जीवन में सहभागी होने के लिये बुलाते हैं। यह एक निमंत्रण है, चुनौती है। यह दृष्टान्त ईश्वर के अटूट प्रेम से भरा है।
यदि उड़ाऊ पुत्र पिता के घर वापस नही आता तो पिता उसे क्षमा कैसे कर पाता? पुत्र क्षमा पाने के लिए तैयार था, क्योंकि वह ईमानदार था, उसने अपने आप को परख लिया था कि वह कैसा व्यक्ति है। उसे मालुम हो गया था कि वह गिरा हुआ इंसान है और उसने उस सच्चाई को स्वीकारा।
ख्रीस्तीय धर्म मूलतः आशावादी है। इस आशा का आधार ‘नई पृथ्वी तथा नया स्वर्ग’ है जिसका वर्णन हम प्रकाशना ग्रन्थ में पाते है। आज के पाठों में, विशेषकर सुसमाचार में नये स्वर्ग तथा नयी पृथ्वी की स्थापना के बारे में बताया गया है जिसकी मुख्य बात है - वापसी अर्थात घर वापसी। ख्रीस्त पर आधारित जीवन ही नया जीवन है।
‘घर वापसी’ के बारे में, नये व्यवस्थान में हम कई जगह पढ़ सकते हैं ख्रीस्त केन्द्रित जीवन ही नया जीवन है। याद कीजिए प्रेमी पिता के शब्द- उसके लिए नये वस्त्र लाईये ......हम त्यौहार मनायें। याद कीजिए, उन नाकेदारों को, जैसे ज़केउस, जिन्होंने गरीबों की खून पसीने की कमाई को हड़प लिया था, किन्तु येसु के निमंत्रण पर, सब कुछ त्याग कर उनके शिष्य बन गये। वे जो पापी थे प्रेमी पिता के घर उनकी वापसी हुई। पेत्रुस जैसे मछुवारे, जो सिर्फ मछली पकड़ना जानते थे, येसु के उनके जीवन में आने से, अपना सब कुछ त्याग कर उनके पीछे हो लिये। येसु ने उनके जीवन को छू लिया था और इसी स्पर्श ने उनका मन परिवर्तन, जीवन परिवर्तन कर दिया। उड़ाऊ पुत्र को जब प्रेमी पिता ने अपने बाहों में भर लिया, तब उस पुत्र का मन परिवर्तन हुआ, और हमेशा के लिए उसका जीवन बदल गया। उसका जीने का दृष्टीकोण बदल गया ।
आज के पाठों का हमारे जीवन में क्या महत्व है? आज का संसार हम से कहता है कि आगे बढ़ो, उन्नति करो, पैसा कमाओ। ऐसे में क्या हम पीछे हटकर, मुड़कर स्वर्गीय मूल्यों पर मनन चिन्तन कर सकते हैं, घर वापसी कर सकते हैं? क्या हम ईश्वर एवं मनुष्यों के साथ पुनः सही प्रेम का रिश्ता जोड़ सकते हैं? स्वार्थ, धन के प्रति अति लगाव, आदि घर वापसी में, ईश्वर के साथ रिश्ते में बाधक होते है । येसु ख्रीस्त हमें ईश्वर के साथ जोड़ने वाली कड़ी है। ख्रीस्त ने यह सम्बन्ध अपने मृत्यु एवं पुनरूत्थान के द्वारा स्थापित किया है। स्वर्गीय पिता के आवास में प्रवेश करने के लिए त्याग अत्यन्त आवश्यक है। अतः हम अपने आपका त्याग करें, अपना क्रूस उठाये और येसु के पीछे हो लें। यही येसु हमें अनन्त जीवन प्रदान करेंगे।