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चक्र स - 12. प्रभु प्रकाश पर्व

इसायाह 60:1-6; एफे़सियों 3:2-3अ, 5-6; संत मत्ती 2:1-12

(फादर अन्टनी आक्कानाथ)


आज कलीसिया तीन राजाओं के आगमन का पर्व मना रही है। संत मत्ती के सुसमाचार के अनुसार बेथलेहम में बालक येसु की आराधना करने तीन ज्योतिषी पूर्व से आये। उनके बारे में तीन सच्चाइयाँ हमारे सामने आती हैं। पहला, वे गौशाले में ईश्वर को खोज रहे थे। दूसरा, अपना सर्वोत्तम उन्होंने ईश्वर को अर्पित किया। तीसरा, उनके जीवन को नई दिशा मिल गई।

आज वह दिन है जब प्रभु येसु ने अपने को गैर-यहूदियों के लिये प्रकट किया। आज का त्योहार ‘प्रभु-प्रकाश‘ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व का यूनानी नाम ‘एपिफनिया‘ है जिसका शब्दार्थ है ‘अपने आप को प्रकट करना’। ईश्वर ने अनादि शब्द प्रभु येसु को संसार पर प्रकट किया।

यह प्रारंभ से ही स्पष्ट है कि प्रभु येसु इस संसार में न केवल इस्राएलियों के लिये बल्कि गैर-यहूदियों के लिये भी आये, इसलिये नहीं कि यहूदियों ने प्रभु येसु को अस्वीकार किया बल्कि यह ईश्वर की योजना ही थी कि सारा संसार उनके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे।

हम सब गैर-यहूदी हैं इसलिये सचमुच में यह हमारा ही पर्व है। आज मेरे और आपके लिये प्रभु येसु अपने को प्रकट करते हैं। हम आनंदित हैं क्योंकि कलीसिया के द्वारा हम प्रभु से जुड़ गये हैं। हम आनंदित हैं क्योंकि हमने उनकी चंगाई और स्वतंत्रता के सुसमाचार को जाना है। हम आनंदित इसलिये भी हैं कि हमने उनके द्वारा मुक्ति पाई है।

इस प्रचुर आनंद के साथ हमें कुछ दायित्व भी सौंपा गया है। वह यह है कि प्रभु येसु के दिखाये मार्ग पर चलकर हमें ईश्वर की इच्छा पूरी करनी हैं। हम जो प्रभु येसु को प्रकट रुप से घोषित करते हैं, इस बात को महसूस और स्वीकार करते हैं कि हमें उत्कृष्ट सोच-विचार और व्यवहार की आवश्यकता है। इसके अलावा अपने पड़ोसियों को प्रभु के बारे में बताना भी हमारा कत्र्तव्य है।

मैं आरोमाथेरेपी के बारे में एक लेख पढ़ रहा था। यह मेरी रुचि का विषय नहीं है लेकिन एक पल्लीवासी ने उस ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया था। इस लेख में लेखिका ने उन उपहारों के बारे में लिखा हैं जिन्हें वे तीन ज्ञानी बालक येसु को उपहार स्वरूप देने लाये थे- सोना, गंधरस और लोबान। लेखिका के अनुसार ये उपहार स्वाभाविक अंतरनिहित आरोग्यकर वस्तुएँ थी। आज आर्थीराईटस के कुछ रूप में सोने के इंजेक्शन द्वारा इलाज किया जाता है। श्वास संबंधी समस्या में लोबान का उपयोग होता है और गंधरस एक प्राकृतिक प्रतिरोधक है। लेखिका ने यह भी ज्ञात किया कि ख्रीस्त जयंती के कई सप्ताह पूर्व आरोमाथेरेपी की अधिकांश दुकानों से गंधरस और लोबान की खूब खरीदारी होती है।

मुझे आर्थीराईटस की समस्या हो जाने पर शायद मैं सोने के इंजेक्शन के बारे में नहीं सोचूँगा, पर दाँत के दर्द में ज़रूर चाहूँगा कि सोने के उपयोग द्वारा उसका इलाज हो।

वस्तुतः ये उपहार प्रतीकात्मक थे। मान्यताओं के अनुसार वे प्रभु येसु की ओर महत्वपूर्ण संकेत कर रहे थे। सोना-उनकी राजत्व का अर्थात प्रभु येसु राजा हैं; लोबान-उनके दैवत्व का और गंधरस उनके दुःखभोग और दफन का।

ये उपहार मसीह की उस मुक्ति की ओर भी इंगित कर रहे थे जो वे संसार को देने वाले थे। अपने सार्वजनिक जीवन में प्रभु येसु ने बहुत से बीमारों को चंगा किया, बहुत से मानसिक रोगों और आत्मिक विषमताओं को दूर किया। परन्तु इन सबसे बढ़कर वे आध्यात्मिक चंगाई प्रदान करने आये थे। वे पाप, जो शरीर और आत्मा के रोगों की जड़ है तथा हमें गुलाम बनाकर हमारा जीवन दुखदायी बनाता है, को मिटाने आये। यही वास्तविक मुक्ति और वास्तविक चंगाई है।

कलीसियाई इतिहास में इस पर्व को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इतिहास इस बात का गवाह है कि ख्रीस्त जंयती पर्व मनाना शुरू करने के पहले ही ख्रीस्तीय समुदायों में यह पर्व मनाने की प्रथा प्रचलित थी।

प्रारंभिक कलीसिया में इस पर्व में तीन घटनाओं पर उत्सव मनाया जाता था - तीन ज्ञानियों का आगमन, यर्दन नदी में प्रभु येसु का बपतिस्मा और काना के विवाह समारोह में प्रभु येसु का पानी को अंगूरी में बदलना। तीन ज्ञानियों के आगमन से प्रभु येसु अपने को संसार के राजा के रूप में प्रकट करते हैं, जिसका गैर-यहूदियों ने सबसे पहले दर्शन किया। यर्दन नदी में बपतिस्मा के द्वारा प्रभु येसु अपने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत करते हैं और पहली बार लोगों पर अपने को प्रकट करते हैं। काना के विवाह समारोह में पानी को अंगूरी में बदलना प्रभु का पहला चमत्कार था। संत योहन इस चमत्कार के विवरण के बाद कहते है, ‘‘ईसा ने अपना यह पहला चमत्कार गलीलिया के काना में दिखाया। उन्होंने अपनी महिमा प्रकट की और उनके शिष्यों ने उनमें विष्वास किया’’ (योहन 2:11)। इस प्रकार पंरपरा के अनुसार इन तीनों घटनाओं में प्रभु येसु अपने आप को मुक्त्तिदाता के रूप में प्रकट करते हैं।

काथलिक कलीसिया में इस पर्व को मनाने के पीछे यह धारणा थी कि प्रभु येसु ने गैर-यहूदियों पर अपने को सबसे पहले प्रकट किया, तीन ज्ञानी इसके प्रतीक थे। ये ज्योतिषी उस नये तारे का अर्थ खोजने के लिए अनजानी और ज़ोखिम भरी यात्रा पर निकल पड़े और यह यात्रा बेथलेहेम में उस शिशु की आराधना में समाप्त हुई।

हमारे जीवन का अर्थ खोजने के लिये हमें संसार के परे वहाँ जाना होगा जहाँ ईश्वर का आत्मा जीवन को परिपूर्णता की ओर ले चलता है। संसार को यह बात ग्राह्य नहीं है क्योंकि सांसारिक दृष्टिकोण के अनुसार धन के द्वारा सब कुछ सम्भव है, परन्तु सच्चाई यह है कि धन के द्वारा आत्मा के अनंत आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

संत अगुस्तीन ने इसी सांसारिकता को अनुभव करने के बाद लिखा - हे प्रभु हमारा हृदय सिर्फ तेरे लिये बनाया गया है, जब तक वह तुझ में नहीं समा जाता तब तक उसे शांति नहीं मिल सकती। वे तीन ज्ञानी प्रभु से मिले आनंद को अपने में नहीं समा पा रहे थे। वे ईश्वरीय परिपूर्णता को महसूस कर रहे थे। उनके आनंद का कारण यह नहीं था कि उन्होंने क्या किया बल्कि यह कि वे मसीह के जीवन के भागी बन गये थे।

राजा हेरोद धनी और शक्तिशाली था परन्तु उसकी आत्मा दरिद्र थी क्योंकि वह प्रभु की उपस्थिति का विरोध करता था। महायाजक और षास्त्री सभागृहों में संहिता पर चर्चा करते थे पर बालक येसु में पूर्ण हो रही संहिता को पहचान नहीं पाये।

हमारा जीवन तभी सफल होगा जब हम ईश्वर का आत्मा द्वारा अपने को संचालित होने देंगें। उपहार मिलने पर होने वाला आनंद क्षणिक है, प्रतियोगिता जीतने पर मिलने वाला आनंद क्षणिक है, परन्तु ईश्वर की आत्मा से मिलने वाला आनंद परिपूर्ण और सत्य है। पवित्र आत्मा की अनुभूति हमें तभी प्राप्त होगी जब हम मसीह की ज्योति में चलेंगे।

आईये हम ईश्वर से निवेदन करें कि हमारे सामने निंरतर प्रकट होने वाले उनकी उपस्थिति को पहचाने पाये और उसे दूसरों के सामने भी प्रकट करें।


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