इसायाह 62:1-5; प्रेरित चरित 13:16-17,22-25; मत्ती 1:1-25 या 1:18-25
जब हम किसी के जन्मदिन की पार्टी में जाते हैं तो जन्मदिवस मनाने वाले के लिये कुछ उपहार ले जाते हैं। उसके लिये उपहार ले जाते समय हम उसकी पसंद का विशेष ध्यान रखते हैं। हम बडे सोचविचार के साथ उसके लिये उपयुक्त तथा पसंदीदा उपहार खरीदते है। जब हम क्रिसमस मनाते है तो उसके लिये भी हम बहुत धूमधाम के साथ, विस्तृत तैयारी करते हैं। हम अपने लिये सबसे बेहतर कपडे खरीदते हैं, घरों की सफाई तथा रंगरौगन करते हैं, स्वादिष्ट मिठाईयॉ एवं केक बनाते हैं। इस सब तैयारियों के बीच हम शायद यह भूल जाते हैं कि वास्तव में यह जन्मदिन किसका है। हमारी तैयारियों से तो यही आभास होता है कि हम किसी और का नहीं बल्कि स्वयं का ही जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहे हैं।
हमारी तैयारियों का केन्द्र कौन है? क्या हम येसु की पसंद को ध्यान में रखकर अपनी तैयारियों को अंजाम देते हैं? येसु की पसंद क्या है? सुसमाचार में येसु स्वयं की पहचान भूखों, प्यासों, परदेशियों, बीमारों से करते हुये कहते हैं, “मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया, मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया, मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया, मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया, मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये, मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।“ (मत्ती 25: 35-36) यदि हमारी तैयारियों का केन्द्रबिन्दु येसु है तो हमे उनकी पसंद के अनुसार इन उपेक्षित लोगों की मदद करने हेतु कोई कार्ययोजना बनानी चाहिए अन्यथा हमारी तैयारियों के बावजूद भी हम येसु को प्राप्त नहीं कर पायेंगे।
बाइबिल में हम अनेक लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन को देखते हैं जिन्होंने येसु को केन्द्र बनाकर उनके जन्म की तैयारी की। मरियम को जब स्वर्गदूत का संदेश मिलता है तो वे विनम्रता के साथ स्वयं को प्रभु की दासी के रूप में प्रस्तुत करती है। स्वर्गदूत की सूचना, ’’देखिए, बुढापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीजबेथ के भी पुत्र होने वाला है।’’ (लूकस 1:36) पर विश्वास करके वे एलीजबेथ से भेंट करने जाती है जिसके परिणामस्वरूप गर्भ में योहन बपतिस्ता पवित्रआत्मा से अभिषिक्त हो जाते हैं। यूसुफ भी स्वर्गदूत से येसु के गर्भधारण एवं जन्म की पूर्वसूचना पाकर अपनी सारी योजनाओं को त्याग देते हैं तथा मरियम को ईश्वरीय इच्छानुसार अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं। जकरिया, एलीजबेथ गडेरिये, ज्योतिषी आदि भी येसु के जन्म पर विश्वास कर उनके अनुसार अपने जीवन को मोडते हैं। किन्तु जिन्होंने अपने जीवन में येसु को केन्द्र मानकर अपने जीवन में तैयारी नहीं की उन्होंने ईश्वर से मिलने का मौका ही खो दिया। जब हेरोद को येसु के जन्म की सूचना दी गयी तो उसने येसु से मिलने के बजाये उन्हें मारने का उपाय करने लगा। यदि वह भी येसु से मिलने का प्रयत्न करता तो शायद उसका जीवन भी बदल सकता था। उडाऊ पुत्र के दृष्टांत में हम पाते है कि पिता के जीवन का केन्द्रबिन्दु पुत्र के प्रति उसका प्रेम था। उडाऊ पुत्र ने उसकी सम्पति का हिस्सा लेकर अपने पिता को दुख के साथ-साथ बदनामी भी दी। किन्तु जब वह लौटता है तो पिता न तो उस पर दोष लगाता है और न ही कुछ सवाल करता है इसके विपरीत प्रेम से प्रेरित होकर वह उसका बिना शर्त स्वागत करता है। इस प्रकार पुत्र के प्रेम के केन्द्र में होने कारण वह उसकी सारी गलतियों को नज़रअंदाज कर अपने पुत्र को पाने का आनन्द मनाता है। किन्तु उसका बडा पुत्र अपनी ईर्ष्या एवं कुण्ठा के कारण अपने भाई के लौटने के आनन्द से स्वयं को वंचित कर लेता है। उसके केन्द्र में स्वार्थ है न कि भाई के प्रति प्रेम।
हमारी क्रिसमस की तैयारियों में भी येसु की इच्छा एवं पसंद को सर्वोच्च स्थान मिलना चाहिए। हमें भी योजना बनानी चाहिए कि हम कैसे गरीबों को भोजन, निराश्रितों को आश्रय, उपेक्षितों को अपनापन देकर येसु के जन्म दिन पर उनकी पसंद एवं इच्छानुसार उपयुक्त उपहार तैयार कर सकें।