इसायाह 62:1-5; प्रेरित चरित 13:16-17,22-25; मत्ती 1:1-25 या 1:18-25
एक बार प्रसिद्ध ईशशास्त्री कार्ल बार्थ को शिकागो डिवाइन महाविद्यालय में भाषण देने के लिये आंमत्रित किया गया था। उनका भाषण हमेशा की तरह प्रभावशाली था। भाषण के उपरांत महाविद्यालय के डीन ने छात्रों को सूचित किया कि कार्ल बार्थ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इसलिये वह उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पायेगें, किन्तु हम औपचारिकता के नाते उनसे केवल एक ही प्रश्न करेंगे। डीन का कार्ल बार्थ से प्रश्न था कि ‘ईश्वर के विषय में आपका सबसे महान ज्ञान क्या है’? इस पर सभी उपस्थित लोग बड़ी जिज्ञासा के साथ अपने पेपर और कलम लेकर तैयार बैठ गये। वे संभवतः सोच रहे थे कि कार्ल बार्थ बड़ी ही गूढ़ बात कहेंगे। कार्ल बार्थ ने गहरी सांस लेकर अपनी आँखें कुछ पल के लिये बंद की और बोले ईश्वर के विषय में मेरा सबसे महान ज्ञान यह है कि ‘‘ईश्वर मुझसे प्यार करते हैं और मुझे इसका ज्ञान है’’। कार्ल बार्थ, जो ईश्वर के विषय में बहुत ज्ञान रखते थे तथा ईश्वर के विषय में सैकड़ों लेख व किताबें लिख चुके थे, का सबसे बड़ा ज्ञान यही था कि ईश्वर उनसे प्यार करते हैं। मैं समझता हूँ इसी बात को प्रमाणित करने के लिये ईश्वर स्वयं मानव बनकर इस दुनिया में आये और यही है क्रिसमस का उद्देश्य।
क्रिसमस का संदेश येसु के नाम में ही निहित है। माता मरियम को संदेश देते समय गब्रिएल दूत का यह कहना था कि वह जिस पुत्र को प्रसव करेंगी उसका नाम एम्मानुएल रखा जायेगा जिसका अर्थ है ‘ईश्वर हमारे साथ है‘। यह बताने के लिये कि ईश्वर हमारे साथ है येसु इस दुनिया में आये थे। वे हमारी तरह मनुष्य बन गये तथा हमारी ही तरह उन्होंने इस संसार की सारी बातों का अनुभव किया है। इस जीवन के प्रलोभनों पर किस तरह से विजय प्राप्त की जाये और किस तरह से ईश्वर की आज्ञा पूरी की जाये आदि बातें उन्होंने अपने जीवन द्वारा हमें सिखलाई। वे मानव जीवन की जटिलताओं को अच्छी तरह से समझते हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं यह जीवन जीया है। इब्रानियों के नाम पत्र भी हमें यही बात सिखलाता है। ‘‘. . . (येसु) हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है‘‘ ( इब्रानियों 4:15 )। इसलिये क्रिसमस का पर्व हमारे जीवन में यह विश्वास लेकर आना चाहिये कि हम इस जीवन की परीक्षा में अकेले नहीं है; येसु हमारे साथ हैं।
दूसरी बात जो क्रिसमस हमारे सामने लाता है वह है कि जब येसु का जन्म होता है तो केवल वे ही लोग बालक येसु के दर्शन कर पाते हैं जो इस बात को स्वीकार करते हैं कि ईश्वर एक गरीब स्थान में जन्म ले सकता है। बहुत से विद्वानों को इस बात की जानकारी थी कि येसु का जन्म बेथलेहम में होगा। हेरोद, शास्त्रियों, फ़रीसियों तथा अन्यों को भी इस बारे मंे बताया गया था, लेकिन वे इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि ईश्वर इस तरह से जन्म ले सकते हैं। अपनी इस हठधर्मिता के कारण वे येसु से मिलने का अवसर खो बैठते हैं।
एक लड़का कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था। उसका पिता रोज उसे छोड़ने कॉंलेज जाया करता था। रास्ते में वे एक कार देखा करते थे। लड़के को वह कार बहुत पसंद थी और पिता जो कि एक अमीर व्यक्ति था, अपने बेटे से वादा करता है कि जिस दिन वह अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगा, उसे उपहार में वही कार दी जाएगी। फिर वह दिन भी आ गया जब बेटे ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। कॉंलेज से डिग्री लेने के बाद वह खुशी-खुशी अपने पिता से मिलने उसके ऑफिस जाता है। उसे पूरी आशा है कि उसका पिता उसे वही कार देगा। जब वह पिता से मिलता है तो पिता उससे बहुत खुश होता है और एक बड़ा सा उपहार देता है। बेटा बड़ी ही खुशी से वह उपहार खोलता है क्योंकि उसे पता है कि इसके अंदर कार की चाबी है। लेकिन जैसे ही वह कवर खोलता है तो देखता है कि उसके अंदर एक बाइबिल रखी थी। यह देखकर बेटा बहुत उदास हो जाता है तथा वह बाइबिल को छूता तक नहीं है। वह अपने पिता से बहुत नाराज हो जाता है क्योंकि उसके पिता ने उससे किया हुआ वायदा पूरा नहीं किया था। वह इतना उदास एवं दुखी हो जाता है कि अपने पिता को छोड़कर कहीं दूर चला जाता है।
अब यह लड़का किसी दूर शहर में रहकर एक संपन्न जीवन जीने लगता है। कुछ वर्ष इसी तरह बिछोह में बीत जाते हैं। एक दिन उस लड़के को यह खबर मिलती है कि उसका पिता बहुत बीमार है। यह सुनकर लड़का अपना सारा गुस्सा भूल जाता है। वह तुरन्त ही अपने पिता से मिलने निकल पड़ता है। जब वह घर पहुँचता है तो पता चलता है कि उसका पिता मर चुका था। बेटे को बहुत दुख होता है। वास्तव में वह अपने पिता को बहुत चाहता था। फिर वह अपने पिता के ऑफिस जाता है और वहाँ पर देखता है कि जो उपहार वह वर्षो पहले आधा-अधूरा खुला छोड़कर गया था वह वैसा का वैसा ही रखा है। यह देखकर उसे उस घटना की याद आ जाती है तथा बड़े ही भारी दिल से वह उस उपहार में रखी बाइबिल को उठाता है। बाइबिल के पन्नों को पलटने पर पाता है कि उसके अन्दर उस कार की चाबी थी जिसे उसके पिता ने उसे देने का वादा किया था। यह देखकर पुत्र बहुत रोता है। लेकिन इसका कोई लाभ नहीं है। जो समय वह अपने पिता के साथ खुशी-खुशी जी सकता था वह बीत चुका था।
हमारे जीवन में भी अनेक बार ऐसे अवसर आते हैं जब ईश्वर हमसे मिलने आते हैं; हमें अवसर देते है। लेकिन उसकी पैकिंग अलग तरह की होती है। हम उन उपहारों को खोलकर भी नहीं देखते हैं, उसे अस्वीकार कर देते हैं। ऐसा करके हम उन अवसरों को खो देते हैं जो शायद हमारे जीवन को बदल देते।
यही जीवन की त्रासदी भी है। हम ईश्वर की खोज में लगे रहते हैं, लेकिन जब वास्तव मंे ईश्वर हमारे सामने आते है तो हम अपनी योजनाओं एवं महत्वाकांक्षाओं में इतने खो जाते हैं कि उन सभी बातों को नकार देते हैं जो हमारी योजनाओं से मेल नहीं खातीं। इस तरह से हम स्वयं ईश्वर को नकार देते हैं और हमारा जीवन भी हेरोद, शास्त्रियों, फ़रीसियों तथा उन हठधर्मियों के जैसा हो जाता है जिन्होंने ईश्वर को उस रूप में स्वीकारने से इंकार कर दिया था जिसे ईश्वर ने स्वयं अपनी प्रज्ञा के अनुसार चुना था।
आइये हम भी यह निर्णय करें कि जैसे भी ईश्वर हमारे जीवन को चलाते हैं, जिस तरह के उपहार वह हमें देते है, हम उसे स्वीकार करें और ईश्वर से मिलने के अवसरों को खुला रखें।