बारुक 5:1-9; फिलिप्पयों 1:4-6,8-11; लूकस 3:1-6
स्तोत्र ग्रन्थ के दो स्तोत्र प्रवेश स्तोत्र माने जाते हैं। वे हैं – स्तोत्र 15 और स्तोत्र 24। इन स्तोत्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि मंदिर में प्रवेश करने वाले उपासकों से कौन-कौन सी अपेक्षाएं की जाती हैं। इन स्तोत्रों में उपासक इस विषय पर सवाल करता है और याजक उसका जवाब देता है। स्तोत्र 15 में याजक के जवाब में मंदिर में प्रभु से मुलाकात करने आने वालों से ग्यारह अपेक्षाएं की जाती हैं। इन में से कुछ सकारात्मक (positive) शर्तें / अपेक्षाएं हैं और कुछ नकारात्मक (negative) शर्तें / या अपेक्षाएं हैं। सकारात्मक शर्तें इस प्रकार हैं- (1) निर्दोष आचरण, (2) सत्कार्य करना, (3) सत्य बोलना, (4) विधर्मी को तुच्छ समझना (5) प्रभु भक्तों का आदर करना और (6) किसी भी कीमत पर अपने वचन का पालन करना। याजक के जवाब में 5 नकारात्मक शर्तें इस प्रकार हैं :- (1) चुगली नहीं खाना, (2) अपने भाई को नहीं ठगना, (3) अपने पडोसी की निन्दा नहीं करना, (4) उधार दे कर ब्याज नहीं माँगना और (5) निर्दोष के विरुद्ध घूस नहीं लेना। इस प्रकार इस स्तोत्र में हम 6 सकारात्मक शर्तें और 5 नकारात्मक शर्तें पाते हैं। एक भक्त या उपासक जो मंदिर में प्रवेश करना चाहता है उससे ये 11 अपेक्षाएं की जाती हैं।
हम जानते हैं कि कोई भी उपासक मंदिर में ईश्वर से मुलाकात करने, उनके साथ संबंध जोडने, उनको धन्यवाद देने, उनकी स्तुति करने और उनसे आशिष पाने के लिए जाता है। इस मुलाकात के लिए उसे तैयारी करनी पडती है। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं संत योहन बपतिस्ता लोगों से आह्वान करते हैं कि वे येसु का स्वागत करने तथा उन्हें स्वीकार करने के लिए अपने आप को तैयार करें। संत योहन बपतिस्ता का प्रवचन सुन कर लोगों को यह महसूस हुआ कि वे सब पापी हैं। इस पर योहन उन्हें पश्चात्ताप करने के लिए प्रेरित करता है। पश्चात्ताप करने का मतलब है अपने पापों के लिए अफ़सोस जताना और पापों से दूर रहने का दृढ़संकल्प करना। वास्तव में स्तोत्र 15 और 24 में यही तो बताया गया है। आगमन काल ईश्वर से मुलाकात के लिए अपने आप को तैयार करने का समय है। स्तोत्र 15 में दिये गये 6 सकारात्मक (positive) और 5 नकारात्मक (negative) अपेक्षाएं इस आगमन काल में हमसे भी की जाती है।
इसी प्रकार स्तोत्र 24 में उपासक के सवाल है – “प्रभु के पर्वत पर कौन चढ़ेगा? उसके मन्दिर में कौन रह पायेगा?” (स्तोत्र 24:3) इस पर याजक का जवाब है – “वही, जिसके हाथ निर्दोष और हृदय निर्मल है, जिसका मन असार संसार में नहीं रमता जो शपथ खा कर धोखा नहीं देता।“ (स्तोत्र 24:4)
संत योहन बपतिस्ता की आवाज़ आज हमारे बीच में भी गूँज रही है। क्रिसमस की तैयारी में हमें भी पश्चात्ताप करना चाहिए क्योंकि प्रभु का पवित्र वचन कहता है, “कुटिल विचार मनुष्य को ईश्वर से दूर करते हैं। सर्वशक्तिमत्ता उन मूर्खों को पराजित करती है, जो उसकी परीक्षा लेते हैं। प्रज्ञा उस आत्मा में प्रवेश नहीं करती, जो बुराई की बातें सोचती है और उस शरीर में निवास नहीं करती, जो पाप के अधीन है; क्योंकि शिक्षा प्रदान करने वाला पवित्र आत्मा छल-कपट से घृणा करता है। वह मूर्खतापूर्ण विचारों को तुच्छ समझता और अन्याय से अलग रहता है। (प्रज्ञा 1:3-5)
आइए हम दृढ़संकल्प करें कि इस आगमन काल को हम अपने जीवन को बदल कर ईश्वर से मुलाकात करने का समय बनायें।