इसायाह 50:5-9अ; याकूब 2:14-18; मारकुस 8:27-35
जशपुर जिले के एक छोटे से गाँव में एक महिला बहुत दिनों से पीड़ा में पड़ी हुई थी। उसका दाहिना पैर सूज गया था। वह खाट पर पड़े रहने को मज़बूर थी। मैंने जब उससे मुलाकात की थी और दर्द से कराहते उसे देखा था तब अनायास ही मेरे मुख से निकला, ’’भगवान भी इस प्रकार का दुःख देता है।’’ परन्तु मैंने उसे कभी ईश्वर के विरूद्ध कुड़कुड़ाते नहीं देखा। इलाज के बहुत प्रयास के बाद भी उसके स्वास्थ्य में कोई परिवर्तन नहीं आया। इसी दौरान एक व्यक्ति का उसके घर आगमन होता है। वह कहता है कि उस पर भूत-प्रेत का साया है। उसे खुश करने के लिए तुम्हें विशेष प्रकार का पूजा-पाठ करना पड़ेगा। इतना सुनते ही उसके मुख से दृढ़ स्वर निकला। उसने कहा, ’’मुझे किसी देवी-देवता या भूत-प्रेत को खुश्व करने की ज़रूरत नहीं है। मुझे तो सिर्फ मेरे मसीह को खुश रखना है। प्रभु जिसने मेरे लिए बहुत दुःख सहे, मेरे पाप को अपने कंधों पर ढ़ोया और मुझे बचाने के लिए क्रूस पर अपने प्राण दे दिये। क्या मैं आज, अपने प्रभु के लिए इतना भी कष्ट नहीं झेल सकती?’’ यह सच है कि उसने प्रभु को अपने मसीह के रूप में पहचान लिया था। आज गाँवों, शहरों एवं विभिन्न जगहों पर कई व्यक्ति ऐसे मिल जायेंगे जो प्रभु को पहचान चुके हैं। वे आज अपने अटूट विश्वास द्वारा हमें प्रेरणा देते रहते हैं। इसी प्रकार का अटूट विष्वास आज के पहले पाठ में प्रकट होता है- ’’प्रभु मेरी सहायता करता है, इसलिए मैं अपमान में विचलित नही हुआ। मैं जानता हूँ कि अंत में मुझे निराश नही होना पड़ेगा।’’
आज के सुसमाचार में येसु अपने शिष्यों से पूछते हैं कि लोग उनके विषय में क्या कहते हैं? येसु जानना चाहते थे कि लोग अब तक उन्हें पहचान पाये हैं या नहीं! येसु में यह जानने के कौतूहल इस बात को लेकर थी कि कई चमत्कारिक कार्य लोगों के विश्वास की आँखों को खोल पाये हैं अथवा नहीं। चेलों के बताने के अनुसार हमें आभास होता है कि लोग येसु को नहीं पहचान पाये थे। शिष्य लोगों के विचार व्यक्त करते और प्रभु को बताते हैं, ’’योहन बपतिस्ता, कुछ लोग कहते हैं एलियस और कुछ लोग कहते हैं कि नबियों में से कोई’’(मारकुस 8:28)। निष्चय ही लोग येसु को मसीह तथा ईश्वर के पुत्र के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। तभी तो लोग कहते हैं, ’’क्या यह वही बढ़ई का पुत्र नहीं है- मरियम का बेटा, याकूब, यूसुफ, यूदस और सिमोन का भाई? क्या इसकी बहनें हमारे बीच नहीं रहती?’’ (मारकुस 6:1-3)
अब येसु अपने चेलों के विचार जानना चाहते थे- चेले जो उनके साथ रहते, काम करते, खाते और बातें करते थे। येसु के बहुत से चमत्कारों के वे गवाह थे। येसु पूछते हैं, ’’और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ? पेत्रुस उत्तर देता है- ’’आप मसीह हैं’’। येसु ख्रीस्त आज हम प्रत्येक से भी यही सवाल पूछते हैं-’’तुम मेरे विषय में क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ? क्या आज हमारा उत्तर पेत्रुस के जवाब के समान है? शायद नहीं। हम प्रत्येक का उत्तर अलग-अलग हो सकता है। कोई कहेगा कि येसु एक समाज सुधारक है क्योंकि येसु ने अपने यहूदी समाज की कुरीतियों को उखाड़ फेंकने के लिए कई कठोर कदम उठाये। मंदिर में व्यापारियों को खदेड़ दिया (मारकुस 11:15-19)। रोगियों का विश्राम के दिन चंगाई प्रदान की (लूकस 6:6-10)। पापिनी स्त्री को शास्त्रियों और फ़रीसियों के हाथों से बचाया एवं क्षमा प्रदान की। कुछ कहेंगे कि येसु एक चिकित्सक है या फिर एक चमत्कारिक व्यक्ति है।
यह सत्य है कि येसु एक समाज सुधारक, चंगाई प्रदान करने वाले प्रभु एवं चमत्कार दिखाने वाले ईश्वर हैं। परन्तु ये सब कार्य तो उन्होंने ईश्वर की महिमा को प्रकट करने के लिए किया था जिससे लोग ईश्वर की भक्ति को देखे और समझे तथा उसके भेजे पुत्र पर विश्वास करें कि वही मसीह है जिसे ईश्वर ने दुनियाँ में भेजने की प्रतिज्ञा की थी।
आज के प्रथम पाठ में नबी इसायाह इसी मसीह के बारे में हमें बताते हैं। वे कहते हैं कि मसीह जिसने हमें बचाने के लिए दुःख झेले ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा रखते हैं। वे कहते हैं, ’’प्रभु ईश्वर मेरी सहायता करता है तो मुझे दोषी ठहराने वाला कौन? क्या हमारा विश्वास भी इसी प्रकार का है? यह तो तभी संभव होगा जब हम मसीह को अपने पूरे मन-दिल से स्वीकार करेंगे और अपने अंग-अंग में बसने देंगे।
हम सब के लिए आज प्रभु को सच्चे दिल से अपना मसीह स्वीकार करने की एक चुनौती है। साथ ही साथ मसीह के वचनों को जन-जन तक फैलाने की। अपने आदर्श जीवन, प्रेम एवं धार्मिक गुणों से प्रभु को हर मानव दिल तक पहुँचाने की। परन्तु ये सब कार्य सहज नहीं है। इसके लिए कष्ट उठाने के लिए हमें तैयार रहना होगा। प्रभु ने ही कहा है-’’जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे हो ले’’ (मारकुस 8:34)
हम प्रार्थना करें कि प्रभु हमें अपनी आशिष, कृपा और प्रेम से भर दे कि हम उन्हें अपना मसीह कह सकें और अपना पूरा जीवन प्रभु के लिए समर्पित कर सकें।