उत्पत्तिा 3:9-15; 2 कुरिन्थियों 4:13-5:1; मारकुस 3:20-35
प्राचीन काल में सारा विश्व परगनों एवं प्रान्तों में विभाजित था और अलग-अलग प्रान्तों के अलग-अलग राजा और उसकी सेना होती थी। जब किसी दूसरे प्रान्त एवं राजा के विरुद्ध युद्ध छिड़ जाता था तो राजा के सिपाही ही लड़ाई पर जाते थे और बाकी जनता लड़ाई का परिणाम जानने के लिये उत्सुक रहती थी। आज भी करीब-करीब वही स्थिति है। जब किसी दूसरे देश के साथ युद्ध हो जाए तो मिलिट्री याने उस देश की सेना आगे लड़ाई के लिये जाती है। किन्तु आज के पहले पाठ में एक ऐसे युद्ध का विवरण मिलता है जिसमें दुनिया के सब लोग क्रियाशील रहते हैं। इस युद्ध में हर व्यक्ति अपने दिल में लड़ाई लड़ता है। यह आजीवन लड़ाई है। इस लड़ाई से कोई वंचित नहीं है। यह युद्ध भलाई और बुराई के बीच है। भलाई ईश्वर की ओर से आती है और बुराई शैतान की ओर से।
आज के पहले पाठ में हम देखते हैं कि किस प्रकार शैतान ने पहला युद्ध जीता। हमारे प्रथम मानव के बुराई में पतन का विवरण पढ़ने पर हम यह पूछना चाहेंगे कि ईश्वर हमें क्या संदेश देना चाहते हैं।
आदम और हेवा ने ईश्वर की आज्ञा को भंग किया। हालाँकि ईश्वर के पास ही उनकी खुशी की योजना थी। ईश्वर में रहकर ही वे खुशी पा सकते थे, किन्तु वे ईश्वर के रास्ते पर न चलकर अपने ही रास्ते पर चलने लगे। ऐसा करते ही वे तुरन्त महसूस करने लगे कि वे नंगे हैं। यह नंगापन उनके पास कपड़े नहीं होने को उतना अधिक नहीं दर्शाता है, किन्तु वास्तविकता में वे ईश्वर के रास्ते से मुकर जाने पर अपने आप में शक्तिहीन तथा कमज़ोर हो गये। उन्हें सच्ची खुशी विलुप्त हो जाने और जीवन बोझ बनने का अनुभव होने लगा। विवरण में हम देखते हैं कि ईश्वर अपनी संतान के इस गंभीर उलटफेर से दुःखी होकर एक पुलिस की भांति नहीं आते हैं, किन्तु वह प्रेम से परिपूर्ण पिता तुल्य आते हैं। वे चाहते हैं कि आदम और हेवा अपनी गलती को स्वीकार करें ताकि उनके पाप का हल निकाला जा सके।
ईश्वर को इस बात का पूरा-पूरा पता है कि शैतान उनका दुश्मन है, जिसके साथ किसी प्रकार के समझौते की संभावना नहीं है। शैतान ईश्वर के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता है और ईश्वर शैतान को नष्ट कर सकते हैं।
ईश्वर आदम से उसकी आज्ञा भंग के बारे में पूछते हैं। तब वह गलती का भार भगवान पर डालता है, कहता है ‘‘मेरे साथ रहने के लिये जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया’’। (उत्पत्ति 3:12) किन्तु जब ईश्वर ने स्त्री की सृष्टि की और उसे आदम को सौंपा तो आदम की आवाज़ और शब्द कितने मीठे एवं स्नेहपूर्ण थे। तब आदम ने कहा था ‘‘यह तो मेरी हड्डियों की हड्डी है और मेरे मांस का मांस।‘‘ (उत्पत्ति 2:23) किन्तु पाप में गिरने के बाद आदम और हेवा के बीच विभाजन उत्पन्न हो गया। तो दुनिया में पाप ही एक ऐसा तत्व है जो नज़दीक से नज़दीक रिश्ते को तोड़ता और बिगाड़ता है। फिर हेवा साँप पर दोष लगाती है जो कि ईश्वर द्वारा एक सृष्ट प्राणी है। किन्तु साँप अपने दुष्टतापूर्ण कार्य से बहुत खुश है, वह किसी पर भी दोष नहीं लगाता है। लोगों को ईश्वर से अलग करना उसका मुख्य काम है और अपनी इस सफलता पर वह प्रसन्न है।
मनुष्य को उसके पाप के कारण ईश्वर शाप नहीं देता है। मानव उसकी संतान है, उनकी आज्ञा भंग करने पर भी वे उन्हें प्यार करते हैं, किन्तु उनके पाप का प्रतिफल क्या होता है उससे अवगत कराने के लिये ईश्वर उनके ऊपर पाप का कहर बरपने देता है। ईश्वर स्त्री से कहता है, ‘‘मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढ़ाऊँगा और तुम पीड़ा में संतान को जन्म दोगी। तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुम पर शासन करेगा’’। उसने आदम से कहा, (उत्पत्ति 3:16) ‘‘चूँकि तुमने अपनी पत्नी की बात मानी और उस वृक्ष का फल खाया है जिसको खाने से मैंने तुमको मना किया था, भूमि तुम्हारे कारण शापित होगी। तुम जीवन भर कठोर परिश्रम करते हुए उससे अपनी जीविका चलाओगे (उत्पत्ति 3:17)। याने कि पाप जीवन में दुःख तकलीफ को लाता है।
इन सबके बावजूद ईश्वर ने मनुष्य को नहीं छोड़ा। उसने हमारे लिए शैतान से लड़ने, उस पर विजय हासिल करने के लिए मानव पुत्र येसु ख्रीस्त आदम एवं हेवा के उत्तराधिकारी को भेजा, जो सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं। वे पाप को छोड़कर हर तरह से मनुष्यों के समान रहें। उसका एक ही मकसद था मानव जाति को शैतान की गुलामी से छुड़ाना। सुसमाचार दिखाता है किस प्रकार येसु को शैतान के विरुद्ध युद्ध करता रहना पड़ा। शैतान ने येसु को उन लोगों से अलग करने की कोशिश की जिनका पाप येसु ने क्षमा कर दिया था। उसने लोगों को बीमारियों से चंगा किया एवं पुनः लोगों को ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव सिखाया।
ये सब शैतान को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और तब उसने येसु ख्रीस्त के जन्म के समय से उनके कार्यों पर रोड़ा बनना एवं उन्हें बचपन में ही मार डालना चाहा। राजा हेरोद के द्वारा नवजात बालक येसु का कत्ल करना चाहा, मरुभूमि में येसु को तीन प्रलोभन दिये, यहूदी धर्म के अगुआयों द्वारा येसु का घोर विरोध करना और अन्ततः यहूदी नेताओं के द्वारा येसु को क्रूस पर क्रूसित कराना चाहा।
शैतान येसु के ऊपर एक बार भी विजय पताका नहीं फहरा सका। वह पूरी तरह से हार गया। उसकी पूरी तरह से हार तब हुई, जब उसने सोचा कि अब मैंने येसु ख्रीस्त को क्रूस पर क्रूसित करके मार डाला है। किन्तु उसी क्षण येसु ख्रीस्त की शैतान पर पूरी-पूरी एवं अन्तिम विजय हुई। शैतान का सिर कलवारी पर कुचल दिया गया। येसु ख्रीस्त और शैतान के बीच की लड़ाई हम हर एक के हृदय में चलती ही रहती है। किन्तु अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा शैतान पर उन्होंने विजय पाई है। अब केवल वे ही शैतान के शिकार बनते हैं जो जानबूझ कर और स्वेच्छा से शैतान की ओर झुकते हैं। येसु ने बारहों को चुना और वे अपना सब कुछ छोड़कर येसु के पीछे हो लिये थे। जिन्होंने प्रभु को स्वीकार किया उन्हें येसु ने ईश्वर के पुत्र का दर्जा दिया। इसलिए केवल येसु के चेले ही नहीं किन्तु जो कोई भी विश्वास के साथ येसु के पास आता है वह सचमुच ईश्वर की सन्तान बन जाता है। अतः ईश्वर की सन्तान बनने का मतलब है सच्चे अर्थों में येसु के भाई एवं बहन बनना।
आज के सुसमाचार में हमने पढ़ा कि कोई प्रभु को सूचना देता है कि उसकी माता और रिश्तेदार उनसे मिलने के लिये बाहर इन्तज़ार कर रहे हैं। येसु उनके वचनों को सुनने वालों की ओर इंगित करते हुए कहते हैं कि ये हैं मेरी माँ, मेरे भाई। ऐसा कहने से येसु ने कभी अपनी माँ का तिरस्कार नहीं किया। ऐसा करने से ईश्वर की चैथी आज्ञा का उल्लंघन होगा और माता मरियम ने ईश्वर को हर क्षण हाँ कहा, उन्होंने ईश्वर की हर इच्छा पूरी की। उन्होंने अपने बेटे येसु ख्रीस्त के प्रति भी श्रद्धा एवं भक्ति रखी। गब्रिएल दूत के संदेश से लेकर क्रूस मरण तक उनके साथ रही। आइए, हम भी माता मरियम के समान अपने हृदय में शैतान का विरोध करें और येसु ख्रीस्त के साथ वचन का संबंध स्थापित करें।