प्रेरित चरित 10:25-26, 34-35, 44-48; 1 योहन 4:7-10; योहन 15:9-17
एक बार मेरे एक दोस्त ने जो आज फादर है मुझसे कहा कि उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती है। तो मैंने पूछा क्यों? इस बात का क्या सबूत है? तब उसने बहुत सारे अनुभव मेरे साथ बाँटे। उनमें से एक इस प्रकार है। उसके बचपन में उसकी माँ रोज काम के लिए सुबह जाती थी और शाम को वापस आती थी। कभी-कभी वह कुछ घरों में भी काम के लिए जाती थी। और जब कभी माँ किसी के घर में काम के लिए जाती थी तब मेरा दोस्त शाम होने पर माँ के वापस आने के इंतजार में बैठा रहता था। क्योंकि उस दिन उसकी माँ उनके लिए खाने की अच्छी चीज़ें लाती थी। तो सच में उस समय मेरा दोस्त माँ के लिए नहीं बल्कि खाने की चीज़ के लिए इंतजार करता था। लेकिन बाद में मेरे दोस्त को इस बात का अहसास हुआ कि उसकी माँ उसे कितना प्यार करती थी। क्योंकि बेटे के प्रति प्यार के कारण उनकी माँ भूखा रहकर खाने के लिए जो भी मिलता था सबकुछ लपेटकर घर लाती थी और उनको खिलाती थी।
यहाँ मैं मेरा एक और अनुभव बताना चाहता हूँ। एक दिन मेरा एक फादर मित्र जो मेरे साथ रहता था अपना जन्मदिन मना रहा था। उस दिन सिस्टर लोगों ने जन्मदिन का कैक बनाया था। इस प्रकार सुबह हमने जन्मदिन का कैक काटा था। उसी दिन शाम को मुझे धर्मप्रान्त की पत्रिका के काम के लिए प्रेस जाना था और जैसे ही मैं जा रहा था तो मैंने सोचा कि प्रेस में जो तीन लोग काम करते हैं वे फादर को जानते हैं तो क्यों नहीं मैं यह कैक उनके लिए भी ले जाऊँ। यह सोचकर मैं कैक उन तीन जनों के लिए भी ले गया और बाँटा। उन तीनों ने कैक खाना शुरू किया। लेकिन उनमें से एक ने जो स्त्री थी यह कैक चखने के बाद खाना बंद कर दिया। मैंने उनसे पूछा, ’’क्यों कैक खाना बंद कर दिया’’? तब उस स्त्री ने कहा, ’’यह कैक बहुत स्वादिष्ट है इसलिए मैं यह मेरे बेटे के लिए घर ले जाऊँगी क्योंकि उसको यह बहुत पसंद है’’।
हमने दो माँ के बारे में सुना जो अपने बच्चों को बहुत प्यार करती है। दोनों माताओं के इन कार्यों की मैं विवेचना करना चाहता हूँ। यहाँ खाने की जो चीजें दी गयी थी वे दोनों माताओं का पसंद थी और वे उसे खाना चाहती थी। लेकिन जैसे ही उनको उनके बच्चों की याद आयी तो वे उसे अपने बच्चों के लिए रखती है। वे अपनी इच्छा का दमन करते हुये बच्चों की खुशी चाहती है। अपने बच्चों की खुशी के लिए वे भूखे-प्यासे भी रह जाती है।
प्रभु येसु आज हमसे आग्रह करते हैं कि ’’जिस प्रकार मैंने तुम लोगों को प्यार किया है उसी प्रकार तुम भी एक-दूसरे को प्यार करो’’। अब सवाल उठता है कि प्रभु ने हमें किस प्रकार प्यार किया?
संत पौलुस कहते हैं, ’’वे ईश्वर थे और उनको पूरा अधिकार था कि वे ईश्वर की बराबरी करें फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बनकर अपने को दीन-हीन बना लिया (फिलिप्पियों 2:6-8) ये सब प्रभु ने किसके लिए किया? हमारे लिए। आज के सुसमाचार में प्रभु कहते हैं, ’’इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे’’। इस जीवन में जीवन से बढ़कर कुछ नहीं है इसलिए प्रभु ने ऐसा कहा। प्रभु ने यह केवल मुहँ से ही नहीं कहा बल्कि अपने जीवन को हम सबके लिए या हमारी मुक्ति के लिए क्रूस पर अर्पित करके प्रकट किया कि उनका प्रेम असीम है।
हम ख्रीस्तीयों के विश्वास के अनुसार ईश्वर एक है। लेकिन उसमें तीन व्यक्ति हैं और यहाँ तीन व्यक्ति होने के बावजूद भी वे एक तत्व बन जाते हैं यानि एक ईश्वर बन जाते हैं। इसका मूल कारण हैं कि वे आपस में निस्वार्थ रूप से प्यार करते हैं। वे तीनों एक-दूसरे के लिए पूर्ण रूप से अपना सबकुछ देने के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए पिता पुत्र में, पुत्र आत्मा में और आत्मा पिता में है। ये तीन होने के बावजूद भी अलग नहीं रह सकते हैं। हाँ यही ईश्वर दुनिया के प्रारंभ से ही हमें इसी प्रकार प्यार करते आ रहे हैं। और इसी प्यार की गहराई को हम प्रभु येसु के क्रूस-मरण में पाते हैं। वहीं प्रभु आज मुझसे और आप से यह आह्वान करते हैं कि हम इस प्रेम का अनुसरण करें या इस प्रकार आपस में प्यार करें।
जिस प्रकार दोनों माताएं अपने बच्चों को प्यार करती है तथा उनके लिए त्याग करते हुए उनकी इच्छा पूरी करती है। यह सब ईश्वर के प्रेम की झलक है। यह सच्चा प्यार है और इस तरह प्रभु हमें एक-दूसरे से प्यार करने को बाध्य करते हैं। क्योंकि ऐसे प्यार में ही हम खुषी पाते हैं तथा ऐसा प्यार ही हमें स्वर्ग की ओर ले जा सकता है। क्या हम तैयार है? आइए हम उसी प्रभु से कहें कि प्रभु हम एक-दूसरे को आप जैसा प्यार करना चाहते हैं लेकिन हमारी कमियाँ तथा स्वार्थ इसमें एक बाधा है। संत पौलुस के समान हम भी अपनी कमज़ोरियों एवं स्वार्थता को आपके सम्मुख रखते हैं, ग्रहण कीजिए प्रभु और आपके प्यार करने के लिए हमें सशक्त बनाइयें।