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30. पास्का का दूसरा इतवार

प्रेरित-चरित 4:32-35; 1 योहन 5:1-6; योहन 20:19-31

(फादर फ्रांसिस स्करिया)


अगर आप एक जगह पर दो सौ लोगों को इकट्ठा और उन के सामने एक व्यक्ति को, जिससे वे सभी दो सौ लोग डरते हैं, देखेंगे तो आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे? यह कि उस एक व्यक्ति में इतनी ताकत है कि वह सामने खड़े दो सौ लोगों का मुकाबला करके उन सबको चोट पहुँचा सकता है। लेकिन मान लीजिए वह आदमी शक्तिशाली होने के बावजूद भी अपने हाथ बांधकर खड़ा रहता है और सभी दो सौ लोगों को अपने ऊपर आक्रमण करके चोट पहुँचाने देता है, और इस आक्रमण का शिकार होकर वह गिर पड़ता है, मर भी जाता है। फिर अपनी ही शक्ति से पुनः मृतकों में से जी उठता है और जिन लोगों ने उसे चोट पहुँचायी और मार डाला उन्हीं को मुक्ति दिलाता है तो जो घावों के निशान उसके शरीर पर होंगे वे उन्हें शर्मिन्दा बनायेंगे और उन घावों को लोग उस व्यक्ति के विशाल हृदय के चिह्न मानेंगे। प्रभु येसु के साथ ऐसा ही हुआ था। वे खुद ईश्वर थे फिर भी वे अपने को दीनहीन बनाते हैं। अपने ही द्वारा सृष्ट किये गये मनुष्यों के हाथों दुःख सहते हैं, क्रूस पर मर जाते हैं। पुनः वे अपनी शक्ति से जी उठते हैं और जिन्होंने उन पर अत्याचार किया उनको सज़ा देने या दिलाने के बजाय उन्हें मुक्ति और अनन्त जीवन दिलाते हैं। जो मुक्ति पाते है उनके लिए प्रभु के घाव ईश्वरीय प्रेम के प्रतीक बन जाते हैं।

आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि जब प्रभु प्रेरितों को दर्षन देते हैं तो बारहों में से एक, थोमस उनके साथ नहीं था। दूसरे शिष्यों ने उस से कहा, ’’हमने प्रभु को देखा है’’। लेकिन थोमस कहते हैं, ’’जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निशान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी बगल में अपना हाथ न डाल दूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा’’। थोमस ने ठीक ही कहा था। ’’कीलों की जगह पर अपनी उँगली डाल दूँ’’। थोमस को ज्ञात था कि प्रभु येसु ख्रीस्त क्रूस पर वास्तव में कीलों से नहीं बल्कि मेरे और आप की उँगलियों से ठोके गये थे। इसलिए पुनर्जीवित प्रभु के घाव मेरे और आप के पापों की ओर इशारा करते हैं और साथ ही साथ वे मेरी और आपकी मुक्ति के संकेत भी है। अगर मैं उन घावों की ओर देखूँ तो विश्वासी ज़रूर बनूँगा क्योंकि वे ही मेरे विश्वास का स्रोत है। उन घावों में मेरी जिन्दगी की कहानी लिखी गई है। वे घाव मुझे विश्वासी होने के लिए विवश करेंगे। इसलिए संत थोमस ने ठीक ही कहा था, ’’जब तक. . . तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा’’। मेरी और आपकी आज यह चुनौती है कि हम पुनर्जीवित प्रभु के घावों की ओर देखें और अपने से प्रष्न करें, ’’क्या, ये मेरी उँगलियों के निशान तो नहीं है? सारी मानव जाति की उँगलियों के निशान प्रभु के शरीर में दिखते हैं। मेरा और आपका यह कत्र्तव्य है कि हम खुद अपनी उँगलियों के निशान इन घावों में पाये, इस दुनिया के सभी लोगों को अपनी-अपनी उँगलियों के निशान प्रभु के घावों में पहचानने में मदद करें।

थोमस ने ठीक ही कहा था। प्रभु सारी मानवजाति के पापों की उँगलियों को अपने शरीर में घुसने देते हैं। जो कोई प्रभु येसु के पास अपने पापों को समर्पित करता है, प्रभु उससे पापों का बोझ ले लेते हैं और उसे एक नई जिन्दगी प्रदान करते हैं।

थोमस के सामने प्रभु ने लाज़रूस को जिलाया था, ज़ैरुस की बेटी को भी पुनः जीवनदान दिया था। इन घटनाओं को थोमस ने अपनी शारीरिक आँखों से देखा था। लेकिन वे अपनी आंतरिक और आध्यात्मिक आँखों से देखना चाहते थे।

उनका शक एक ढूँढ़ने वाले विश्वासी का था। उनक शक तर्कसंगत तथा युक्तिपूर्ण था। जो शक ईश्वर के सामने लाया जाता है वह विश्वास में परिणत होता है और जो ईश्वर के पास नहीं लाया जाता वह अस्वीकृती और अंनगीकार में बदल जाता है। आइए हम संसार में पनपते अत्याचार, हिंसा और अन्य कुकर्मों से उत्पन्न शंकाओं को प्रभु के पास लाये ताकि प्रभु उसे विश्वास में परिणत कर सके। तब हम अविश्वासी नहीं बल्कि विश्वासी बन सकेंगे।

संदेह विश्वास का ही चिह्न है। स्पेन के जाने माने दार्शनिक मिगुएल दे उनामुनों (Miguel de Unamuno) का कहना है, ’’जिस विश्वास में कुछ संदेह नहीं है, वह घटिया विश्वास है।’’ आज प्रभु हमारे समाज की गलियों तथा चैराहों पर खड़े होकर हमें अपने घाव दिखा रहे हैं। क्या मैं और आप इतने पक्के विश्वासी हैं कि संत थोमस के समान बोल पाये, ’’मेरे प्रभु, मेरे ईश्वर!’’

तो आइए हम अपने विश्वास को मज़बूत करें और विश्वासी बनकर अपने जीवनसंघर्ष को आगे बढ़ाये।


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