उत्पत्ति 1:1-2:2; उत्पत्ति 22:1-18; निर्गमन 14:15-15-1; इसायाह 54:5-14; इसायाह 55:1-11; बारूक 3:9-15,32:4-4; एजे़किएल 36:16-28; रोमियों 6:3-11;मारकुस 16:1-18
आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है, क्यों न हम उल्लास के गीत गायें? आज मुक्तिदाता येसु ख्रीस्त कब्र में से जी उठे हैं। मृत्युंजय येसु हमारे बीच पुनः आ गये हैं। पुनर्जीवित येसु की ज्योति हमारे बीच आ गई है।
येसु के विरोधी उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर निश्चिंत हो गये थे। उन्होंने सोचा इसके साथ ही येसु का अध्याय समाप्त हो जायेगा। पर उनकी आशाओं पर पानी फिर गया। वे उस महान ज्योति को मिटा नहीं सके। उसे कब्र में दफन न कर सके। येसु प्रताप के साथ उनकी आशाओं के विपरीत जी उठे।
येसु ने अपने जीवनकाल में ही अपने दुःखभोग, मृत्यु एवं पुनरूत्थान की घोषणा की थी। उन्होंने अपनी शिक्षा, चमत्कार एवं जीवन से यह बताने की कोशिष की कि वे स्वर्ग से पिता ईश्वर के पास से आये हैं। वे ईश्वर के पुत्र हैं और संसार के उद्धार के लिए आये हैं। पर किसी ने भी उन पर विश्वास नहीं किया यहाँ तक कि उनके चेलों ने भी - जिन्हें उन्होंने चुना था जो उनके नज़दीक थे जिन्होंने उनकी शिक्षा सुनी उन्हें उनके कार्यों को निकट से देखा उनके साथ उठे-बैठे - उन पर विश्वास नहीं किया। पर पुनरूत्थान की इस घटना ने सब-कुछ बदल दिया। पुनरूत्थान की इस घटना ने सबों को विश्वास दिला दिया कि येसु ईषपुत्र थे और वे ही प्रतिज्ञात मसीह भी। मानव इतिहास में येसु ही ऐसे व्यक्ति थे जो स्वयं मृत्यु में से जी उठे। ईश्वर ने उन्हें कब्र में नष्ट नहीं होने दिया पर पुनर्जीवित कर दिया। वह महती ज्योति पूरे प्रताप के साथ पुनः प्रकट हो गयी। ख्रीस्त की ज्योति हमारे बीच आ गयी।
आज की धर्म-विधि में नई आग यही दर्शाती है। नई आग की आशिष ख्रीस्त के पुनरूत्थान का प्रतीक है। और पास्का मोमबती पुनरूत्थान के प्रकाश और प्रताप से चमकते पुनर्जीवित येसु का प्रतीक है।
ज्योति की महत्ता से हम सब भली-भांति परिचित है। ज्योति अंधकार को दूर भगाती है। उसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता। वह एक नये जीवन का संचार करती है। वह भटकते हुओं को राह दिखाती हैं। तूफान में फंसे हुए मांझी का, समुद्र में रात के अंधकार में भटकते जहाज का मार्गदर्शन प्रकाश-गृह की ज्योति ही करती है। उसी के सहारे वे अपने आप को सुरक्षित कर पाते हैं।
प्रभु अपनी तुलना ज्योति से करते हैं। वे कहते है, ’’संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा।’’ आगे वे कहते हैं, ’’कोई भी ज्योति जलाकर मेज़ के नीचे नहीं रखता पर ऊँची जगह पर रखता है ताकि वह दूसरों का मार्गदर्शन कर सके’’। जो ज्योति में चलता है वह कभी ठोकर नहीं खा सकता क्योंकि वह सबकुछ साफ-साफ देखता है।
पाप से हमारा हृदय और मन कुंठित हो गया था। हमारे अंतःकरण पर अंधकार की परत छा गयी थी। हम ईश्वर से काफी दूर चले गये थे। हम इस माया रूपी संसार के समुद्र में अंधकार में भटक रहे थे। पुनर्जीवित येसु ने अपनी पूरी ज्योति से हमें एक नयी आशा दी है। वे हमारे हृदय पट पर छाये अंधकार के बादलों को छांटने के लिए तत्पर हैं। उन्होंने हमें ऐसी कृपा दी है कि हम अपनी मानसिकता को उज्ज्वल कर सकें और ईश्वर को ठीक-ठीक देख सकें। पर प्रष्न यह उठता है कि क्या हम अपने मन का द्वार ख्रीस्त की ज्योति के लिये खोलने को तैयार हैं?
जब तक हम ख्रीस्त की ज्योति को नहीं पहचानेंगे और उसे अपने जीवन में जगह नहीं देंगे तब तक हममें नवीनता नहीं आयेगी।
ज्योति का अनुसरण करने का मतलब है अंधकार का तिरस्कार। ज्योति के सामने स्वार्थ, अहम आदि का कोई स्थान नहीं। परोपकार और सच्चाई ही इसके नियम हैं। क्या हम इसके लिये तैयार हैं? प्रभु का पुनरूत्थान हममें विश्वास की नींव डालता है। अब हम अनन्त जीवन के प्रति अश्वस्त हैं। अब हम दिशाहीन नहीं हैं। अब हम जानते हैं कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं, पर अनन्त जीवन की शुरूआत है। हम हमारे अगुआ के सदृश्य अंतिम दिन जी उठेंगे।
प्रभु का पुनरूत्थान न केवल हमें हमारे पुनरूत्थान के प्रति आश्वस्त करता है पर विश्वास करने वालों को इस जीवन में भी नवजीवन की आशा दिलाता है। ख्रीस्त ने अपने पुनरूत्थान से हमारे लिए स्वर्ग का द्वार खोल दिया। उन्होंने अपने बलिदान से हमारे लिए नवजीवन अर्जित किया है। उन्होंने हमारे उद्धार के सभी साधन जुटा लिये है और इसे ग्रहण करने के लिए हमारा आह्वान करते हैं। ईश्वर ने हमें स्वतंत्र बनाया है और हमारी मर्जी के बिना वे हमारा उद्धार नहीं कर सकते। इसके लिये हमारे सहयोग की ज़रूरत है। जिस प्रकार एक अश्व को पानी तक तो ले जाया जा सकता है पर उसे जबरदस्ती पानी पिलाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार ईश्वर हमारी सहमती के बिना कुछ नहीं करते।
आज हम बपतिस्मा की प्रतिज्ञाओं को भी दोहराते हैं। बपतिस्मा में हम येसु के मृत्यु और पुनरूत्थान के सहयोगी बन जाते हैं। पाप को दफन कर हम येसु के साथ जी उठते हैं। हम एक नये जीवन में प्रवेश करते हैं। मूसा ने इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से मुक्त किया था। मगर येसु ने अपनी मृत्यु एवं पुनरूत्थान से हमें पापों की गुलामी से मुक्त किया और हममें नवजीवन का संचार किया है।
आज जब हम बपतिस्मा की प्रतिज्ञायें दोहरायेंगे, तब विचार करें कि क्या हमने ख्रीस्तीय जीवन ठीक प्रकार से जीया है? क्या हमने ख्रीस्त की ज्योति को हमारे जीवन में स्थान दिया है? क्या ईश्वर पर हमारा विश्वास अटूट है? क्या हमने अंधकार और उसके कामों को हमसे दूर रखने की कोशिष की? अगर हम कहीं पर असफल रहे हैं तो पुनर्जीवित येसु के सामने अपने आप को रखें और उनसे कृपा मांगें जिससे हम हमारी कमज़ोरियों से उभर सकें और उनके पुनरूत्थान की कृपा के योग्य बन सकें।