इसायाह 52:13-53:12; इब्रानियों 4:14-16:7-9; योहन 18:1-19,42
एक फौजी अपने माँ-बाप को फोन पर बताता है कि वह छुट्टी पर घर आ रहा है। माँ-बाप खुश हो जाते हैं। वह यह भी कहता है कि उसने साथ उसका एक दोस्त भी आ रहा है। यह सुनकर माँ-बाप और भी खुश हो गये। लेकिन बेटे ने आगे कहा कि एक बम धमाके में उसके दोस्त का एक पैर और हाथ नष्ट हो गया है। तब उसके माता-पिता ने निराशाजनक लहज़े में कहा, अगर ऐसा है तो हमारे लिए उसकी देखभाल करना मुशकिल होगा। इसलिये उन्होंने उस दोस्त को अपने साथ लाने से मना कर दिया। वह अपने दोस्त को नहीं छोड़ सकता था इसलिए उसने कहा कि वह अपने दोस्त की देखभाल स्वयं करेगा। लेकिन माता-पिता ने उसकी बात नहीं मानी और फोन रख दिया। एक सप्ताह के बाद उसके माता-पिता को पुलिस ने फोन करके थाने में बुलाया। जब वे मुरदाघर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि उनके बेटे का एक हाथ और पैर नहीं था। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक उसने आत्महत्या कर ली थी। अपनी नयी विकलांग दशा के बारे में अपने ही माता-पिता के मनोभावों को जानने के लिए ही उसने अपने काल्पनिक दोस्त की विकलांगकता का जि़क्र किया था।
इस दुनिया में कई लोग दूसरों को प्यार करने का दावा करते हैं। कोई दूसरों के पैसे या संपत्ति के लालच तो कोई अपने स्वार्थ के लिए इस प्रकार का दावा करते हैं। इस दुनिया में माँ की ममता सच्चे और गहरे प्यार का नमूना मानी जाती है। फिर भी समाचार पत्रों में या टेलीविज़न में हम कभी-कभी कुछ चैकानें वाले घटनाक्रम के बारे में पढ़ते या सुनते हैं जहाँ एक माँ ही अपने बच्चे की हत्या करती है, बच्चे को बेच देती है या उसे कूड़ेदान में फेंक देती है। पुराने विधान में हम पढ़ते हैं कि प्रभु अपने प्रेम को माँ की ममता से भी ज्यादा श्रेष्ठ बताते हैं। ’’क्या स्त्री अपना दुधमुँहा बच्चा भूला सकती है? क्या वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भूला भी दे, तो भी मैं तुम्हें नहीं भुलाऊँगा।’’ (इसायाह 49:15) किसी के प्यार का प्रमाण निष्ठा तथा बलिदान की भावना ही दे सकती है। हम जिससे प्यार करते हैं उसके लिए हम समय निकालते हैं, अपना पैसा खर्च करते हैं और तकलीफ उठाते हैं। हम उसकी हर संभव मदद करते हैं और उसकी भलाई की कामना करते हैं। जब हमें कुछ मुसीबतों का सामना भी करना पड़ता है तो प्यार के खातिर हम उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। सच्चे प्यार की परख निस्वार्थ भावना में होती है इसी कारण नये विधान में प्रभु हमें बताते हैं, ’’इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे।’’ (योहन 15:13) प्रभु की यह शिक्षा शब्द मात्र तक सीमित न रहकर प्रभु के जीवन और मरण में हमें देखने को मिलती है। प्रभु येसु ने अपने जीवन के द्वारा हर मनुष्य के प्रति अपना प्रेम दिखाया। प्रेम से प्रेरित होकर ही प्रभु ने कोढ़ी को चंगा किया, मुरदों को जिलाया और भूखों को खिलाया। कोढ़ी को जिसे लोग अछूत मानते थे प्रभु ने प्यार से स्पर्श कर शुद्ध किया। प्रभु ने मृत बालिका को प्यार से प्रेरित होकर, हाथ पकड़कर जीवनदान दिया। भूखें लोगों को देखकर प्रभु को तरस आया और प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने उनको खिलाया। प्रेम के कारण ही प्रभु ने पापियों का आतिथ्य स्वीकार किया तथा नाकेदारों के साथ दोस्ती का हाथ बटाया। उन्होंने अपने शिष्यों को मित्र कहकर संबोधित किया। अंत में पापी मानवजाति के प्रति प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने अपने प्राण की आहुति दी।
मित्रों के लिए तकलीफ उठाना स्वाभाविक माना जा सकता है। लेकिन प्रेम की महानता तब हमारे सामने आती है जब उसकी कोई सीमा नहीं होती। वही प्रेम महान है जो मित्रों और शत्रुओं को बराबरी से देखता है। इसी कारण संत पौलुस रोमियों को लिखते हुए कहते हैं, ’’हम निस्सहाय ही थे जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये। धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये, किन्तु हम पापी ही थे जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इससे ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।’’ (रोमियों 5:6-8)
आज पिता परमेष्वर मुझे और आपको अपने प्यार का प्रमाण देते हैं। आज की धर्मविधि में इसी कारण क्रूस की उपासना की जाती है। इस विधि में क्रूस के काँटों को कलीसिया हमारे सामने प्रस्तुत करती है और हमें याद दिलाती है कि यह मसीह के प्रेम का प्रमाण है। कलीसिया में विभिन्न प्रथाओं के अनुसार प्रभु येसु के घावों पर कई लोग मन्न् चिंतन करते हैं। इससे संबधित उपासना विधि भी कई जगह प्रचलित है। इस दुनिया में जब प्यार असली को नकली प्यार से अलग करना मुशकिल है तब कई दफ़ा निस्वार्थ एक मरीचिका बनकर रह जाता है।
शायद आज की पूजन विधि की यही चुनौती है कि हम प्रभु येसु से और उनके क्रूस से सच्चे प्यार का सबक सीखें क्योंकि प्रभु स्वयं कहते हैं, ’’यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो।’’ (योहन 13:35) आज मरण का त्योहार है और क्रूस रास्ते पर चलना ही ख्रीस्त विश्वासियों की बुलाहट है। क्रूस पर से भी शायद प्रभु आपसे और मुझ से कह रहे हैं, ’’मेरे पीछे हो लें’’।