निर्गमन 12:1-8,11-14; 1 कुरिन्थियों 11:23-26; योहन 13:1-15
एक खतरनाक विपत्ति जो मानव समुदायों के ऊपर आज मँडरा रही है, वह मिलावट की विपत्ति है। आज शुध्द भोजन प्राप्त करना असंभव-सा बन गया है। शुध्द भोजन से हम तन्दुरस्त बनते हैं, तो मिलावटी भोजन से बीमार हो जाते हैं। इस दुनिया में रहते समय अगर हम सब से उत्तम भोजन की खोज करते हैं, तो हमारी खोज यूखारिस्तीय मेज़ तक जायेगी जहाँ ईश्वर हमारे लिए भोजन नहीं बनाते हैं, बल्कि भोजन बनते हैं। यह न केवल मिलावट रहित भोजन है बल्कि सब से संभोषक भोजन भी है। स्तोत्रकार कहते हैं, “सिंह के बच्चे, शिकार के लिए दहाड़ते हुए, ईश्वर से अपना आहार माँगते हैं। ... सब तुझ से यह आशा करते हैं कि तू समय पर उन्हें भोजन प्रदान करे। तू उन्हें देता है और वे एकत्र करते हैं। तू अपना हाथ खोलता है और वे तृप्त हो जाते हैं।” (स्तोत्र 104:21,27-28) वे पुन: कहते हैं, “सब तेरी ओर देखते और तुझ से यह आशा करते हैं कि तू समय पर उन्हें भोजन प्रदान करेगा। तू खुले हाथों देता और हर प्राणी को तृप्त करता है।” (स्तोत्र 145:15-16)
रोटियाँ पाने की इच्छा से अपने पीछे आने वाले लोगों से येसु कहते हैं, “नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो अनन्त जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव पुत्र तुन्हें देगा ; क्योंकि पिता परमेश्वर ने मानव पुत्र को यह अधिकार दिया है" (योहन 6:27) येसु की बातें सुन कर लोग स्वर्ग से उतरी हुयी रोटी पाना चाहते थे और इसलिए वे येसु से कहते हैं, “प्रभु! आप हमें सदा वही रोटी दिया करें"। इस पर येसु ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी” (योहन 6:33-35)।
येसु स्वयं भोजन बनते हैं। भोजन बनना आसान नहीं होता। मिस्सा बलिदान में येसु अपने आप को रोटी और दाखरस के रूप में प्रदान करते हैं। रोटी बनने के लिए गेहूँ के दानों को पीसा जाना पडता है। इसी प्रकार दाखरस बनने के लिए अंगूर के फलों को निचोडा जाना पडता है।” यूखारिस्तीय संस्कार की स्थापना का येसु के दुख-भोग से गहरा संबंध है। यह प्रकृति का नियम भी है कि भोजन बनते-बनते कोई भी पौधा या प्राणी अपना जीवन खो देता है। संसार का सृष्टिकर्ता और प्रभु जिसका सिंहासन आकाश और जिसका पावदान पृथ्वी है, हमारे लिए एक छोटी बनता है। इस प्रकार देखा जाय तो यूखारिस्त विनम्रता का भी प्रतीक है।
पवित्र वचन हमें इस संदर्भ में ईश्वर और शैतान का फरक समझाते हैं। येसु स्वयं हमारे लिए भोजन बनते हैं जबकि वह हमें अपना भोजन बना देता है, अपना शिकार बना देता है। इसलिए संत पेत्रुस कहते हैं, “शत्रु, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये” (1 पेत्रुस 5;8)।
पुराने विधान के ईश्वर अपने आप को प्रकट करते हैं। नये विधान में प्रभु येसु न केवल हमारे लिए अपने आप को प्रकट करते हैं, बल्कि अपने आप को हमारे लिए अर्पित करते हैं। वे स्वयं हमारे लिए भोजन बनते हैं।
येसु न केवल हमारे लिए भोजन बनते हैं, बल्कि हमें भी भोजन बनने के लिए बुलाते हैं। वे कहते हैं, “तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फीका पड़ जाये, तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाता है” (मत्ती 5:13)।
आज के दिन प्रभु येसु हमें तीन आज्ञाएं प्रदान करते हैं। पहली, एक दूसरे को प्यार करो। दूसरी, एक दूसरे की सेवा करो। तीसरी, एक दूसरे को क्षमा करो। हम भी अकसर इस प्रकार के सलाह दूसरों को देते रहते हैं। परन्तु हमारे तथा प्रभु तरीके में एक ही फ़रक है। प्रभु उन में से हरेक आज्ञा के साथ जोड देते हैं – “जैसे मैंने तुम्हारे साथ किया है”। जब तक हम इस दूसरे भाग को सार्थक रूप से बोल नहीं पाते, तब तक हम ख्रीस्तीय होने का दावा नहीं कर सकते हैं।
योहन 15:12-13 में प्रभु कहते हैं, “मेरी आज्ञा यह है जिस प्रकार मैंने तुम लोगो को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। इस से बडा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण अर्पित कर दे।” वे हमारे लिए अपने जीवन को अर्पित करते हुए वे हम से एक दूसरे को प्यार करने को कहते हैं।
वे पकडवाने वाले को, अस्वीकार करने वाले को, कोडों से मारने वाले को, अपने हाथों पर कीले ढोकने वाले को, हँसी उडाने वाले को क्षमा करते हुए हमसे कहते हैं, कि हम भी एक दूसरे को क्षमा करें।
वे स्वयं दीन-हीन सेवक बनते हैं और दूसरों की सेवा करते हैं। फिर हमसे कहते हैं, “तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ। इसलिये यदि मैं- तुम्हारे प्रभु और गुरु- ने तुम्हारे पैर धोये है तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिये। मैंने तुम्हें उदाहरण दिया है, जिससे जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया वैसा ही तुम भी किया करो। (योहन 13:13-15)
प्रभु येसु अपना क्रूस लेकर आगे-आगे चलते हैं और हम से कहते हैं, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले” (लूकस 9:23)।
आइए हम भी प्रभु येसु के उदाहरण के अनुसार आत्मत्याग करना सीखें और इस त्योहार को सार्थक रूप से मनायें।