यिरमियाह 31:31-34; इब्रानियों 5:7-9; योहन 12:20-33
फिलिप्पियों 2:6-11 में हम पढ़ते हैं, कि मसीह “वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया। इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान् बनाया और उन को वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है, जिससे ईसा का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें और पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि ईसा मसीह प्रभु हैं।”
ईश्वर होने पर भी मसीह ने अपने को दीन-हीन बना लिया तथा क्रूसमरण तक, जो कि सब से क्रूर मृत्यु है, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन-हीन बना लिया। इस पर पिता ईश्वर ने उन्हें महान बना कर सबसे श्रेष्ठ नाम प्रदान किया। सब कुछ का मालिक होने पर भी उन्होंने सब कुछ त्याग दिया। यह एक रहस्यमय सत्य है। अपने प्रवचनों में प्रभु येसु ने बार-बार यही अपने शिष्यों को सिखाया। मत्ती 16:25 में प्रभु कहते हैं, “जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा”।
साधारणत: हम अपने जीवन में अप्रिय घटनाओं, अरुचिकर विचारों तथा निराशाजनक बातों को दूर रखना चाहते हैं। हम तभी कठिनाईयों का स्वागत करते हैं जब हमें लगता है कि इन कठिनाईयों से गुजरने पर हमें एक उज्ज्वल भविष्य मिलेगा। इस उपद्रवग्रस्त क्षेत्र या गड़बड़ी वाले इलाके के उस पार कोई विशेष उपहार हमें प्राप्त होने वाला है। प्रभु येसु के बारे में कहा गया है – “उन्होंने भविष्य में प्राप्त होने वाले आनन्द के लिए क्रूस पर कष्ट स्वीकार किया और उसके कलंक की कोई परवाह नहीं की। अब वह ईश्वर के सिंहासन के दाहिने विराजमान हैं।” (इब्रानियों 12:2) मक्काबियों के दूसरे ग्रन्थ के अध्याय 2 में हम देखते हैं सात भाइयों की माँ अपने सात पुत्रों को अपनी आँखों के सामने मरते देखकर भी विचलित नहीं हुई, बल्कि अपने पुत्रों के हृदयों में पुनर्जीवन की आशा जगा कर वर्तमान विपत्ति का सामना करने के लिए उन्हें तैयार किया।
येसु दो उदाहरणों का उपयोग कर इस रहस्यमय सिध्दान्त की वकालत करते हैं। पहला उदाहरण गेहूँ के दाने का है। वे कहते हैं, “जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परंतु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है। जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और जो इस संसार में अपने जीवन से बैर करता है, वह उसे अनंत जीवन के लिये सुरक्षित रखता है।” (योहन 12:24-25) किसान गेहूँ के दाने को यह सोच कर ही मिट्टी में फेंकता है कि हालाँकि वह दाना मर जायेगा, उस से एक पौधा उत्पन्न होगा और उस पर बहुत से दाने लगेंगे। दाखलता की डाली को छाँटने वाला माली इस पर विश्वास करता है कि हालाँकि वर्तमान में वह दाखलता एक डाली से वंचित रह जायेगा, निकट भविष्य में ही उस डाली की जगह पर अनेक डालियाँ अंकुरित होने लगेंगी। मछली फंसाने की बंसी में एक छोटी मछली को फंसाकर मछुआ उसे समुद्र में फेंकता है क्योंकि उसे मालूम है कि हालाँकि वह उस छोटी मछली से वंचित रह जायेगा, परन्तु निकट भविष्य में उसे एक बडी मछली अवश्य मिलेगी।
हमारी मृत्यु के बारे में भी यह सच है। संत पेत्रुस कहते हैं, “धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता! मृतकों में से ईसा मसीह के पुनरुत्थान द्वारा उसने अपनी महती दया से हमें जीवन्त आशा से परिपूर्ण नवजीवन प्रदान किया। आप लोगों के लिए जो विरासत स्वर्ग में रखी हुई है, वह अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है।“ (1 पेत्रुस 1:3-4) अगर हमें विश्वास है कि जब हम इस दूषित और क्षणभंगुर जीवन से मृत्यु द्वारा विदा लेंगे, तब हमें एक अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी विरासत प्राप्त होगी तो हम मृत्यु के समय निराश नहीं होंगे। कलकत्ता की संत तेरेसा मृत्यु को घर-वापसी मानती थीं। इसलिए मृत्यु का विचार उन्हें निराश नहीं बल्कि आशामय बनाता था। 2 कुरिन्थियों 5:1-4 में संत पौलुस कहते हैं, “हम जानते हैं कि जब यह तम्बू, पृथ्वी पर हमारा यह घर, गिरा दिया जायेगा, तो हमें ईश्वर द्वारा निर्मित एक निवास मिलेगा। वह एक ऐसा घर है, जो हाथ का बना नहीं है और अनन्त काल तक स्वर्ग में बना रहेगा। इसलिए हम इस शरीर में कराहते रहते और उसके ऊपर अपना स्वर्गिक निवास धारण करने की तीव्र अभिलाषा करते हैं, बशर्ते हम नंगे नहीं, बल्कि वस्त्र पहने पाये जायें। हम इस तम्बू में रहते समय भार से दबते हुए कराहते रहते हैं; क्योंकि हम बिना पुराना उतारे नया धारण करना चाहते हैं, जिससे जो मरणशील है, वह अमर जीवन में विलीन हो जाये।” जब हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारी मत्यु के उस पार हमारे माता-पिता से भी अधिक, किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक हमें प्यार करने वाले तथा हमारी भलाई की हम से ज़्यादा कामना करने वाले प्रेममय पिता हमारा इंतज़ार कर रहे हैं, तब हम मृत्यु से भी क्यों डरेंगे।
आज के पाठों द्वारा प्रभु येसु हमारे अन्दर इसी प्रकार की आशा जगाना चाहते हैं। तदापि यह आसान नहीं है। येसु ने अपने प्रेममय पिता पर भरोसा रख कर अकथनीय तथा असह्य दुख को भी स्वीकार किया। यह आदर्श जीवन हमें भी अपने दैनिक क्रूस को स्वीकार करने में सहायता प्रदान करे।