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24. चालीसे का पाँचवाँ इतवार

यिरमियाह 31:31-34; इब्रानियों 5:7-9; योहन 12:20-33

(फादर जोन थोमस)


चालीसा मूलभूत बातों पर ध्यान देने तथा ईश्वर के साथ हमारे व्यक्तिगत संबंधों को मज़बूत करने का समय है। इस अवसर पर हमें अपने बपतिस्मा की याद करनी चाहिए जब प्रभु येसु ख्रीस्त ने हमारे पापों को धोकर तथा हमें नवजीवन देकर क्रूस पर अपनी विजय तथा पास्का की गरिमा को मनाने के लिये हमें योग्य बनाया। आज के पहले पाठ में प्रभु ईश्वर कहते हैं, ’’मैं अपना नियम उनके अभ्यंतर में रख दूँगा, मैं उसे उनके हृदय पर अंकित करूँगा।’’ सच्चे ख्रीस्तीय जीवन का यह सिद्धांत नये विधान की ओर इंगित करता है। सुसमाचार में हम देखते हैं कि कुछ यूनानी लोग प्रभु येसु से मिलने आते हैं और वे फिलिप से कहते हैं, ’’महाशय! हम ईसा से मिलना चाहते हैं’’। यही निवेदन हमें इस चालीसे काल में बार-बार दोहराना चाहिए। हमें भी प्रभु को करीब से जानने की इच्छा रखनी चाहिए। यूनानी लोग येसु से मिलना चाहते थे। इस अवसर पर प्रभु येसु अपने जीवन के कुछ रहस्यों को लोगों के सामने प्रकट करते हैं। प्रभु कहते हैं, ’’जब तक गेहूँ का दाना मिट्टी में गिरकर मर नहीं जाता तब तक वह अकेला ही रहता है; परन्तु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है’’।

क्या हम मिट्टी में गिरकर मरने के लिए तैयार है? हम इस प्रक्रिया से डरते हैं। प्रभु येसु के लिए भी मिट्टी में गिरना आसान नहीं था। वे कहते हैं, ’’अब मेरी आत्मा व्याकुल है’’। आज के दूसरे पाठ में हम एक हृदयस्पर्शी बात सुनते हैं, ’’मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहाकर ईश्वर, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की’’। इस प्रार्थना में प्रभु येसु की मानवता प्रकट होती है। उनकी अनुनय-विनय संकट को दूर नहीं करती है, परन्तु उसे मानव-मुक्ति का साधन बना देती है तथा ईश्वर को महिमा देती है। उन्होंने कहा था कि जब मानव पुत्र ऊपर उठाया जायेगा, तब वह सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करेगा। यहाँ पर ’ऊपर उठाये जाने’ का तात्पर्य क्रूस पर उठाये जाने तथा पिता ईश्वर की महिमा से है।

कई बार लोग हमारे ऊपर गलत इल्ज़ाम लगाते हैं या ईर्ष्या के कारण हमारी निंदा करते हैं। कभी-कभी हम अकेले ही रह जाते हैं। कभी हम विश्वास के संकट में पड़ जाते हैं। किसी दुर्घटना या बीमारी के समय हम इतने आशाहीन हो जाते हैं कि ईश्वर के अस्तित्व पर भी प्रष्न चिन्ह लगाने लगते हैं। जिनको हम हमारी संकटावस्था के लिये जिम्मेदार समझते हैं, उनको माफ करने में हम असमर्थ हो जाते हैं। लेकिन प्रभु अपनी प्राण पीड़ा के अवसर पर क्या कहते हैं? ’’पिता, अपनी महिमा प्रकट कर’’। उस अवसर पर प्रभु की एकमात्र चिंता पिता की इच्छा को पूरी करने की है। यही अंनत जीवन की कीमत है। अगर ईश्वर की इच्छा हो तो हमें अपनी सम्पत्ति, नौकरी या नाम खोने, यहाँ तक कि जीवन को भी त्यागने के लिए तैयार होना चाहिए। मसीह के समान ईर्ष्या, प्रतिकार आदि की भावना से ऊपर उठकर पिता की महिमा के लिए आज्ञापालन सीखना चाहिए। कई बार हम बीमारी, दुर्घटना या संकट से बच नहीं पाते हैं। उन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। परन्तु इन संकटावस्था में हम किस प्रकार का रवैया अपनायें, इसका चयन हम खुद कर सकते हैं। प्रभु कहते है, ’’जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और अपने जीवन से बैर करता है वह उसे अनंत जीवन के लिए सुरक्षित रखता है’’। हम में से अधिकांश लोग इस कथन को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में आज का सुसमाचार एक बड़ी चुनौती बन कर रह जाता है। आज की दुनिया में जब हिंसा की प्रवणता बढ़ती जाती है तथा लोग नफ़रत के वश में रहना अधिक पसंद करते हैं तब प्रभु येसु अपने जीवन तथा शिक्षा के माध्यम से यह सीखाना चाहते हैं कि ख्रीस्त विश्वासियों को ईष्वर की महिमा को प्राथमिकता देते हुए सुसमाचारीय मूल्यों एवं आदर्शों को अपनी पहचान बनाना चाहिए। कई बार हम दुःख संकटों को हम से दूर रखना चाहते हैं परन्तु उसके साथ-साथ खुशी भी हम से छिन ली जाती है। जैसे कहा जाता है, पुण्य शुक्रवार के बाद ही पास्का इतवार का आगमन होता है। प्रभु ने अपने परम पावन पिता की इच्छा के सामने सबकुछ त्याग दिया। यही हमारे लिये भी एक नमूना है। आइए हम मिट्टी में गिरकर मरने के लिए अपने आप को तैयार करे क्योंकि वही ईश्वर का महिमान्वित करने का तथा उसके फलस्वरूप स्वर्ग राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र तरीका है।


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