2 इतिहास ग्रंथ 36:14-16, 19-23; एफ़ेसियों 2:4-10; योहन 3:14-21
प्रभु येसु कहते हैं, “जिस तरह मूसा ने मरुभूमि में साँप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है, जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे।” हमारा अनन्त जीवन हमारे ईश्वर का प्रेममय उपहार है, यह एक अनोखा वरदान है। हमारी मुक्ति की विशिष्ठता को पहचानने वाले स्तोत्रकार के साथ हम भी गायेंगे, “प्रभु के सब उपकारों के लिए मैं उसे क्या दे सकता हूँ?” (स्तोत्र 16:12) संत पेत्रुस इस आनन्द का जिक्र करते हुए कहते हैं, “आपने उन्हें कभी नहीं देखा, फिर भी आप उन्हें प्यार करते हैं। आप अब भी उन्हें नहीं देखते, फिर भी उन में विश्वास करते हैं। जब आप अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् अपनी आत्मा की मुक्ति प्राप्त करेंगे, तो एक अकथनीय तथा दिव्य उल्लास से आनन्दित हो उठेंगे।” (1 पेत्रुस 1:8-9) वे कहते हैं कि स्वर्गदूत भी मुक्ति के सन्देश की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं (देखिए 1 पेत्रुस 1:12)।
यह अनन्त जीवन हम विश्वास के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए प्रभु आगे कहते हैं, “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे”।
क्रूस हमारी मुक्ति का चिह्न है। साथ ही यह हमारे प्रति ईश्वर के प्यार का चिह्न भी। हम अपनी मुक्ति खरीद नहीं सकते हैं। संत पौलुस कहते हैं, “आप लोग कीमत पर खरीदे गये हैं। इसलिए आप लोग अपने शरीर में ईश्वर की महिमा प्रकट करें” (1 कुरिन्थियों 6:20)।
एफेसियों 2:4-9 में संत पौलुस कहते हैं, “ईश्वर की दया अपार है। हम अपने पापों के कारण मर गये थे, किन्तु उसने हमें इतना प्यार किया कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन प्रदान किया। उसकी कृपा ने आप लोगों का उद्धार किया। उसने ईसा मसीह के द्वारा हम लोगों को पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में बैठाया। उसने ईसा मसीह में जो दयालुता दिखायी, उसके द्वारा उसने आगामी युगों के लिए अपने अनुग्रह की असीम समृद्धि को प्रदर्शित किया। उसकी कृपा ने विश्वास द्वारा आप लोगों का उद्धार किया है। यह आपके किसी पुण्य का फल नहीं है। यह तो ईश्वर का वरदान है। यह आपके किसी कर्म का पुरस्कार नहीं -कहीं ऐसा न हो कि कोई उस पर गर्व करे।”
संत पेत्रुस कहते हैं, “आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चांदी जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है, बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान् रक्त की कीमत पर।” (1 पेत्रुस 1:18-19)
हम अपने प्रयास या मेहनत से मुक्ति नहीं पा सकते हैं। हमें मेहनत और परिश्रम ज़रूर करना चाहिए। फिर भी हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि “यदि प्रभु ही घर नहीं बनाये, तो राजमन्त्रियों का श्रम व्यर्थ है। यदि प्रभु ही नगर की रक्षा नहीं करे, तो पहरेदार व्यर्थ जागते हैं।” (स्तोत्र 127:1) हमारी प्रार्थना, उपवास, तपस्या, परोपकार के कार्य, भिक्षादान – ये सब हमें ईश्वर के अमूल्य वरदानों के योग्य बना सकते हैं, बल्कि ये हमारी मुक्ति की कीमत नहीं चुका सकते। इसलिए हम में से हरेक व्यक्ति को जीवन भर अपने धन्यवादपूर्ण हृदय से ईश्वर की स्तुति करते रहना चाहिए। संत पौलुस कहते हैं, “सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि ईसा मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। (1 थेसलनीकियों 5:18) एफेसियों 5:20 में वे कहते हैं, “हमारे प्रभु ईसा मसीह के नाम पर सब समय, सब कुछ के लिए, पिता परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें”।