उत्पत्ति 22:1-2,9अ,10-13,15-18; रोमियों 8:31ब-34; मारकुस 9:2-10
आज समस्त काथलिक कलीसिया रूपांतरण का त्योहार मना रही है। प्रथम दृष्टि में रूपांतरण का मतलब हैं - आकृति में बदलाव लाना। प्रभु मसीह का रूपांतरण केवल बाहरी बदलाव नहीं था परन्तु उनकी आने वाली महिमा की एक झलक थी।
रूपांतरण एक रहस्यात्मक संधि है। इसको समझना मानव के इन्द्रीयज्ञान के परे है। एक छोटी सी कहानी है। एक बार माँ के गर्भ में एक जुड़वाँ भाई-बहन आपस में बातें कर रहे थे। बहन ने कहा, ’’मुझे लग रहा है कि जन्म के बाद भी एक जीवन होगा’’। तब भाई ने कहा, ’’नहीं नहीं, जो भी जीवन है वह इस गर्भ में ही है। यही हमारी दुनिया है। हमें कुछ नहीं करना हैं सिर्फ नाभी से जुड़े रहना है जिससे हमें पोषण मिलता है।’’ लेकिन बहन ने फिर कहा, ’’इस अंधकार के अलावा और भी कोई दुनिया होनी चाहिए जहाँ पर उजाला हो और ज्यादा जगह हो’’। फिर भी वह अपने भाई को विश्वास नहीं दिला सकी। कुछ समय के बाद बहन ने कहा, ’’मुझे लग रहा है कि हमारी एक माँ भी होगी’’। तब भाई ने चिड़ाते हुए बताया, ’’माँ....... क्या ऐसी कोई होगी? क्या तुम उससे कभी मिली हो? मैं तो कभी नहीं मिला।’’ तब बहन ने पूछा, ’’क्या तुम्हें कभी-कभी कुछ दबाव महसूस नहीं होता’’? भाई ने उत्तर दिया, ’’वह तो है और कभी-कभी दर्द भी होता है। लेकिन उसमें असामान्य क्या है?’’ बहन ने कहा, ’’वह दर्द और दबाव हमें एक नयी दुनिया का इशारा दे रहा है, जो इससे सुन्दर होगी और हम अपनी माँ को आमने-सामने देख सकेंगे’’। इस कहानी में जुड़वाँ भाई का विश्वास यह था कि जो वह देख रहा है, सुन रहा है, और महसूस कर रहा है, इसके अलावा और कोई दुनिया नहीं है। लेकिन बहन का यह विश्वास था कि देखने, सुनने, और महसूस करने के बाहर भी एक दुनिया हैं।
हम ख्रीस्तीय, ईश्वर की विशेष आशिष द्वारा, इस कहानी के बहन जैसे हैं जो एक नई दुनिया के इन्तज़ार में हैं। इस जीवन में हमें बहुत कठिनाईयों से गुज़रना होगा। इन कठिनाईयों का सामना करने के लिए हमें आने वाले महिमान्वित दिनों की आशा और प्रतीक्षा में रहना अनिवार्य है। यह प्रतीक्षा दुनिया की स्पर्शनीय सत्ता पर आधारित नहीं है क्योंकि जो रूपांतरण शिष्यों ने अनुभव किया वह इस दुनिया का नहीं था।
ऊँचे पहाड़ पर जब ईसा का रूपांतरण हुआ तब पेत्रुस, याकूब और योहन को कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि यह घटना उनकी मानवीय बुद्धि की सीमाओं से परे है। यह घटना प्रभु मसीह की आने वाली महिमा की एक झलक थी। रूपांतरण का अनुभव, प्रभु की विशेष आशिष से ही संभव हुआ। क्या हम भी इस तरह महिमा की झलक अनुभव कर सकते हैं? जी हाँ! इस तरह की झलक देखने के लिए हमें अपनी विश्वास रूपी आँखों को खुला रखकर प्रार्थना रूपी पर्वत पर चढ़ना होगा।
ईष्वर ने मनुष्य का रूप धारण करके, इस दुनिया में जन्म लिया। कई तरह के लोगों से मिले। कुछ लोगों ने उनकी ईश्वरीयता को समझकर उनका आदर किया तो कई लोगों ने उसकी निंदा भी की। आज अगर हमें उसे समझना और अपनाना है, तो हमें, उन लोगों से मिलना है जिनसे येसु बड़ी हमदर्दी से मिलते थे। रूपांतरण प्रभु मसीह के मानवीय जीवन के रहस्यात्मक पहलूओं में से एक है। विज्ञान, दर्शनशास्त्र एवं ईशशास्त्र की उन्नति होने पर भी, इन रहस्यों का पूर्ण खुलासा नहीं हो पाया है। प्रभु मसीह के रूपांतरण को देखने के लिए वे ही लोग भाग्यशाली थे जिनको प्रभु ने चुना था। इससे यह साबित होता है कि ईश्वर के सहभागी बनने वालों को ही उनकी महिमा में भाग लेने का अधिकार है।
अब यह प्रश्न उठता है कि हम प्रभु के रूपांतरण के सहभागी कैसे बन सकते हैं? प्रभु ने अपने जीवन द्वारा हमें जीवन की कुछ अनन्त सच्चाईयों से अवगत कराया है। प्रभु के मार्ग पर चलने वालों को प्रभु अपने रूपान्तरण का अनुभव करा कर दैनिक जीवन की चुनौतियों के सामने साहस तथा हिम्मत बाँध कर आगे चलने की कृपा प्रदान करते हैं।
रूपांतरण की घटना में, शिष्यगण, आज के समाज का प्रतीक हैं जिन्होंने रूपांतरण से अपने नज़रिये में बदलाव लाया है। प्रभु मसीह ने अपने जीवन काल में सभी लोगों को गले लगाया। उनकी दोस्ती धनी, गरीब, छोटे, बड़े, निष्कलंक और पापियों के साथ थी। वे पाप न करते हुए, पापियों के भी मित्र बने और उन्होंने उन्हें पापों से घृणा करना सिखाया।
समाज में सबसे शोषित, अनाथ, विधवायें, बेगुनाह कैदियों, बेघर बच्चे, परिवारों से तिरस्कृत बुजुर्ग, रेलवे स्टेशनों में बेमतलब घूमते बच्चे, भागे हुए बच्चे, कोढ़ी, एड्स पीढि़त मरीज़, ये सब के सब समाज में स्वीकृत होने के लिए तरसते हैं। यह तब सम्भव होगा जब ये लोग हममें रूपांतरण की झलक देखेंगे। हमारा रूपांतरण तब होगा जब हम उनकी पीड़ाओं को अपना समझकर, उनके दुःख-दर्दों को अपनाकर जीने लगेगें। आज की दुनिया येसु के साथ हमारे रूपांतरण के लिए तरसती है। रूपांतरित प्रभु हमें शक्ति एवं साहस प्रदान करें।