उत्पत्ति 9:8-15; 1 पेत्रुस 3:18-22; मारकुस 1:12-15
जब राजनीतिज्ञ आर्थिक उथल-पुथल का सामना करते हैं तो वे अक्सर लोगों का ध्यान का आर्थिक संकट से हटा देते हैं। सन् 64 ईस्वी में भारी आर्थिक संकट के समय रोम नगर में राजा नीरो ने महानगर को आग की लपटों में झोंककर लोगों का ध्यान बांट दिया था। पूरा रोम महानगर सप्ताह भर धू-धू कर जलता रहा और इस आग ने आधे शासकीय नगर को भी अपनी चपेट में ले लिया। राजा नीरो ने यहूदी-ख्रीस्तीयों पर रोम में आग लगाने का इल्ज़ाम लगाया और इस प्रकार धर्म सतावट का दौर शुरू हुआ। येसु ख्रीस्त के अनुयायीयों को भूखे सिंहों के सामने भरे अखाड़ों में फेंका जाने लगा और रोमी नागरिक अपने सदृष मानव को नीच व वीभत्स मृत्यु के हवाले देख आनन्द लेते थे। एक ओर रोम की जनता का ध्यान तो आर्थिक संकट से हट गया किन्तु दूसरी ओर निर्दोष ख्रीस्तीय बलि का बकरा बन गये।
सुसमाचार लेखक संत मारकुस, रोम में मृत्यु का सामना कर रहे ख्रीस्तीयों के लिये यह सुसमाचार लिखते हैं जिन पर उस समय हमेशा संकट व सतावट के बादल मंडरा रहे थे। संत मारकुस बताते हैं कि किस तरह मरूभूमि में प्रभु येसु ने जंगली जानवरों अर्थात् अपने विरोधियों का सामना किया।
प्रभु येसु निर्दोष हैं, हालाँकि वे निर्दोष हैं लेकिन उनकी निर्दोषता उन्हें संघर्ष, परीक्षाओं, दुखों एवं शत्रुओं से सामना करने से रक्षा नहीं करती। निर्दोषता उनके संघर्षों को दूर नहीं करती बल्कि उन्हें परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। अपने प्रेरितिक कार्य के पूर्व येसु मरूभूमि में जो शैतान का क्षेत्र माना जाता है परीक्षाओं का सामना करते पाए जाते हैं।
सुसमाचार लेखक मारकुस कहते हैं कि षैतान ने येसु की परीक्षा ली। इब्रानी एवं पुराने नियमों के अनुसार शैतान का अर्थ सरल अर्थों में ’विरोधी’ समझा जाता है। पहले उस शब्द से उस व्यक्ति का समझा जाता था जो किसी का विरोध करता है। उदाहरणार्थ- फिलीस्ती लोग युवा दाऊद से इसलिये भय खाते थे कि वह एक दिन उनका सबसे बड़ा शत्रु (विरोधी) होगा। (समूएल 29:4) शैतान शब्द का मूल अर्थ है खतरनाक विरोधी। कालान्तर में शैतान शब्द से यह समझा जाने लगा या उपयोग होने लगा कि वह व्यक्ति जो किसी के लिए पैरवी करता हो। शैतान ईश्वर का विरोधी है। नए व्यवस्थान के अनुसार शैतान से यह समझा जाने लगा कि वह बुरी आत्माओं का प्रमुख है जिसने परमेष्वर की सेना के विरुद्ध लड़ाईयाँ लड़ी। बुरी आत्माओं से ऐसी लड़ाईयाँ जो दुनियाँ के अंतिम दिनों तक चलेंगी।
मरूभूमि में परीक्षाओं पर विजय प्राप्त करने के बावजूद, परीक्षाएं प्रभु येसु का पीछा नहीं छोड़ती हैं, वे उनके सांसारिक जीवन के अन्त तक उनके साथ रहती है। प्रभु के शत्रु उनके प्रेरितिक कार्यों के दिनों में भी सामने आयेंगे जिनसे उनको संघर्ष करना होगा। जिस तरह उन्होंने पेत्रुस से कहा था- ’’मुझसे दूर हो शैतान! क्योंकि ईश्वर का मार्ग उस तरह नहीं है जिस तरह तुम समझते हो’’। (मारकुस 9:33) शैतान हमारे दोस्तों तथा परिजनों के द्वारा भी हमें फंसाने की कोशिशि करता रहता है। हमें सतर्कता से उसका मुकाबला करना है।
चालीसे के प्रारंभ में हमें भी प्रभु येसु अपने साथ मरुस्थल में ले चलते हैं ताकि हम सुसमाचार-विरोधी शक्तियों का सामना कर सकें, अपनी बुरी इच्छाओं, ईर्ष्याम द्वेष आदि शक्तियों का सामना कर सकें। पापों के मरुस्थल में हम अकेले शैतान से नहीं जूझते हैं। हम अकेले परीक्षाओं से संघर्ष करने के लिए नहीं छोड़ दिये जाते हैं। प्रभु येसु के समान हमें पिता के साथ संयुक्त रहना चाहिए और पाप की ताकतों से संघर्ष करते समय हमें ईष्वर की आवाज़ सुनते रहना चाहिए।
पापा योहन तेईसवें ने अपनी ’’आत्मा की डायरी’’ में लिखा था कि स्वर्ग के दो ही दरवाज़ें हैं - निष्कलंकता और प्रायश्चत्ता। इनमें निष्कलंकता सर्वोत्तम दरवाज़ा है। अगर वह दरवाज़ा एक बार बन्द हो जाता है तो हमें एक और दरवाजे़ का सहारा मिल सकता है- पश्चात्तापप के दरवाजे़ का। अधिकत्तर संतों की यह विशेषता है कि उन्होंने स्वर्ग में निष्कलंकता के दरवाजे़ से प्रवेश किया है। पापा योहन तेईसवें की यही कोषिष रही कि निष्कलंकता का दरवाज़ा कभी बन्द न हो। पाप से ही हम कलंकित हो जाते हैं और निष्कलंकता का दरवाज़ा हमारे लिए बन्द हो जाता है। हम में से कई लोगों के लिए निष्कलंकता का दरवाज़ा हमारे पापों के कारण बन्द हो चुका है। अब एक ही दरवाज़ा खुला है - वह है प्रायश्चित्त का। समय बीत जाने के पहले हमें प्रायश्चित्त के द्वारा स्वर्ग में प्रवेश करने का दृढसंकल्प लेना चाहिए। चालीसे काल की यही चुनौती है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार मरुभूमि में भी स्वर्गदूतों ने प्रभु येसु की सेवा की उसी प्रकार पाप और अंधकार की शक्तियों से संघर्ष करते समय ईश्वर अपने दूतों द्वारा हमारी मदद करते रहते हैं।