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13. प्रभु येसु का बपतिस्मा

इसायाह 42:1-4; प्रेरित चरित 10:34-38; मारकुस 1:6ब-11

(फादर जोनी कन्नीक्काट)


आज कलीसिया हर विश्वासी से यह आशा रखती है कि वह प्रभु ख्रीस्त के बपतिस्मा पर मन्न्-चिंतन करे। यह एक महत्वपूर्ण घटना है। इसी कारण चारों सुसमाचारों में इसका विवरण पाया जाता है। हम विश्वास करते हैं कि बपतिस्मा के द्वारा हमें पापों की क्षमा मिलती है। कलीसिया हमें सिखाती हैं बपतिस्मा में ईश्वर हमारे आदि-पाप तथा अन्य पापों को डालते हैं। लेकिन प्रभु येसु निष्पाप थे और उन्हें बपतिस्मा ग्रहण करने की क्या ज़रूरत थी? प्रभु येसु यर्दन नदी में योहन बपतिस्ता के सामने सारी मानव जाति के पापों को अपने ऊपर लेकर खडे़ थे। वे पापी मानव के प्रतिनिधि बनकर योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा ग्रहण करते हैं।

बपतिस्मा एक सामुदायिक घटना है। जब हम बपतिस्मा ग्रहण करते हैं, तब हम ख्रीस्तीय समुदाय के सदस्य बनते हैं। बपतिस्मा के द्वारा हम ख्रीस्त के शरीर के अंग बनते हैं। येसु के बपतिस्मा के समय स्वर्ग खुल गया, पवित्र आत्मा कपोत के रूप में येसु के ऊपर ठहर गये और स्वर्ग से एक वाणी सुनाई पडी, तू मेरा प्रिय पुत्र है। मैं तुझ पर अत्यंत प्रसन्न हूँ।’’ जब कभी एक बपतिस्मा होता है तब इसी प्रकार की घटना घटती है। स्वर्ग जो आदम और हेवा के पाप के कारण बन्द हो गया था, उस व्यक्ति के लिए खुल जाता है। बपतिस्मा ग्रहण करने वाले व्यक्ति के ऊपर पवित्र आत्मा का आगमन होता है। बपतिस्मा ग्रहण करने वाले हरेक व्यक्ति से पिता ईश्वर कहते हैं, ’’तू मेरा प्रिय पुत्र (प्रिय पुत्री) है। मैं तुझ पर अत्यंत प्रसन्न हूँ।’’ हम जब इस बात पर मन्न्-चिन्तन करते हैं तो हमें बड़ी खुशी महसूस होती है। परन्तु हमें अपने आप को यह लगातार याद दिलाते रहना चाहिए कि इस प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ-साथ हमें कुछ जिम्मेदारियाँ भी सौंपी जाती हैं। हर विश्वासी को यह याद रखना चाहिए कि नरक का द्वार खुला ही रहता है और वह मार्ग विस्तृत है। संत मत्ती कहते हैं, ’’सँकरे द्वार से प्रवेश करो। चैड़ा है वह फाटक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है। किंतु सँकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।’’ (मत्ती 7:13-14) इसलिए संत पेत्रुस कहते हैं, ’’आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रु, शैतान दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। आप विश्वास में दृढ़ होकर उसका सामना करें।’’ (1 पेत्रुस 5:8)

हमने भी बपतिस्मा के समय पवित्र आत्मा को ग्रहण किया है। संत पौलुस एफे़सियों को लिखते हुए कहते हैं, ’’पवित्र आत्मा ने मुक्ति के दिन के लिए आप लोगों पर अपनी मुहर लगाई है। आप उसे दुःख नहीं दें।’’ (एफे़सियों 4:30) संत पौलुस आगे यह साफ बताते हैं कि सब प्रकार की कटुता, उत्तेजना, क्रोध, लड़ाई-झगड़ा, परनिन्दा और हर तरह की बुराई पवित्र आत्मा को दुख देने वाली बातें हैं।

बपतिस्मा के द्वारा हम ईश्वर की संतान बनते हैं। मेल कराना, शत्रुओं को प्यार करना, ईश्वर की संततियों के कत्र्तव्य हैं (देखिए मत्ती 5:9)। आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देते हैं कि हम ईश्वर की संतान हैं। संतान होने के नाते हम उनकी विरासत के भागी हैं, मसीह के दुःख और महिमा में भी भागी हैं। (देखिए रोमियों 8:16-17) संत योहन अपने पहले पत्र में ईश्वर की संतान और शैतान की संतान की पहचान बताते हैं। वे कहते हैं, ’’जो ईश्वर की संतान है, वह पाप नहीं करता; क्योंकि ईश्वर का जीवन-तत्व उसमें क्रियाशील है। वह पाप नहीं कर सकता क्योंकि वह ईश्वर से उत्पन्न हुआ है।’’ (1 योहन 9ः10) बपतिस्मा हमें पाप से दूर रहने की कृपा प्रदान करता है।

प्रभु येसु के बपतिस्मा के समय पिता की जो वाणी सुनाई दी वह येसु की पहचान व्यक्त करती है। उसका पहला भाग ’’तुम मेरे पुत्र हो’’ स्तोत्र 2:7 से लिया गया है जो राजाओं के राज्याभिषेक के समय पढ़ा जाता था। इस कथन का दूसरा भाग ’’मैं तुझ पर अत्यंत प्रसन्न हूँ’’ इसायाह 42 से लिया गया है जो कि ईश्वर के सेवक संबंधी पहला काव्य है। इस प्रकार प्रभु येसु की पहचान राजा और ईश्वर के सेवक के रूप में होती है।

बपतिस्मा संस्कार हमें भी अपनी पहचान प्रदान करता है। इस संस्कार के साथ ही हम प्रभु येसु के राजकीय, याजकीय तथा नबीय कार्य के सहभागी बनते हैं। इस प्रकार बपतिस्मा संस्कार हमें एक बडी जिम्मेदारी सौंपता है- ईश्वर की संतान की तरह आचरण।


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