गणना 6:22-27; गलातियों 4:4-7; लूकस 2:16-21
अगर आप साधारण विश्वासियों से पूछेंगे कि आप माँ मरियम को ईश्वर की माता क्यों मानते हैं, तो शिक्षित विश्वासी लोग शायद आप को जवाब देंगे कि माँ मरियम ने येसु को जन्म दिया; येसु ईश्वर हैं और इसलिए माँ मरियम ईश्वर की माँ हैं। लेकिन अगर हम प्रभु येसु से ही पूछते हैं कि आप माँ मरियम को अपनी माँ क्यों मानते हैं तो येसु हम से कहेंगे कि उन्होंने ईश्वर के वचन को विनम्रता से स्वीकार किया, उसे अपने हृदय में संचित रखा और उसका अपने जीवन में पालन किया। प्रभु कहते हैं, “मेरी माता और मेरे भाई वही है, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं (लूकस 8:21)।
दरअसल जब कभी कोई अपनी माता के बारे में सोचता है, शायद ही वह इस बात को याद करता है कि उसने मुझे जन्म दिया है, बल्कि माँ के प्यार, बलिदान की भावना, ममता तथा कुर्बानियों को ही याद करता है।
आज हम ईशमाता कुँवारी मरियम का त्योहार मना रहे हैं। यह त्योहार हमें यह बताता है कि ईश्वर कितने उदार है, कि ईश्वर की आज्ञाओं का विनम्रता के साथ पालन करने वालों को ईश्वर कितना ऊपर उठाते हैं। अपनी सृष्टि में से ही किसी को वे माँ कहते हैं और उन्हें आदर और सम्मान से विभूषित करते हैं। वे उन्हीं से सीखने और अन्य मानवों की तरह उनके गर्भ में नौ महीनों तक रहते हैं।
कई बार हम प्रार्थना करते हैं, “हे परमेशवर की पवित्र माँ हमारे लिए प्रार्थना कर, कि हम ख्रीस्त की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन जायें”। माता मरियम अपने आप को प्रभु की दासी मानती हैं। यह उनकी विनम्रता का प्रमाण है। इस विनम्रता के कारण वे ईश्वर की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन गयी। इसी कारण ईश्वर ने माँ मरियम को सभी मानवों में धन्य बनाया। माँ मरियम स्वयं यह घोषित करती हैं कि सर्वशक्तिमान ने ही उन्हें महान बना दिया है।
संत लूकस हमें बताते हैं कि प्रभु येसु के प्रवचन सुन कर, उससे प्रभावित हो कर “भीड़ में से कोई स्त्री उन्हें सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर में बोल उठी, ’’धन्य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है!” (लूकस 11:27) लेकिन प्रभु की प्रतिक्रिया पर ध्यान दीजिए। उन्होंने उत्तर दिया, “ठीक है; किन्तु वे कहीं अधिक धन्य हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं” (लूकस 11:28)।
हमें भी मातृत्व को गर्भधारण तथा स्तनपान कराने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। मातृत्व एक काम नहीं है बल्कि एक संबंध है। हाँलाकि नाभिरज्जु (umbilical cord) बच्चे के जन्म के समय काट दिया जाता है, विश्वासी लोग ईशवचन के द्वारा जो संबंध स्थापित करते हैं, वह बना रहता तथा दिन प्रतिदिन मजबूत होता जाता है। माँ को केवल बच्चों तथा पति के लिए काम करते रहने वाली एक महिला के रूप में देखना एक बहुत ही संकुचित दृष्टिकोण है। आज के समाज की यह वास्त्तविकता है कि माताओं को वह स्थान नहीं दिया जाता है जो असल में उनका है।
माँ मरियम उन सब महिलाओं का प्रतीक है जो माँ होने के कारण बलिदान, उदारता, ममता तथा समर्पण का जीवन बिताती हैं। जब ईश्वर ने स्त्री की सृष्टि की थी, तब उन्होंने उसे एक ’उपयुक्त सहयोगी’ (उत्पत्ति 2:18) के रूप में सृष्ट किया था। हम भी दृढ़संकल्प करें कि हम भी माँ मरियम के समान विनम्र और उदार बनें ताकि उन्हीं के समान ईश्वर के कृपापात्र बन सकें।