दक्षिण भारत के एक छोटे से शहर में एक परिवार है। उस परिवार के एकमात्र बेटे को खाड़ी के एक देश में बहुत ही अच्छी नौकरी मिल गयी। उसकी शादी हुई और उस दम्पत्ति को एक बेटी हुई। उस बेटी के माता-पिता ने यह सोचा कि बेटी को उसके दादा-दादी के साथ छोड़कर उसके उज्जवल भविष्य के लिए खाड़ी देश में रहकर ही पैसा कमा ले। इस इरादे के साथ पति-पत्नी दोनों काम करते रहे। वे बीच-बीच में अपनी बेटी के लिए पैसा और अन्य ज़रूरत की वस्तुऐं पहुँचाते रहे। क्रिसमस पर अकसर वे इनाम का एक बड़ा पैकेट भेजते थे। बेटी बड़ी होती गयी। जब वह पन्द्रह साल की थी तब हर साल की तरह उसे क्रिसमस का इनाम प्राप्त हुआ। क्रिसमस के लगभग दस दिन बाद वह अपनी सहेलियों के साथ पिकनिक मनाने गयी। रास्ते में उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और इस लड़की की मृत्यु हो गयी। जिस एकमात्र बेटी के लिए माता-पिता पैसा कमा रहे थे उसका असमय देहांत हो गया। उस घटना से माता-पिता बहुत प्रभावित एवं दुःखी हुए। बेटी के शरीर को दफनाने के बाद वे उसके कमरे में गये तो उन्होंने देखा कि उसने क्रिसमस को प्राप्त इनाम को खोला भी नहीं था। उस इनाम के पास ही उन्होंने उसकी डायरी पायी जिसमें वह नियमित रीति से अपने मन की भावनायें लिखती थी। उस लड़की की माँ ने क्रिसमस के दिन के पेज़ को खोलकर पढ़ा तो उसमें लिखा था ’’मैं कितना चाहती हूँ कि बड़े-बड़े कीमती इनाम भेजने की जगह मेरे पापा-मम्मी साल में एक बार कम से कम दो दिन मेरे साथ बिताएं।’’
हम सभी लोग यह चाहते हैं कि जिसे हम प्यार करते हैं वह हमारे साथ रहे या करीब रहे। आज हम प्यार का त्योहार मना रहे हैं। आज हम यह अनुभव करते हैं कि ईश्वर हमारे करीब है, हमारे साथ है क्योंकि चरनी में लेटे बालक येसु में ईश्वर एम्मानुएल बन गये। एम्मानुएल का अर्थ है ईश्वर हमारे साथ है। क्रिसमस का त्योहर इनामों का त्योहार है। इस अवसर पर ख्रीस्तीय एवं गैर-ख्रीस्तीय सांताक्लोस को देखकर खुश हो जाते हैं। बच्चे हमेशा सांताक्लोस का इंतजार करते हैं क्योंकि सांताक्लोस उनके लिए इनाम लेकर आते हैं। चरनी में लेटे बालक येसु में ईश्वर का सबसे बड़ा इनाम है। इस इनाम का सच्चा अनुभव वे ही कर सकते हैं जो प्रभु के कृपा पात्र है। आपने शायद अंतोनी फ्लू (Antony Flew) नामक अंग्रेजी निरीश्वरवादी दार्शनिक का नाम अवश्य सुना होगा। उनका जन्म सन् 1923 को इग्लैंड में हुआ था। दुनिया के सभी निरीश्वरवादी अंतोनी फ्लू को अपना बड़ा नेता मानते थे। सन् 1950 में उन्होंने ईषशास्त्र और अन्यथाकरण (Theology and Falsification) नामक किताब की रचना की। इसमें अपने निरीश्वरवाद को उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। करीब 5 दशकों तक उन्होंने निरीश्वरवादियों का मनोबल बढ़ाया और लोगों को धार्मिक शिक्षाओं से दूर ले जाने की कोशिश की। परन्तु सन् 2004 में उन्होंने खुद यह माना कि विज्ञान का उनका गहरा अध्ययन उन्हें ईश्वर की ओर ले चलने लगा है। लेकिन अब भी वे किसी धर्म को मानने को तैयार नहीं है। ईश्वर रूपी एक शक्ति को तो वे मानते हैं परन्तु उनके अनुसार ईश्वर को मानवीय जीवन में कुछ रूची है या नहीं यह कहना संभव नहीं है।
आज की दुनिया में धर्म को भी कई लोग मन-मस्तिष्क तक ही सीमित रखना चाहते हैं। लेकिन आज का त्योहार हमें यह सिखाता है कि धर्म सबसे पहले हृदय से संबंध रखता है न कि मन-मस्तिष्क से। ईश्वर प्यार है और जहाँ प्यार है वहाँ लेखे-जोखे का कोई स्थान नहीं। संत योहन के सुसमाचार में अध्याय तीन वाक्य 16 हमें यह बताता है कि ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमें विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो बल्कि अनंत जीवन प्राप्त करे। आज के त्योहार की नींव ही प्यार है। प्यार से प्रेरित होकर ईश्वर हमारे बीच रहने आते हैं। और प्यार से प्रेरित होकर ही वे बेथलेहेम के गौशाले की चरनी को ही अपने जन्म के लिए चुनते हैं। जिसे प्यार करने के लिए कोई नहीं है उसे प्यार करने वाले बनकर ईश्वर आज के दिन प्यार की नवीनतम परिभाषा देते हैं। ईश्वर ने प्यार की इस खुशखबरी को ग्रहण करने के लिए गडेरियों को चुना। गडे़रिये हृदय से विनीत और विचार से विनम्र होने के कारण ’अंतोनी फलू जैसी मन-मस्तिष्क की चेष्टा’ से बचकर ईश्वर तक पहुँचने में कामयाब होते है। मन-मस्तिष्क की संर्कीण सीमाएं होती है। परन्तु हृदय से खोज करने वाले उन सीमाओं को पार कर सच्चाई तक पहुँचते हैं। इसी कारण बड़े हृदय वाले ही आज के त्योहार की सच्ची कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आज हम गडेरियों के समान सादगी में जन्म लेने वाले ईश्वर को हृदय से खोजें और उस अनुभूती को दूसरों तक पहुँचाने की कृपा परम पिता ईश्वर से माँगे।