धार्मिक नेताओं का जीवन एक चुनौतीपूर्ण जीवन होता है। उन्हें लोगों को ईश्वर की शिक्षा प्रदान करना तथा अपने योग्य आचरण से उस शिक्षा की प्रमाणिकता को सिद्ध करना होता है। जनता में उनके सदव्यवहार से प्रेरणा तथा उत्साह का संचार होता है। जनसामान्य की आस्था इनके व्यवहार एवं मार्गदर्शन पर टिकी होती है। लेकिन जब ये धार्मिक नेता अपने मार्ग से भटक कर गलत रास्ते पर प्रशस्त होते हैं तो समस्त राष्ट्र ही भटक जाता है। लोगों में ईश्वर के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति का हास होता है। सुसमाचार की वाणी इस स्थिति को उपयुक्त रूप से व्यक्त करती है, ’’इसलिए जो ज्योति तुम में है, यदि वही अंधकार है, तो यह कितना घोर अंधकार होगा!’’ (मत्ती 6:23) इस प्रकार धार्मिक नेताओं का निंदनीय व्यवहार अनेकों के लिए पाप का कारण बनता है। इस्राएल में धार्मिक नेताओं की श्रेणी में याजकगण एवं तथाकथित नबी आते थे।
प्रभु येसु के समय इस्राएल के कई धार्मिक नेता पथभ्रष्ट थे। वे लोगों को शिक्षा तो दिया करते थे किन्तु उनका व्यक्तिगत जीवन अशोभनीय एवं निंदनीय था। वे धर्म का इस्तेमाल अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए कर रहे थे तथा लोगों को गलत उदाहरण दे रहे थे। ईश्वर की दृष्टि में यह घोर पाप था। ऐसे धार्मिक नेताओं को प्रभु येसु भीषण परिणाम की चेतावनी देते हुए कहते हैं, “जो मुझ पर विश्वास करने वाले उन नन्हों में एक के लिए भी पाप का कारण बनता है, उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में डुबा दिया जाता।” (मत्ती 18:6) उनके दोहरे तथा झूठे धार्मिक व्यवहार पर प्रभु कहते हैं, “ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी पूजा करते हैं और ये जो शिक्षा देते हैं, वह है मनुष्यों के बनाए हुए नियम मात्र।” (मत्ती 15:8-9)
पहले पाठ में नबी मलआकी भी ऐसे छदम् नेताओं को उनके दोषपूर्ण जीवन को सुधारने के लिए चेतावनी देते हैं, “हे याजको! मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ। .... तुम लोग भटक गये हो और अपनी शिक्षा द्वारा तुमने बहुत से लोगों को विचलित कर दिया।” (मलआकी 2:1) नबी एजेकिएल के द्वारा ईश्वर कठोर शब्दों का प्रयोग करते हैं, “चरवाहो! प्रभु-ईश्वर यह कहता है! धिक्कार इस्राएल के चरवाहों को! वे केवल अपनी देखभाल करते हैं। क्या चरवाहों को झुण्ड की देखवाल नहीं करनी चाहिए। तुम भेड़ों का दूध पीते हो, उनका ऊन पहनते और मोटे पशुओं का वध करते हो, किन्तु तुम भेड़ों को नहीं चराते। तुमने कमजोर भेड़ों को पौष्टिक भोजन नहीं दिया, बीमारों को चंगा नहीं किया, घायलों के घावों पर पटटी नहीं बाँधी, भूली-भटकी हुई भेड़ों को नहीं लौटा लाये और जो खो गयी थीं, उनका पता नहीं लगाया। तुमने भेड़ों के साथ निर्दय और कठोर व्यवहार किया है। वे बिखर गयी, क्योंकि उन को चराने वाला कोई नहीं रहा और वे बनैले पशुओं को शिकार बन गयीं। मेरी भेड़ें सब पर्वतों और ऊँची पहाडियों पर भटकती फिरती हैं, वे समस्त देश में बिखर गयी हैं, और उनकी परवाह कोई नहीं करता, उनकी खोज में कोई नहीं निकलता।” (एजेकिएल 34:2-6)
धार्मिक नेताओं के दयनीय एवं दोषपूर्ण व्यवहार तथा कर्तव्यों के प्रति उनकी घोर लापरवाही के कारण ईश्वर स्वयं अपनी प्रजा, अपनी भेडों के लिए सांत्वना भेजते हैं। “मैं स्वयं अपनी भेड़ों को सुध लूँगा और उनकी देखभाल करूँगा। भेड़ों के भटक जाने पर जिस तरह गडेरिया उनका पता लगाने जाता है, उसी तरह में अपनी भेडें खोजने जाऊँगा। कुहरे और अँधेरे में जहाँ कहीं वे तितर-बितर हो गयी हैं, मैं उन्हें वहाँ से छुडा लाऊँगा। मैं उन्हें राष्ट्रों में से निकाल कर और विदेशों से एकत्र कर उनके अपने देश में लौटा लाऊँगा। मैं उन्हें इस्राएल के पहाड़ों पर, घाटियों में और देश भर के बसे हुए स्थानों पर चाराऊँगा। मैं उन्हें अच्छे चरागाहों में ले चलूँगा। वे इस्राएल के पर्वतों पर चरेंगी। वहाँ वे अच्छे चरागाहों में विश्राम करेंगी और इस्राएल के पर्वतों की हरी-भरी भूमि में चरेगी। प्रभु कहता है - मैं स्वयं अपने भेड़ें चराऊँगा और उन्हें विश्राम करने की जगह दिखाऊँगा। जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं उन्हें खोज निकालूँगाय जो भटक गयी हैं, मैं उन्हें लौटा लाऊँगाय घायल हो गयी हैं, उनके घावों पर पट्टी बाँधूगा, जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूँगा, जो मोटी और भली-चंगी हैं, उनकी देखरेख करूँगा। मैं उनका सच्चा चरवाहा होऊँगा।’’ तब वे यह समझ जायेंगी कि मैं, उनका प्रभु-ईश्वर, उनके साथ हूँ और कि वे, इस्राएल का घराना, मेरी प्रजा हैं। ... तुम्हीं मेरे भेड़ें हो- मेरे चरागाह की भेड़ें और मैं तुम्हारा ईश्वर हूँ।” (एज़ेकिएल “34:11-16, 30-31)
प्रभु जानते हैं कि मनुष्य कितना भी परिपक्व क्यों न हो वह कमजोर तथा त्रुटीपूर्ण हैं, इसलिए प्रभु येसु लोगों से केवल ईश्वर का अनुसरण करने को कहते हैं। “तुम्हारा एक ही गुरु है...तुम्हारा एक ही पिता है तथा एक ही आचार्य है अथार्त मसीह।” (मत्ती 23:8-10) पिता स्वयं अपने पुत्र ईसा मसीह में हमारे लिए नबियों द्वारा घोषित एवं प्रतिज्ञात सच्चा एवं भला चरवाहा भेजते हैं। ऐसा चरवाहा जो परिपूर्ण एवं परिपक्व है। ऐसा चरवाहा जो, ’जीवन देने तथा उस जीवन को परिपूर्णता तक ले जाने वाला है।’ (योहन 10:10) ऐसा चरवाहा जो अपनी भेडों को त्यागता नहीं है बल्कि उनके लिए अपने प्राण अर्पित कर देता है।’ (देखिए योहन 10:11-15)
हमें भी अपने जीवन एवं ख्रीस्तीय विश्वास को केवल ईश्वर के वचनों पर आधारित करना चाहिए। हमारे धार्मिक नेताओं का मानवीय व्यवहार हमें सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही रूपों में प्रभावित करता है किन्तु यह हमारे विश्वास का निर्धारक कभी नहीं बनना चाहिए। हमारे वर्तमान समाज में भी हम ऐसी ही रिक्तता एवं निदंनीय धार्मिक व्यवहारों को देखते हैं। इससे हमें दुखी होना चाहिए, किन्तु कभी भी निराश और हताश नहीं। क्योंकि प्रभु ने स्वयं हमें सिखलाया है कि केवल ईश्वर ही हमारा सच्चा एवं परिपूर्ण, गुरुवर, पिता तथा आचार्य हैं। उन्हीं पर हमारा जीवन तथा विश्वास निर्भर करता है। प्रभु कभी भी हमें निराश नहीं करते हैं।