चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का उनतीसवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 45:1,4-6; 1 थेसलनीकियों 1:1-5ब; मत्ती 22:15-21

प्रवाचक: फ़ादरडेन्नीस तिग्गा


आज के सुसमाचार में प्रभु कहते हैं, “जो कैसर का है, उसे कैसर को दो और जो ईश्वर का है, उसे ईश्वर को” (मत्ती 22:21। यहाँ पर एक प्रकार से ईश्वर और राजा या कैसर की तुलना की गयी है। हमें इस बात पर मनन-चिंतन करना चाहिए कि ईश्वर का क्या है और कैसर का क्या है। 1 कुरिन्थियों 4:7 में संत पौलुस कहते हैं, “आपके पास क्या है, जो आपको न दिया गया है? और यदि आप को सब कुछ दान में मिला है, तो इस पर गर्व क्यों करते हैं, मानो यह आप को न दिया गया हो?” अब सवाल उठता है कि हमारे पास जो कुछ है, वह सब किसका दिया हुआ है। इब्रानियों 2:10 हमें बताता है कि ईश्वर के कारण और ईश्वर के द्वारा ही सब कुछ होता है। स्तोत्र 24:1 कहता है – “पृथ्वी और जो कुछ उस में है, संसार और उसके निवासी-सब प्रभु का है”। विधि-विवरण 10:14 में वचन कहता है – “आकाश, सर्वोच्च आकाश, पृथ्वी और जो कुछ उस में है - यह सब तुम्हारे प्रभु ईश्वर का है।”

अब आती है, राजाओं की बात। स्तोत्र 47:8-10 में हम पढ़ते हैं - “ईश्वर समस्त पृथ्वी का राजा है। उसके आदर में शिक्षा-गीत सुनाओ। ईश्वर सभी राष्ट्रों पर राज्य करता है। वह अपने सिंहासन पर विराजमान है। अन्य राष्ट्रों के शासक इब्राहीम के ईश्वर की प्रजा से मेल करते हैं। पृथ्वी के शासक ईश्वर के अधीन है। ईश्वर सबों पर राज्य करता है।” ईश्वर राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु हैं “जो अमरता का एकमात्र स्रोत है, जो अगम्य ज्योति में निवास करता है, जिसे न तो किसी मनुष्य ने कभी देखा है और न कोई देख सकता है। उसे सम्मान तथा अनन्त काल तक बना रहने वाला सामर्थ्य!” (1 तिमथी 6:15-16, देखिए प्रकाशना 17:14)

इसके साथ-साथ पवित्र वचन हमें यह भी समझाता है कि अधिकारियों की व्यवस्था ईश्वर द्वारा की गयी है। प्रभु येसु पिलातुस से कहते हैं, “यदि आप को ऊपर से अधिकार न दिया गया होता तो आपका मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता”। नबी दानिएल राजा नबूकदनेज़र को संबोधित करते हुए कहते हैं, “राजा! आप राजाओं के राजा हैं। स्वर्ग के ईश्वर ने आप को राजत्व, अधिकार, सामर्थ्य और सम्मान प्रदान किया। उसने मनुष्यों, मैदान के पशुओं और आकाश के पक्षियों को- वे चाहें कहीं भी निवास करें- आपके हाथों सौंपा और आप को सब का अधिपति बना दिया। संत पौलुस कहते हैं,“प्रत्येक व्यक्ति अधिकारियों के अधीन रहे, क्येांकि ऐसा कोई अधिकार नहीं, जो ईश्वर का दिया हुआ न हो। वर्तमान अधिकारियों की व्यवस्था ईश्वर द्वारा की गयी है।“ (रोमियों 13:1) वे यह भी समझाते हैं, कि “न केवल दण्ड से बचने के लिए, बल्कि अन्तःकरण के कारण भी अधिकारियों के अधीन रहना चाहिए। आप इसीलिए राजकर चुकाते हैं। अधिकारीगण ईश्वर के सेवक हैं और वे अपने कर्तव्य में लगे रहते हैं।“ (रोमियों 13:1-6)

इस दुनिया में रहते समय हरेक व्यक्ति की अधिकारों तथा जिम्मेदारियों को निभाने हेतु कुछ व्यवस्था की ज़रूरत है। यह शांतिमय वातावरण तथा प्रगति के लिए भी जरूरी है। शासन की व्यवस्था भी इसी मतलब से बनायी गयी है। इसलिए संत पौलुस हमसे अधिकारियों तथा शासकों के लिए प्रार्थना करने को कहते हैं। “मैं सब से पहले यह अनुरोध करता हूँ कि सभी मनुष्यों के लिए, विशेष रूप से राजाओं और अधिकारियों के लिए, अनुनय-विनय, प्रार्थना निवेदन तथा धन्यवाद अर्पित किया जाये, जिससे हम भक्ति तथा मर्यादा के साथ निर्विघ्न तथा शान्त जीवन बिता सकें। यह उचित भी है और हमारे मुक्तिदाता ईश्वर को प्रिय भी” (1 तिमथी 2:1-3)।

इस प्रकार ख्रीस्तीय शिक्षा के अनुसार विश्वासियों को राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु ईश्वर को प्रथम स्थान देने के साथ-साथ राष्ट्र-निर्माण के लिए अपना सहयोग देना चाहिए। सभी विश्वासी ईश्वर के राज्य की स्थापना करने के साथ-साथ समाज की प्रगति तथा कल्याण के लिए भी प्रयत्न करते रहें। उनका कर्तव्य है कि वे सभी देशवासियों के साथ मिल कर मानवता तथा स्वतंत्रता के हित में कार्य करें।


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