चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का उनतीसवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 45:1,4-6; 1 थेसलनीकियों 1:1-5ब; मत्ती 22:15-21

प्रवाचक: फ़ादर अंथोनी आक्कानाथ


आज के पवित्र सुसमाचार में कैसर को कर देने के विषय में प्रभु येसु के मन की थाह लेने के लिए फरीसी उनसे सवाल करते हैं। वे लोग जानबूझकर एक ऐसा सवाल पूछते हैं जिसका जवाब देना कठिन था। फिर भी प्रभु येसु बहुत समझदारी से अपने जवाब से उनका मुँह बंद कर देते हैं। 

यह घटना प्रभु येसु की चतुरता एवं अधिकार को हमारे समक्ष प्रकट करती है। जब भी हम कुछ न कुछ उलझनों में आ जाते हैं तो हमें प्रभु की तरह सोच समझकर जवाब देना सीखना चाहिए। येसु ने उन लोगों से कहा, ’’मेरी परीक्षा क्यों लेते हो?’’ फिर उन्होंने एक सिक्का मँगा कर पूछा कि उसपर किसका चेहरा अंकित है। लोगों ने उत्तर दिया, ’’कैसर का’’। तब प्रभु येसु ने कहा, ’’जो कैसर का है उसे कैसर को दो और जो ईश्वर का है, उसे ईश्वर को दो’’। प्रभु येसु के प्रज्ञापूर्ण उत्तर के आगे वे चुप रह गये। 

उन दिनों की प्रचलित मुद्रा दीनार रहा करती थी। एक दीनार का मूल्य एक दिन की मज़दूरी के बराबर था। प्रभु येसु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे कि सभी यहूदियों और नवीन खीस्तयों को सरकार का कर चुकाना चाहिये और सरकार की सहायता करनी चाहिये। सरकार के महत्व को वे स्वीकार करते हैं और उसके अधीन रहने के लिये उन्होंने शिष्यों को सिखाया।

सदियों से खीस्तीय ईश्वर को छोड़कर किसी की आराधना नहीं करता, न सरकार की, न किसी संस्था की। वह पृथक-पृथक रूप से दोनों की सेवा करता है। वह जानता है कि ईश्वर राष्ट्र के ऊपर हैं। नबी इसायाह कहते हैं, ’’निष्चय ही राष्ट्र घडे़ में बूँद के सदृश हैं। वे पलडे़ पर धूलि के बराबर माने जाते हैं। प्रभु द्वीपों को रजकण के समान उठा लेता है’’ (इसायाह 40:15)। खीस्तीय यह विश्वास करता है कि ईश्वर ही अधिकारियों को नियुक्त करता है। इसके विषय में संत पौलुस रोमियो के नाम पत्र में लिखते हैं, ’’इसलिये न केवल दण्ड से बचने के लिए, बल्कि अन्तःकरण के कारण भी अधिकारियों के अधीन रहना चाहिए। आप इसलिये राजकर चुकाते हैं। अधिकारीगण ईश्वर के सेवक हैं और वे अपने कर्त्तव्य में लगे रहते हैं। आप सब के प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा करें। जिसे राजकर देना चाहिए, उसे राजकर दिया करें। जिसे चुंगी देनी चाहिए, उसे चुंगी दिया करें, जिस पर श्रद्धा रखनी चाहिए, उस पर श्रद्धा रखें और जिसे सम्मान देना चाहिए, उसे सम्मान दें।’’ (रोमियों 13:5-7) इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम उनकी आराधना करते हैं। कैसर को कर देने का अर्थ है कैसर को यथोचित सम्मान देना। आराधना और पूजा हम सिर्फ ईश्वर की करते हैं। 

बाइबिल के जानकारों के अनुसार येरुसालेम के मंदिर में लोग विभिन्न प्रकार की भेंट लेकर आते थे। जो कैसर का सिक्का लेकर आते थे उन्हें वे मंदिर में प्रवेश करने के पूर्व मंदिर में ग्रहण करने योग्य सिक्कों में बदलते थे। क्योंकि दीनार पर कैसर का चेहरा अंकित रहता था। परन्तु मंदिर के बाहर वे उन सिक्कों से ही लेन-देन करते थे। अर्थात वे ईश्वर और सरकार में बहुत भेद-भाव रखते थे एवं षासकीय कार्य को ईश्वरीय कार्यों से अलग रखते थे।

आज हमारे देश में यह भ्रम है कि खीस्तीय लोग बाहर के हैं और वे राष्ट्र निर्माण में उचित योगदान नहीं देते हैं। लेकिन भारत देश में केवल 2 प्रतिशत ईसाई होने के बावजूद भी कई क्षेत्रों में उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। खीस्तीय अपने जीवन में ईश्वर को प्रथम स्थान देते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि हम राष्ट्र विरोधी हैं या राष्ट्र निर्माण से मुँह मोड़ते हैं। निस्वार्थ सेवा भावना से भारत के हर कोने-कोने में ईसाई भाई बहनें शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। 

आज के पाठ हमें यह बताते हैं कि जो ईश्वर का है उसे हमें ईश्वर को ही देना चाहिए और जो इस दुनिया का है उसे हमें इस दुनिया के सृजनहार प्रभु पिता परमेश्वर की इच्छा के अनुसार और खूबसूरत बनाने के लिये इस दुनिया के शासकों के साथ मिलकर प्रयत्न करना चाहिये। अंत में यह सवाल करना भी उचित होगा कि हमारे पास या इस संसार में ऐसी कौन सी चीज़ है जो ईश्वर की नहीं है, जिसपर अपने सृष्टिकर्ता का चेहरा अंकित न हो? 


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