चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का अट्ठाईसवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 26:6-10अ; फिलिप्पियों 4:12-14,19-20; मत्ती 22:1-14

प्रवाचक: फ़ादर फ्रांसिस स्करिया


मत्ती 22:1-14 में प्रभु हमें बताते हैं, कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया। जो भोज के लिए निमंत्रित थे, वे आना नहीं चाहते हैं। उनमें से कुछ लोग कोई परवाह नहीं करते, कुछ लोग आने से इनकार करते हैं, कुछ लोग राजा के सेवकों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं और कुछ लोग राजा के सेवकों पकड कर उनका अपमान करते हैं और उनको मार डालते हैं। तब राजा को बहुत क्रोध आता है और वह अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का सर्वनाश कर उनका नगर जला देता है। फिर वह अपने सेवकों को आदेश देता है कि वे चैराहों पर जा कर जितने भी लोग मिल जायें सब को विवाह-भोज में बुला लायें। सेवक सड़कों पर जाते हैं और भले-बुरे जो भी मिले, सब को बटोर कर ले आते हैं और विवाह-मण्डप अतिथियों से भर जाता है।

बहुत ही सुन्दर माहौल था। राजा अतिथियों को देखने आता है तो वहाँ उसकी दृष्टि एक ऐसे मनुष्य पर पड़ता है, जो विवाहोत्सव के वस्त्र नहीं पहने है। राजा उससे पूछता है, “भई विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?’ लेकिन उस मनुष्य के पास कोई जवाब नहीं है, वह चुप रहता है। तब राजा अपने सेवकों से कहता है, “इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे। क्योंकि बुलाये हुए तो बहुत हैं, लेकिन चुने हुए थोडे़ हैं।”

शायद हमें बुरा लगेगा कि राजा ने उस आदमी के हाथ-पैर बाँध कर बाहर, उसे अन्धकार में फेंकने का आदेश दिया। हम सोच सकते हैं कि उस व्यक्ति को राजा के सेवकों ने किसी गली से अचानक बुला लिया होगा और इसलिए उसके पास अच्छे कपडे नहीं थे या अच्छे कपडे पहनने का वक्त नहीं था। वास्तव में यहाँ पर अच्छे या साफ-सुधरे कपडे की बात नहीं होती है। बात होती है – ’विवाहोत्सव के वस्त्र’ की। विवाहोत्सव के वस्त्र राजा द्वारा सभी आमंत्रित लोगों को दिये जाते हैं। इसलिए तो वह आदमी पूछे जाने पर चुपचाप रहता है।

प्रभु येसु हमें बताना चाहते हैं कि उनकी इच्छा है कि सभी मनुष्य स्वर्ग के विवाह भोज में शामिल हों। लेकिन हमें पापों से कलंकित कपडों को उतार कर ईश्वर के मेमने के विवाहोत्सव के वस्त पहनना चाहिए।

कलोसियों 3:1-10 में संत पौलुस कहते हैं, “यदि आप लोग मसीह के साथ ही जी उठे हैं- जो ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं- तो ऊपर की चीजें खोजते रहें। (2) आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीजों की चिन्ता किया करें। (3) आप तो मर चुके हैं, आपका जीवन मसीह के साथ ईश्वर में छिपा हुआ है। (4) मसीह ही आपका जीवन हैं। जब मसीह प्रकट होंगे, तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे। (5) इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों का दमन करें, जो पृथ्वी की हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ का, जो मूर्तिपूजा के सदृश है। (6) इन बातों के कारण ईश्वर का कोप आ पड़ता है। (7) जब आप इस प्रकार का पापमय जीवन बिताते थे, तो आप भी पहले यह सब कर चुके हैं। (8) अब तो आप लोगों को क्रोध, उत्तेजना, द्वेष, परनिन्दा और अश्लील बातचीत-यह सब एकदम छोड़ देना चाहिए। (9) कभी एक दूसरे से झूठ नहीं बोलें। आप लोगों ने अपना पुराना स्वभाव और उसके कर्मों को उतार कर (10) एक नया स्वभाव धारण किया है।” कलोसियों 3:12 में वे कहते हैं, “आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।” यहाँ पर हम इस बात पर भी ध्यान दे कि पवित्र वचन “धारण” करने की बात कहता है।

उत्पत्ति 3 में हम देखते हैं कि आदम और हेवा ने पाप किया और “उन्हें पता चला कि वे नंगे हैं। इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़ कर अपने लिए लंगोट बना लिये।” (उत्पत्ति 3:7) हम जानते हैं कि अगर हम पत्ते जोड-जोड कर उसे पहन कर अपने नंगेपन को छिपाने की कोशिश करेंगे तो हम नंगेपन को ठीक से छिपाने में असफल होंगे। इसलिए प्रभु ईश्वर स्वयं उन्हें अच्छे कपडे प्रदान करते हैं। “प्रभु-ईश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए खाल के कपड़े बनाये और उन्हें पहनाया।” (उत्पत्ति 3:21)

लूकस के सुसमाचार में हम उडाऊ पुत्र का दृष्टान्त पढ़ते हैं। जब उडाऊ पुत्र वापस आता है, वह गन्दे कपडे पहन कर आता है। लेकिन घर आने पर पिता अपने नौकरों से कहते हैं, “जल्दी अच्छे-से-अच्छे कपड़े ला कर इस को पहनाओ और इसकी उँगली में अँगूठी और इसके पैरों में जूते पहना दो।”

प्रकाशना 19:1-9 में हम देखते हैं कि स्वर्ग में किस प्रकार का माहौल होगा। “इसके बाद मैंने स्वर्ग में एक विशाल जनसमुदाय की-सी ऊँची आवाज़ को यह गाते हुए सुना, ’’अल्लेलूया! हमारे ईश्वर को विजय, महिमा और सामर्थ्य, (2) क्योंकि उसके निर्णय सच्चे और न्याय-संगत हैं। उसने उस महावेश्या को दण्डित किया है, जो अपने व्यभिचार द्वारा पृथ्वी को दूष्षित करती थी और उसने उसको अपने सेवकों के रक्त का बदला चुकाया है।’ (3) तब उन्होंने फिर पुकार कर कहा, ’’अल्लेलूया! उसके जलने का धुआं युग-युगों तक उठता रहेगा।’’ (4) चौबीस वयोवृद्ध और चार प्राणी मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए सिंहासन पर विराजमान ईश्वर की आराधना की, ’’आमेन! अल्लेलूया!’’ (5) इसके बाद सिंहासन से एक वाणी यह कहते सुनाई पड़ी, ’’तुम सब, जो ईश्वर की सेवा करते हो और तुम छोटे-बड़े, जो उस पर श्रद्धा रखते हो, हमारे ईश्वर की स्तुति करो।’’ (6) तब मैंने एक विशाल जनसमुदाय की सी आवाज, समुद्र की लहरों और गरजते हुए बादलों की-सी आवाज को यह कहते हुए सुना, ’’अल्लेलूया! हमारे सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर ने राज्याधिकार ग्रहण किया है। (7) हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें और ईश्वर की महिमा गायें, क्योंकि मेमने के विवाहोत्सव का समय आ गया है। उसकी दुल्हन अपना श्रृंगार कर चुकी है (8) और स्वच्छ उज्जवल मलमल के वस्त्र से सुसज्जित है। यह मलमल सन्तों के धर्माचरण का प्रतीक है।’’ (9) स्वर्गदूत ने मुझे से कहा, ’’यह लिखो- धन्य हैं वे, जो मेमने के विवाह-भोज में निमन्त्रित हैं! ’’ और उसने मुझ से कहा- ’’यही ईश्वर के शब्द हैं’’।“

स्वर्ग की एक विशेषता यह है कि वहाँ का फाटक खुला है, परन्तु वहाँ कोई अपवित्र व्यक्ति या वस्तु प्रवेश नहीं कर सकता। “उसके फाटक दिन में कभी बन्द नहीं होंगे और वहाँ कभी रात नहीं होगी। (26) उस में राष्ट्रों का वैभव और सम्पत्ति लायी जायेगी, (27) लेकिन, उस में न तो कोई अपवित्र व्यक्ति और न कोई ऐसा व्यक्ति, जो घृणित काम करता या झूठ बोलता है। वह केवल वही प्रेवेश कर पायेंगे, जिनके नाम मेमने के जीवन-ग्रन्थ में अंकित हैं।“ (प्रकाशना 21:25-27)

स्वर्गे में जितने भी लोग प्रवेश करते हैं वे अपने कपडों को ईश्वर के मेमने के रक्त में धोकर पवित्र करने के बाद ही प्रवेश कर सकते हैं। “इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे (10) और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, ‘‘सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!’’ (11) तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की, (12) ‘‘आमेन! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !’’ (13) वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, ‘‘ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं? (14) मैंने उत्तर दिया, ‘‘महोदय! आप ही जानते हैं’’ और उसने मुझ से कहाँ, ‘‘ये वे लोग हैं, जो महासंकट से निकल कर आये हैं। इन्होंने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं। (प्रकाशना 7:9-14)

प्रभु ईश्वर हमें उज्ज्वल वस्त्र पहनाने के इच्छुक हैं। मत्ती 6:30 में प्रभु का वचन बताता है कि “खेत की घास आज भर है और कल चूल्हे में झोंक दी जायेगी” उसे जिस प्रकार ईश्वर पहनाते हैं, सुलेमान अपने पूरे ठाट-बाट में उन में से एक की भी बराबरी नहीं कर सकता था। ईश्वर पहानाने वाले हैं, तो शैतान नंगा करने वाला है। मारकुस के सुसमाचार अध्याय 5 में हम एक अपदूतग्रस्त को पाते हैं, जो कपडा नहीं पहनता था। नंगेपन का मतलब है शर्मिन्दगी। ईश्वर हमें गौरव प्रदान करते हैं, तो शैतान हमें शर्मिन्दगी प्रदान करता है। ज़करिया के ग्रन्थ, अध्याय 3 में हम देखते हैं, कि प्रभु के दूत ने महायाजक योशुआ के मैले कपडे उतरवा कर उन्हें उत्तम कपडे पहनाते हैं। प्रकाशना 22:14 कहता है “धन्य हैं, वे जो अपने वस्त्र धोते हैं। वे जीवन-वृक्ष के अधिकारी होंगे और फाटकों से हो कर नगर में प्रवेश करेंगे।” आइए हम भी मेमने के रक्त में अपने जीवन को पवित्र करें और स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए अपने आप को तैयार करें।


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Praise the Lord!